यूँ बेवजह मुस्कुराने का भी अपना मज़ा है

आलोक सिंह ( एसोसिएट एडीटर-ICN ग्रुप )   
क्यों तलाशते हो तुम वजह मुस्कुराने की
यूँ बेवजह मुस्कुराने का भी अपना मज़ा है
क्यों सोचते हो साहिल पर ठहर जाने की
यूँ  मौजों से टकराने का भी अपना मज़ा है
क्यों ढूंढते हो रास्ते मंजिलों को पा जाने की
यूँ बेसबब आवारगी का भी अपना मज़ा है
क्यों चाहत है दरख्तों की छांव में बैठ जाने की
यूँ खिलती धूप में पिघलने का भी अपना मज़ा है
क्यों देखूं खुदा की तरफ उसकी नेमत आने की
यूँ उठकर खुद कर दिखाने का भी अपना मज़ा है
क्यों इंतेज़ार है तुम्हें कसमें वादों के पूरे हो जाने की
यूँ दिल्लगी समझ भूल जाने का भी अपना मज़ा है
क्यों जल्दी है तुम्हें उम्र की दहलीज पार कर जाने की
यूँ बरसात में कागज़ की कश्ती तैराने का भी अपना मज़ा है
क्यों कर कोई तुम्हे बताये की ज़रूरत क्या कर जाने की
यूँ हो तुम बस तुम, वही कुछ करने का अपना ही मज़ा है।।

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