देह व्यपार की दुनिया का काला सच दिखाती : पाखी

सेंसर : A सर्टिफ़िकेट 

अवधि : १०१ मिनट 

रेटिंग : ३ स्टार 

इस सप्ताह लेख़क निर्देशक सचिन गुप्ता की फिल्म पाखी रिलीज हुई है।  दरअसल यह फ़िल्म १० अगस्त को ही प्रदर्शित होनी थी लेकिन सेंसर बोर्ड की आपत्तियों के बाद फ़िल्म की रिलीज आगे बढ़ा दी गयी थी।  फिल्म शुरू होती है एक बेहद ही सकरे गलियारे से जो वेश्यावृति के बाजार तक जाता है  , एक ऐसा रास्ता जहाँ कोई लड़की नहीं जाना चाहती है। लाल पिले और नीले रंगो की रौशनियों में डूबे इस चकले को राजनैतिक संरक्षणप्राप्त बाली ( सुमितकांत कौल ) चलाता है।  पाखी ( अनामिका शुक्ला ) को उसका प्रेमी मॉडल बनाने के सपने दिखाकर देह व्यापार के इस काले बाजार तक पहुंचा देता है बाली  बहुत ही क्रूर और हिंसक है  कोठे पर ग्राहक की बात नहीं माननेवाली लड़कियों को बलि की निर्दयता का सामना करना पड़ता है।

पाखी (अनामिका शुक्ला )  इस जिस्म फ़रोशी के व्यवसाय में आकर फंस जाती है बाली उसे अपनी किस्मत के लिए अच्छा मनाता है पाखी को और लड़कियों के मुकाबले ज़्यादा तहजीब देता है।  फ़िल्म में घटनायें बदलनी शुरू होती है जब १० साल की बच्ची पीहू , उसकी बड़ी बहन और उसके भाई मौलिक ( अनमोल गोस्वामी ) को उनके करीबी रिश्तेदार इसी चकले में बेच कर चले जाते है। पीहू और उसकी बड़ी बहन के जिस्मफरोशी के व्यापार में जाने का विरोध करने पर मौलिक को बाली को बर्बरता का समाना करना पड़ता है।

मौलिक अपनी छोटी बहन पीहू को लेकर इस चकले से निकलने को कोशिश में असफल रहता है उसके साथ चकले में कुछ लड़किया और लोग साथ में हैं।  इस बीच बाली १० वर्षीय पीहू की शादी अपने हैदरबाद के एक अधेड़ उम्र के ग्राहक ( सिकन्दर खान ) के साथ तय कर देता है।  इसके बाद पाखी इस शादी का विरोध करती है और बाली से कहती हैकि पीहू बच्ची है लेकिन पैसे और और देह व्यपार के विस्तार के सपने में डूबा बाली पाखी पर भी अपना अत्याचार बढ़ा देता है।

जिस्मफरोशी की इस अँधेरे में पाखी , पीहू के साथ कई और जिंदगियां भी नर्क में है , क्या पाखी अपनी कर्क  ज्यादा बुरी जिंदगी से बहार आएंगी। एक अधेड़ उम्र के मनोरोगी से १० वर्षीय पीहू को  बचा पाएगी इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी

फिल्म का निर्देशन बेहद कलात्मक है  फिल्म की कहानी बेहद ही दुःख से भरी है लेकिन निदेशक ने चकलो और कोठो की तंग और घुटन भरे कमरों को बेहद चटकीले रंगो और रोशनियों से भर दिया है लड़कियों पर बाली के क्रूर व्यवहार को बहुत ही सयमित तरीके से दिखाया है साथ ही निर्देशक ने देह व्यापार किस तरह से अपनों की वजह से लड़किया फँस जाती है कामयाब रहे है। देह व्यापार में फंसने के बाद निकलना लगभग नामुनकिन होता है घटनाओं के जरिये निर्देशक यह बताने में सफल रहे है। फिल्म का संगीत फिल्म को कहानी को आगे बढ़ाने में अहम् साबित होता है। विशेष तौर पर प्रतीक्षा श्रीवास्तव की आवाज में गीत  “गुम है कहाँ” गाना याद रह जाता है।

फ़िल्म में बाली का क़िरदार  निभा रहे सुमितकांत कौल की यह पहली फ़िल्म है लेकिन रंगमंच का अनुभव ने उनकी परफॉर्मेंस में मदद की है परदे पर वह प्रभावशाली नज़र आते है।  बाली बहुत ही निर्मम और क्रूर है  फिल्म की कुछ दृश्य में बाली में नाटकीयता ज्यादा बढ़ जाती है लेकिन एक बेहद क्रूर और अत्याचारी की छवि को परदे पर फ़िल्म में पाखी का किरदार निभा रही अनामिका शुक्ला ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है वह बहुत ही सहज है इस फिल्म से पहले कुछ वेबसीरीज में अभिनय कर चुकी अनामिका  फिल्म के दूसरे भाग में पूरी तरह निखरकर आती है।  १० वर्षीय लड़की की किरदार में पीहू और उसके भाई मौलिक  के क़िरदार में अनमोल गोस्वामी ने भी प्रभावशाली अभिनय किया है।  फ़िल्म में हैदराबादी अधेड़उम्र के क़िरदार में सिकंदर खान सबसे ज्यादा तारीफ़ के काबिल है।

पाखी समाज में बाल तस्करी और वैश्यावृति जैसी सामजिक बुराइयों की गहराई तक फैली जड़ों और अँधेरी में फैली जिन्दगियो के दर्द को दिखाने में सफल रहती है साथ ही इस बुराई से बाहर आने के लिए एक रौशनी की हल्की भी दिखाती है।

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