World TB Day 2017: जानें क्या है टीबी, इसके लक्षण और बचाव के तरीके

डॉ. नौशीन अली, ब्यूरो चीफ आई.सी.एन. (म.प्र) 

ट्यूबरक्लोसिस क्या है??

भोपाल। ट्यूबरक्लोसिस जिसे हम हिंदी क्षय रोग भी कहते है या TB कहते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2011 के आकड़ों के अनुसार विश्व के कुल 84 लाख टी.बी. के मामलों में भारत में 22 लाख मामले पाए गए हैं। वहीं डब्ल्यूएचओ की टीबी रिपोर्ट 2016 में सामने आया है कि भारत में दुनिया के 24 फीसदी टीबी के मामले हैं और इस रोग से हर साल करीब 5 लाख भारतीयों की मौत हो जाती है।इसकी वजह है क्षय रोग के बारे में लोगों की जानकारी का अभाव।

क्षय रोग एक संक्रामक बिमारी है, रोगियों से संपर्क में रहने से यह बिमारी फैलाती है। क्षय रोग रोग विशेषकर फेंफडों का इनफेक्शन है इसके अलावा जैसे मस्तिष्क ,आंतें,  गुर्दे,  हड्डी व जोड भी इस रोग से ग्रसित होते हैं।डब्ल्यूएचओ का कहना है कि दुनिया के सभी देश अगर सही तरीके से टीबी का इलाज होता रहे तो वर्ष 2030 तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।

लक्षण

लगातार हल्का बुखार तथा हरारत रहना।भूख न लगाना या कम लगना तथा अचानक वजन कम हो जाना।कमर की हड्डी में सूजन, घुटने में दर्द, घुटने मोड़ने में कठिनाई तथा गहरी सांस लेने में सीने में दर्द होना।गर्दन में लिम्फ ग्रांथियों में सूजन, या फोड़ा होना।पेट की क्षय रोगमें पेट दर्द, अतिसार या पेट फूलने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं ।थकावट होना तथा रात में पसीने आनाक्षय रोग न्यूमोनिया के लक्षण में तेज बुखार, खांसी व सीने में दर्द।

पहचान

क्षय रोग की पहचान का सबसे कारगर तरीका है बलगम की जांच करवाना। इससे रोग के जीवाणु सूक्ष्मदर्शी द्वारा आसानी से देखे जा सकते हैं। क्षय रोग रोग के उपचार के लिये एक्स‍-रे करवाना, बलगम की जांच की अपेक्षा मंहगा तथा कम भरोसेमन्दउ उपाय है, फिर भी कुछ रोगियों के लिये एक्स -रे व अन्यर जांचों की आवश्यकता होती है।

बचाव

बच्चों को जन्मू के एक माह के अन्दर बीसीजी का टीका लगवायें।रोगी खांसते व छींकतें वक्ता मुंह पर रूमाल रखें।रोगी जगह-जगह नहीं थूंके।क्षय रोग का पूर्ण इलाज ही सबसे बड़ा बचाव का साधन है।अगर आप किसी क्षय रोगी से मिलने जा रहें हो तो मुंह पर मास्क लगाएं।बाहर से आने पर अपने हाथों व पैरों को एंटीस्पेटिक साबुन से धोना चाहिए।दो हफ्तों से अधिक समय तक खांसी रहती है, तो चिकित्सक को दिखायें।

इलाज के दैरान 

घर पर ही रहें

अगर आपका क्षय रोगका इलाज चल रहा है तो आप पहले कुछ हफ्ते आफिस या स्कूल न जाएं।

हवादार कमरे में रहें

क्षय रोग के बैक्टेरीया छोटे कमरे में आसानी से फैलते हैं जहां हवा पास नहीं होती है।अगर ज्यादा ठंड नहीं हो तो खिड़कियों को खोल के रखें जिसे कमरे में हवा आ सके।

मुंह ढक कर रखें

टिश्यू पेपर से अपना मुंह हंसते या छींकते हुए ढ़क लें, उसके बाद गंदे टिश्यू को किसी थैली में बांध कर दूर फेंक दें।

मास्क पहनकर रहें

इलाज के पहले कुछ हफ्तें तक मुंह पर मास्क पहन कर रखें। इससे आसपास के लोगों में क्षय रोग के बैकटेरिया नहीं फैलेंगे।
रात में पसीना आना।

किसे है सबसे ज्यादा खतरा?

वैसे तो किसी भी व्यक्ति को टीबी हो सकती है, लेकिन कुछ लोगों में इसका खतरा ज्यादा होता है। यदि आपका इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक शक्ति) कमजोर है, तो इस स्थिति में आपको टीबी होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे लोग जो उन लोगों के साथ रहते हैं, जो पहले से ही टीबी से संक्रमित हैं, को भी टीबी हो जाती है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट पर गौर करें, तो टीबी का एनुअल (सालाना) इन्फेक्शन रेट लगभग तीन प्रतिशत है और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे होते हैं। क्योंकि बच्चों की रोग प्रतिरोधी क्षमता अपेक्षाकृत कमजोर होती है, इसलिए बच्चों को टीबी से इन्फेक्टेड लोगों से दूर रखना चाहिए।

कब जांच करवाएं?

