नई दिल्ली। देश के 30 साल पुराने भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों में जिन बदलावों पर संसद ने मुहर लगाई है, उनसे ब्यूरोक्रेसी का चेहरा खिल गया है, लेकिन इनके चलते जांच एजेंसियों की मेहनत बढ़ जाएगी। इन एजेंसियों को अब किसी ब्यूरोक्रेट से पूछताछ करने के लिए भी सरकार से इजाजत लेनी पड़ेगी।सीबीआई के एक पूर्व निदेशक ने कहा, सीबीआई तो सरकार से मंजूरी मांगने के लिए ही दौड़ती रहेगी। उन्होंने कहा, पहले वाले सिंगल डायरेक्टिव 6ए प्रोविजन से भी बुरी स्थिति अब हो गई। पहले वाले प्रोविजन के मुताबिक जॉइंट सेक्रेटरी या इससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले सीबीआई को सरकार से मंजूरी लेनी होती थी। उस सेक्शन को सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में रद्द कर दिया था। उन्होंने कहा, संशोधित भ्रष्टाचार निरोधक कानून में अब नए सेक्शन 17ए के चलते सीबीआई को किसी भी ब्यूरोक्रेट के खिलाफ जांच से पहले मंजूरी मांगनी होगी, चाहे वह ब्यूरोक्रेट किसी भी लेवल का हो। सीबीआई के एक अन्य डायरेक्टर ने कहा कि नए प्रावधान से जांच की गोपनीयता भी प्रभावित हो सकती है। सीबीआई ने इस प्रावधान पर अपना विरोध संसद की सेलेक्ट कमेटी के सामने 2016 में जाहिर भी किया था। सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई ने कहा था कि इससे जांच में अनावश्यक देर हो सकती है। अमिताभ कांत और अनिल स्वरूप जैसे रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स ने हालांकि इस बदलाव का स्वागत किया है। कांत ने कहा कि सेक्शन 17 ए से ड्यू डिलिजेंस की एक लेयर जुड़ेगी, जिसकी सख्त जरूरत थी। वहीं स्वरूप ने कहा कि इन बदलावों से ईमानदार अधिकारियों को बेजा परेशान नहीं किया जा सकेगा और निर्णय करने की प्रक्रिया में तेजी आएगी। हर स्तर के ब्यूरोक्रेट्स के लिए जांच के स्तर पर इस प्रोटेक्शन का इंतजाम मोदी सरकार ने किया है। पिछली यूपीए सरकार ने 2013 में संसद में जो भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक पेश किया था, उसमें इस प्रोटेक्शन का प्रावधान नहीं था। हालांकि 2013 वाले विधेयक में सेक्शन 6ए के प्रावधानों के दायरे में ज्वाइंट सेक्रेटरी और उससे ऊपर के लेवल से रिटायर हुए अधिकारियों को भी लाने की बात थी। संसद की एक स्थायी समिति ने फरवरी 2014 में अपनी रिपोर्ट में सेक्शन 6ए में बदलावों को हटाने का प्रस्ताव रखा था क्योंकि इस सेक्शन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 6ए को रद्द घोषित कर दिया था और कहा था, इससे करप्ट सीनियर ब्यूरोक्रेट्स को दबोचने में बाधा पड़ती है क्योंकि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना सीबीआई प्राथमिक जांच भी नहीं कर सकती।
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