“अपना ही भाई है “

आलोक सिंह, एडिटर-आई.सी.एन.

आज वक़्त की सरहदों से फिर आवाज़ आयी है

दूर खड़ा सरहदों पे ताने सीना अपना ही भाई है

छोड़ कर घर गली नुक्कड़ वो सीमा पे जा बैठा है

इस देश की सिपहसलारी करता अपना ही भाई है

आज वक़्त…

राखी दूज और त्योहार छोड़े वो बेखौफ खड़ा है

शान पे माँ भारती की मर-मिटता अपना ही भाई है

आज वक़्त…

बिन देखे मासूम को अपने वो आगे ही बढ़ा है

तुम्हारे सायों के लिये लड़ता अपना ही भाई है

आज वक़्त…

आसानी से क्यों भूल जाते जो उसने दिया है

बेपरवाह खाक़ में मिल जाता वो अपना ही भाई है

आज वक़्त …

वजह वो तुम्हारे विजय दिवस की बन जाता है

जिसकी शहादत का हिसाब मांगते हो अपना ही भाई है, अपना ही भाई है

आज वक़्त…

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