चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इतिहास रच दिया। मसलन हिंदी में कोर्ट के फैसला चाहने वालों के लिए यह अच्छी खबर है। न्यायालयों की भाषा अमूमन अंग्रेजी ही हुआ करती है। स्थानीय अदालत में तो स्थानीय भाषा या हिन्दी में फैसले आपको प्राप्त हो जाते हैं लेकि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय की भाषा आधिकारिक रूप से अंग्रेजी ही है। ऐसे में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस एमएमएस बेदी और जस्टिस हरिपाल वर्मा ने पहली बार हिंदी में फैसले की प्रति मुहैया कराकर न केवल इतिहास रच दिया है अपितु आने वाले समय के लिए एक रास्ता भी बना दिया है। दरअसल, एडवोकेट मनीष वशिष्ठ की मांग पर दोनों जजों की खंडपीठ ने उनको अपना फैसला हिंदी में मुहैया कराया है। अंग्रेजी में उनके 67 पेज के आदेश का हिंदी अनुवाद 114 पेज हाथ से लिखित रूप में उपलब्ध करवाया। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लगभग सभी काम अंग्रेजी में होते हैं। बहस भी अंग्रेजी में की जाती है और फैसले भी अंग्रेजी भाषा में ही सुनाए और लिखे जाते हैं। नारनौल बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान एवं एडवोकेट नवीन वशिष्ठ ने हाईकोर्ट से अपने खिलाफ जारी आदेश को हिंदी में देने की मांग की थी।जस्टिस एमएमएस बेदी एवं जस्टिस हरिपाल वर्मा की खंडपीठ ने 31 मई को आपराधिक अवमानना मामले में नवीन को 67 पेज का फैसला अंग्रेजी में उपलब्ध करवाया था। वशिष्ठ ने खडपीठ से निर्णय के हिंदी अनुवाद की मांग करते हुए कहा था कि भले ही वह अधिवक्ता हैं लेकिन उसकी शिक्षा दीक्षा हिंदी में हुई है। हिंदी उसकी मातृभाषा है। इसके अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता की धारा 363(2) के प्रावधान के अनुसार वह फैसले का हिंदी अनुवाद लेने का अधिकारी है। वशिष्ठ की इस अपील पर हाईकोर्ट ने उनको निर्णय का हस्तलिखित हिंदी अनुवाद उपलब्ध करवा दिया।
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