शंघाई। चीन ने पिछले 5 वर्षों में एशिया, पूर्वी यूरोप और अफ्रीका में कई बड़े प्रॉजेक्ट में अरबों डॉलर खर्च कर दिए। बड़ा वैश्विक प्रभाव बनाने के लिए चीन ने ऐसा किया। लेकिन अब चीन ने अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं। चीनी कंपनियों द्वारा किया गया सौदा उसकी बड़ी वैश्विक योजना बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के तहत है। चीनी कंपनियों ने कॉशन नोट जारी करके कहा है कि चीन के संस्थानों को कर्ज देने से पहले सावधान रहना चाहिए और पता लगा लेना चाहिए कि कर्ज वापस मिल पाएगा या नहीं।एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना की चेयरपर्सन हु जियाओलियान ने कहा कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति में बहुत अस्थिरता है और इसमें घाटे की आशंका के साथ ब्याज की दरों में भी तेजी से बदलाव हो रहा है। उन्होंने कहा कि चीन की कंपनियों और बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। चीन ने एजेंसियों से पता करने को कहा है कि कितनी डील हुई हैं, किस देश के साथ हुई है और किस फाइनैंशल टर्म पर की गई हैं। अमेरिका और यूरोप बहुत पहले से चिंतित है कि बेल्ट ऐंड रोड चीन द्वारा आर्थिक शक्ति हथियाने के लिए बनाई गई योजना है। इसमें चीन की सरकार बड़ा धन खर्च कर रही है। इस इनिशिएटिव के तहत चीन सरकार के नियंत्रण वाले कर्जदाता दूसरे देशों को हाइवे, रेल और पावर प्लांट जैसे प्रॉजेक्ट बनाने के लिए कर्ज देते हैं। यह कर्ज इस शर्त पर दिया जाता है कि योजना और निर्माण के कार्य में चीन की कंपनियों को काम दिया जाएगा। इस तरह ये कंपनियां बिजनस करती हैं। वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम हो रही है। अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के चलते इसे घरेलू कर्ज की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है। अब ज्यादातर गतिविधियां बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के तहत होंगी। ज्यादा कर्ज देना कई देशों के साथ रिश्ते खराब भी कर सकता है। मलेशिया और श्री लंका की नई सरकारों ने पूछा भी है कि चीन से इतना ज्यादा कर्ज क्यों लिया जा रही है। चीन के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बेल्ट ऐंड रोड ऐक्टिविटी ज्यादा सफल है। 2018 में चीन की कंपनियों ने 36.2 अरब डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट साइन किए। राष्ट्रपति शी के नेतृत्व में 2013 में शुरू किया गया बेल्ट ऐंड रोड प्रॉजेक्ट ज्यादा सफल लग रहा है। इसके तहत लंबी अवधि के लिए कर्ज दिया जाता है। चीन भी उन देशों को कर्ज देना चाहता है जहां प्राकृतिक संसाधन ज्यादा हैं। अगर वहां से कर्ज वापस नहीं मिल पाता है तो चीन संसाधनों का दोहन कर सकता है।
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