सत्येन्द्र कुमार सिंह, लिटरेरी एडिटर-ICN
बचपन में
इठलाते-बलखाते,
कदमो से
करते चहलकदमी हम ।
तुतलाती किलकारियों की
गवाह यह चारदीवारी,
आज विभाजित होती
ममता दीवारों के बीच।
संशय भरी
आँखों से
ताकती माँ,
अपने हिस्से का बँटवारा ।
चलो,
एक बात
तो पुख्ता हो गई
कि
ममता की तकलीफ
का
कोई इतवार नहीं|