नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि न्यायपालिका को किसी घटना से प्रभावित होने के बजाय भविष्य को ध्यान में रखकर रुख तय करना चाहिए। उसे दीर्घकालिक ‘न्यायिक शासनकला में पारंगत होना चाहिए। राष्ट्रगान और सोशल मीडिया पर हालिया कुछ फैसलों के मद्देनजर वित्त मंत्री ने यह टिप्पणी की। इन फैसलों में न्यायपालिका ने जहां अतीत में अलग दृष्टिकोण अपनाया वहीं वर्तमान में उन्हीं विषयों पर उसका रुख दूसरा रहा। शुक्रवार को एक साक्षात्कार में अरुण जेटली ने कहा, ‘मुझे लगता है कि इसकी संसद को जरूरत है, राजनेताओं को आवश्यकता है। मैं सोचता हूं कि न्यायपालिका को दीर्घकालिक न्यायिक शासनकला की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भविष्य के लिए एक संस्थागत तंत्र होना चाहिए। अपनी बात की पुष्टि के लिए उन्होंने आइटी अधिनियम की धारा 66ए और फि र राष्ट्रगान पर अदालत के फैसलों का उदाहरण दिया। कहा, सुप्रीम कोर्ट ने पहले सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए को खारिज कर दिया, लेकिन जब बाद में किसी ने ब्लॉग पर न्यायाधीशों पर टिप्पणी की, तब अदालतों ने इस पर विचार करना शुरू कर दिया कि सोशल मीडिया को कैसे नियंत्रित किया जाए। इसी तरह, राष्ट्रगान पर अदालतों ने विभिन्न रुख अपनाया। 1980 के दशक में एक विशेष समुदाय के लिए अदालत ने इसे अनिवार्य नहीं किया, लेकिन बाद में इसे मूल कर्तव्यों का हिस्सा बताते हुए गाना अनिवार्य कर दिया। वित्त मंत्री ने रोहिंग्या मुस्लिमों के मुद्दे का भी उदाहरण दिया। कहा, यह बहुत संवेदनशील मामला है। इसमें जनसांख्यिकी, पड़ोसी देशों के साथ संबंध, देश की सुरक्षा और विदेश नीति शामिल है। वित्त मंत्री ने कहा, ‘विदेश नीति के मुद्दों को तय करना न्यायपालिका का क्षेत्राधिकार नहीं है।
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