टीबी का इलाज पहले की अपेक्षा अब काफी आसान हो गया है, लेकिन इसके बावजूद भी टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इसका एकमात्र कारण है, लोगों की लापरवाही और जागरूकता की कमी। लंबे समय तक शरीर के किसी भी अंग में दर्द, कमजोरी, बुखार, खांसी जैसे लक्षण दिखें, तो टीबी की जांच जरूर कराएं। जो दवाइयां बताई जाएं, उसे निश्चित समय तक जरूर लेते रहें। उन्हें बीच में न छोड़ें। साथ ही साथ साफ-सफाई और खानपान पर विशेष ध्यान दें और प्रदूषण आदि से बचें।

क्षयरोग के प्रकार

आमतौर पर तपेदिक तीन तरह का होता है। जो कि पूरे शरीर को संक्रमित करता है।टी.बी के तीन प्रकार हैं- फुफ्सीय टी.बी, पेट का टी.बी और हड्डी का टी.बी.।तीनों ही क्षयरोग के प्रकारों के कारण, पहचान और लक्षण अलग-अलग होते हैं। इसके साथ ही इन तीनों का उपचार भी अलग-अलग तरह से किया जाता है।क्या आप जानते हैं क्षयरोग की अवस्थाएं भी तीन ही तरह की होती हैं और क्षयरोग के प्रकारों की अवस्थाएं भी अलग ही होती हैं।

क्षयरोग के प्रकारों को कैसे पहचानें

फुफ्सीय क्षय रोग- आमतौर पर टी.बी के इस प्रकार को पहचान पाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि यह अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है और जब स्थिति बहुत अधिक गंभीर हो जाती है तभी फुफ्सीय टी.बी. के लक्षण उभरते हैं। हालांकि यह भी सही है कि फुफ्सीय क्षय रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो लगता है लेकिन हर व्यक्ति और फुफ्सीय टी.बी के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग पाएं जाते हैं। इसमें कुछ सामान्य लक्षण जैसे सांस तेज चलना, सिरदर्द होना या नाड़ी तेज चलना इत्यादि समस्याएं होने लगती हैं।

पेट का क्षय रोग- पेट में होने वाले क्षय रोग को पहचान पाना और भी मुश्किल होता है क्योंकि पेट का क्षय रोग पेट के अंदर ही तकलीफ देना शुरू करता है और जब तक पेट के टी.बी के बारे में पता चलता है तब तक पेट में गांठें पड़ चुकी होती हैं। दरअसल पेट के टी.बी के दौरान मरीज को सामान्य रूप से होने वाली पेट की समस्याएं ही होती हैं जैसे बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द होना इत्यादि।

हड्डी क्षय रोग- हड्डी का क्षय रोग होने पर इसकी पहचान आसानी से की जा सकती हैं क्योंकि हड्डी में होने वाले क्षय रोग के कारण हडि्डयों में घाव पड़ जाते हैं जो कि इलाज के बाद भी आराम से ठीक नहीं होते। शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुंसियां होना भी हड्डी क्षय रोग का लक्षण हैं। इसके अलावा हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं और मांसपेशियों में भी बहुत प्रभाव पड़ता हैं।

तपेदिक के मूल लक्षणों में खाँसी का तीन हफ़्तों से ज़्यादा रहना, थूक का रंग बदल जाना या उसमें रक्त की आभा नजर आना, बुखार, थकान, सीने में दर्द, भूख कम लगना, साँस लेते वक्त या खाँसते वक्त दर्द का अनुभव होना आदि।

टीबी कोई आनुवांशिक (hereditary) रोग नहीं है। यह किसी को भी हो सकता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति तपेदिक रोगी के पास जाता है और उसके खाँसने, छींकने से जो जीवाणु हवा में फैल जाते हैं उसको स्वस्थ व्यक्ति साँस के द्वारा ग्रहण कर लेता है।

इसके अलावा जो लोग अत्यधिक मात्रा में ध्रूमपान या शराब का सेवन करते हैं, उनमें इस रोग के होने की संभावना ज़्यादा होती है। इस रोग से बचने के लिए साफ-सफाई रखना और हाइजिन का ख्याल रखना बहुत ज़रूरी होता है।

अगर किसी को ये रोग हो गया हैं तो वह तुरन्त जाँच केंद्र में जाकर अपने थूक की जाँच करवायें और डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा प्रमाणित डॉट्स (DOTS- Directly Observed Treatment) के अंतगर्त अपना उपचार करवाकर पूरी तरह से ठीक होने की पहल करें।

लेकिन एक बात का ध्यान रखने की ज़रूरत यह है कि टी.बी. का उपचार आधा करके नहीं छोड़ना चाहिए।

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