मामला मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने में हुए कथित भ्रष्टाचार का है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मेडिकल काउंसिल ब्राइबरी केस में वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के एनजीओ कैम्पेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉम्र्स की तरफ से स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम द्वारा मामले की जांच कराए जाने वाली याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के एनीजओ पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगा दिया। जस्टिस आरके अग्रवाल की अध्यक्षता में मामले की सुनवाई कर रही तीन जजों की पीठ ने जुर्माने की राशि सुप्रीम कोर्ट बार एसोशिएशन फंड में देने की बात कही। मामला मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने में हुए कथित भ्रष्टाचार का है। सीबीआई ने इस बारे में एक केस दर्ज कर रखा है। आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों से जुड़े एक मामले का फैसला एक कॉलेज के हक में करवाने के लिए दलाल विश्वनाथ अग्रवाल ने पैसे लिए। याचिकाकर्ता की मांग थी कि मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों पर आरोप लग रहे हैं, इसलिए पूर्व चीफ जस्टिस की निगरानी में इस मामले की एसआईटी जांच होनी चाहिए।
प्रशांत भूषण ने चीफ जस्टिस की भूमिका पर उठाए सवाल
प्रशांत भूषण का कहना था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को इन मामलों पर कोई प्रशासनिक या न्यायिक निर्णय नहीं लेना चाहिए क्योंकि वे इस मामले में एक पक्ष हो सकते हैं। जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि ये मामला अपमानजनक है और ये अवमानना का केस बनता है, लेकिन कोर्ट अवमानना की कार्रवाई नहीं करेगा।
एक ही मामले पर 2 याचिका
प्रशांत भूषण के एनजीओ कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉम्र्स (सीजेएआर) की तरफ से मामले में याचिका दाखिल की गई। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपनी प्रशासनिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए इसे जस्टिस ए के सीकरी और अशोक भूषण की बेंच के पास भेज दिया। इसके अगले दिन एक और याचिका दाखिल कर दी गई। सीजेएआर की याचिका से बिल्कुल मिलती-जुलती याचिका में इस बार वकील कामिनी जायसवाल को याचिकाकर्ता बनाया गया।