आलोक सिंह, एडिटर-ICN
तुम चली आना उसी गली में जहाँ छोड़ा था
तेरे इंतेज़ार में वो चाँद अब भी वहीं खड़ा है
रोज़ थोड़ा थोड़ा वो कम होता जाता है
देखो, बेशर्म सा वो चाँद अब भी वहीं खड़ा है
तुम चली…
मद्धम रोशनी में पूनम से अमावस हो जाता है
सियाह रात से लड़कर चाँद अब भी वहीं खड़ा है
तुम चली…
छत पर पड़ी ख़ामोश दरी को ताकता रहता है
किसी रोज़ लौटोगे छत पर,चाँद अब भी वहीं खड़ा है
तुम चली…
काले घने बादलों में वो चुपचाप गुम हो जाता है
बिखरते बादलों से झाँकता वो चाँद अब भी वहीं खड़ा है
तुम चली…