चलो, अप्रैल फूल बनें।

प्रो. सत्येन्द्र कुमार सिंह, एडिटर-आई.सी.एन. 
नैनीताल। सुप्रभात, हमें कुछ अजब शौक है मूर्ख बनने का। पर इसमें हंसी-ठिठोली का समागम एक मुस्कुराहट तो अवश्य लाती है। होली पर हास्य व्यंग्य और अन्य जगहों पर मूर्ख शिरोमणि की उपाधि का कार्यक्रम, यह बताता है कि एक स्वस्थ मज़ाक को अच्छे अंदाज़ में लेने में हम सक्षम हैं।
इन सबके बीच सोचने की बात यह है कि चंद समय पूर्व जब नकल रोकने की बात हुई तो कितना विरोध हुआ और क्यों हुआ? कौन किसे मूर्ख बना रहा है, सबको पता है और सब बन रहे हैं।
कालाधन किसी को नही चाहिए पर जब उस पर रोक लगे तो दर्द सबको होता है और हम फिर स्वयं को मूर्ख बनाने लगते हैं। टैक्स चोरी और मूर्ख सीनाजोरी, वाह।
सड़क चौड़ा करना अच्छा है और प्रॉपर्टी के रेट पर इसका सकारात्मक असर पड़ता है। वो तो अचल एवम मूर्ख पेड़ है अतः बलि चढ़ेगा ही। पता नही वह पेड़ मूर्ख है या….?
पेपर लीक हो या डाटा। करने वाले भी हम में से ही और भुक्तभोगी भी हम में से ही। व्यवस्था का मूर्ख संचालन और हम भी इसके अटूट अंग तो मूर्ख कौन?
तेज़ रफ़्तार गाड़िया और हेलमेट का प्रयोग नही। सबको वाहन चाहिए किन्तु जाम नही चाहिए, प्रदूषण नही चाहिए। नियम नही चाहिए, दंड नही चाहिए। बस एक मूर्ख सिरोमणि का उपहार चाहिए।
चलो, मूर्ख बने और बनाते रहे। उसको भी और स्वयं को भी।

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