सात समन्दर पार नारकीय जीवन जी रही भारतीय दुल्हनों के किस्से आम हैं।
एक बेहतर जि़ंदगी देने का सपना परोसकर विदेशी दूल्हे देश की बेटियों को ब्याह कर सुदूर ले जाते हैं जहां पर उनसे अमानवीय व्यवहार किया जाता है। मायके लौटती हैं तो बोझ समझा जाता है। ऐसी हर ताजा व्यथा पर सरकार चौकन्नी जरूर होती है लेकिन कोई पुख्ता हल इस समस्या के निपटान के लिए अभी तक नहीं खोजा गया।
हालिया ताजा समाधान के प्रयासों में एक यह है कि ऐसी शादियों का पंजीकरण महिला व बाल विकास मंत्रालय में करवाया जाए। इस प्रयास को सही दिशा में सही कदम करार दिया जा सकता है। बेशक इस पग से परित्यक्ता दुल्हनों को कानूनी और वित्तीय राहत तो फौरी तौर पर नहीं मिल सकेगी क्योंकि यह आरंभिक कदम है जिसके नतीजे आने में वक्त लगेगा। आशा की जानी चाहिए कि इस पग से आमूल-चूल बदलाव लाने के रास्ते खुलेंगे।
मसलन शादियों के आवश्यक पंजीकरण की •जरूरत लम्बे समय से महसूस की जा रही थी। इस नए पग के तहत एक एकीकृत नोडल एजेंसी की स्थापना की जाएगी जिसमें विदेश मंत्रालय, कानून, गृह के अलावा महिला व बाल विकास मंत्रालय जुड़ा होगा जो आप्रवासी भारतीय दूल्हों पर न•जऱ रखेगा।
उम्मीद की जानी चाहिए कि कानूनी सलाह लेने वाली दुल्हनों के लिए यह नोडल एजेंसी शिकायत निवारण केंद्र साबित होगी। यह उन आप्रवासी दूल्हों के नाक में नकेल डालने में समर्थ होगी जो शादी को हथियार बनाकर देश की बेटियों से धोखाधड़ी करते हैं।
हाल ही में अरविन्द कुमार गोयल की अध्यक्षता में गठित नौ सदस्यीय कमेटी में कुछ ऐसे सुझाव दिए गए जो इन फर्जी दूल्हों पर आसानी से नकेल डाल सकते हैं। उनमें से विवाह का अनिवार्य पंजीकरण तथा दूल्हों के पासपोर्ट जब्त करने जैसे सुझाव प्रमुख हैं। लगता है कि सरकार को ये सिफारिशें पसन्द आयी हैं। इसमें शक नहीं कि सरकार के इन प्रयासों में दुल्हनों का पुख्ता कानूनी पक्ष, समाज विशेषकर दुल्हन के माता-पिता को भी महत्ती भूमिका अदा करनी होगी। कमोबेश, पंजाब का हर गांव इस तरह की समस्या से दो-चार हो रहा है,जहां के हर तीसरे मोहल्ले में दुल्हन छोड़कर दूल्हा विदेश भाग जाता है।