देखो पिता होगा शायद…

आलोक सिंह, न्यूज़ एडिटर, आई.सी.एन. ग्रुप 

वो आज फिर मुस्कुराता हुआ दाखिल हुआ

फिर आज वो बाहर फिर थोड़ा ज़लील हुआ

देखो पिता होगा शायद….

वो आज हमारे लिए मिठाईयां लिए दाखिल हुआ

दोपहर के खाने में फिर उसने आज पानी ही पिया

देखो पिता होगा शायद…

नींद न टूटे मेरी इस लिए खांसने के लिए बाहर गया

रात को आज फिर उसने बिना दवा के गुज़ार दिया

देखो पिता होगा शायद…

जन्मदिन पर तेरे, वो फिर खिलोने ले आया

कड़ी धूप में फिर कुछ मील पैदल चल कर आया

देखो पिता होगा शायद…

शाम को तेरे हज़ार सवालों के वो जवाब ले आया

दफ्तर में फिर आज बॉस के सामने ज़ुबाँ सी लिया

देखो पिता होगा शायद…

वो आज तेरे लिए कपड़े और नए जूट ले आया

टांके जूते में और कुछ पैबंद कपड़ों लगवा आया

देखो पिता होगा शायद…

पूरी ज़िंदगी उस घर को वो एक साथ रख पाया

इसी उधेड़बुन में बाहर घर के ज़िन्दगी गुज़ार गया

देखो पिता होगा शायद…

आप हमको नही समझते कितना उसे मायूस कर गया

इसी इल्ज़ाम से वो रात छत चुपचाप थोड़ा सा कम हो गया

देखो पिता होगा शायद…

सबकी ही नजरों में वो माँ को महान बना गया

खुद के रचे किस्से कहानियों उसे देवी बना गया

देखो पिता होगा शायद…

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