20 मार्च! गौरैया दिवस!

गौरैया दिवस

सुप्रीत  (छपरा सारण ) बिहार 

 

बचपन के वो दिन जब सुबह सुबहकी चिं.. चिं.. की आवाज़ कानों में जाती थी तो मन में बड़ा कौतुहल होता था! कभी चावल के दाने लेकर हम भी उनके साथ खेलने चले जाते थें! कभी वो अपने बच्चों को दाने खिलाती, कभी ख़ुद कुछ दाने चुन कर ले जाती! बड़ा सुकून मिलता था देख कर! और उत्साह तो और बढ़ जाता जब दाने खिलते वक़्त वो बड़ी उम्मीद से हमारी तरफ देखा करती थीं! दोपहर में घर के आँगन में रखा पानी पीने भी वो ज़रूर आया करती थीं! कभी कभी तो हमारे घरों में ही वो अपना घोंसला बना लिया करती थीं! और फिर दिन भर इधर से उधर चहकती रहती! कुछ और गौरैया भी उनका साथ निभाने उनके पास आ जाया करती थीं! बड़ा खुशनुमा माहौल बना कर रखा करती थीं ये गौरैया! लेकिन अब ये सब कहाँ? अब बड़ी मुश्किल से दिखती हैं गौरैया! आखिर हुआ क्या इन बीते सालों में?

गौरैया

ये विकास का दौर है, इन्सान सुख सुविधाओं के साधन के नए आयाम ढूंड रहा है! बड़ी बड़ी इमारते बन रही हैं, हर तरफ मोबाइल टावर लगाये जा रहे हैं, प्रदुषण को नया स्तर मिल रहा है, पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है! नए नए तकनीक हर रोज़ प्रयोग में लाये जा रहे हैं! हमारे अतीत को जानने  और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हर रोज़ वैज्ञानिक अनुसन्धान किये जा रहे हैं! लेकिन इन सब के बिच इस धरती पर मौजूद और भी प्राणी हैं जो इंसानों से शायद ख़फा होंगे! उन सब में से एक है हमारी प्यारी गौरैया!

गौरैया बर्ड

इन गौरैया को वैसे तो इंसानों से बहुत प्यार है तभी तो दुनिया के हर कोने में जहाँ भी इन्सान बसते हैंयेगौरैया अपने किसी  किसी प्रजाति में वहाँ पाई जाती हैलेकिन आज गौरैया के अस्तित्व पर ख़तरा मंडराने लगा हैपिछले कई सालों में इनकी संख्या बहुत ही दुखद तरीके से कम हुयी हैइसका कारण खुद इन्सान ही हैगौरैया गिद्ध के बाद सबसे संकटग्रस्त पक्षी है! गौरैया की संख्या में अचानक आई कमी के बहुत सारे कारण हैं! सीसा रहित पेट्रोल का उपयोगजिसके जलने पर मिथाइल नाइट्रेट नामक यौगिक तैयार होता है, यह यौगिक छोटे जन्तुओं के लिए काफी जहरीला है! इसके अलावा और भी कारण हैं जैसे पनपते खर-पतवार की कमी या गौरैया को खुला आमंत्रण देने वाले ऐसे खुले भवनों की कमी जहां वह अपने घोंसले बनाया करती थी! पक्षीविज्ञानी और वन्यप्राणी विशेषज्ञों का यह मानना है कि आधुनिक युग में पक्के मकान,लुप्त होते बाग-बगीचेखेतों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग तथा भोज्य-पदार्थ स्त्रोतों की उपलब्धता में कमी इत्यादि प्रमुख विभिन्न कारक हैं जो इनकी घटती आबादी के लिए जिम्मेवार हैं! मोबाइल फ़ोन और मोबाइल टावर से निकलने वाले तरंग भी इनके लिए नुकसानदेह है! गौरैया को अधिक तापमान भी परेशान करता है! अलग अलग कारखानों से निकलने वाली  ज़हरीली  गैस भी नन्ही गौरैया के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक है! यूँ कहूँ तो इन्सान ने ख़ुद की तरक्की के लिए तो नए आयाम ढूंड लिए लेकिन इन सब के बीच अपनी अगली पीढ़ी को उन सब छोटी छोटी खुशियों से दूर भी कर दिया जो उनके बचपन को यादगार बनाते हैं!

गौरैया

शायद अब हमे सचेत हो जाना चाहिए! गौरैया को इतिहास बनने से बचाना होगा! जो लोग गौरैया को मारते हैं, या उनके पंख रंग देते हैं, या उनके पैरों को धागे से बांध देते है या कुछ भी ऐसा करते हैं जिससे गौरैया को तकलीफ होती हो, उनके ख़िलाफ़ खड़े होने का सही वक़्त आ गया है! गौरैया के संरक्षण के लिए हम सभी को आवश्यक कदम उठाने हीं होंगे वरना जब हमारी अगली पीढ़ी सिर्फ गूगल पर गौरैया के विडियो और तस्वीर देखेगी तो शायद हमे हमारे बीते दिन याद आयें और हम बस अफ़सोस ही करते रह जायेंगे!

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