तिरूवनंतपुरम। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद पिछले पांच दिनों में कोई भी महिला सबरीमाला मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकी और आज से भगवान अयप्पा मंदिर का द्वार एक महीने के लिए बंद हो जाएगा. अब तक दो पत्रकारों समेत सात महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन प्रदर्शनकारियों के कड़े विरोध पर उन्हें प्रवेश किए बिना ही लौटना पड़ा.रविवार को भगवान अयप्पा के श्रद्धालुओं ने तीन तेलुगु भाषी महिलाओं को मंदिर तक जाने वाली पहाडिय़ों पर चढऩे से रोक दिया था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले महीने 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं के भगवान अयप्पा के मंदिर में दर्शन पर लगी सदियों पुरानी रोक हटाने संबंधी फैसला देने के खिलाफ प्रदर्शनकारियों ने अयप्पा मंत्रोच्चारण करते हुए महिलाओं को पहाड़ी पर चढऩे से रोक दिया.जबकि पत्रकारों समेत कुछ अन्य महिलाओं ने भी मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन्हें मंदिर से पहले ही मैदान में रोक दिया और कहा कि वे परंपरा को तोडऩे की अनुमति नहीं देंगे. इस मामले पर केरल बीजेपी ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग करते हुए विशेष विधानसभा सत्र की मांग की है. जबकि कांग्रेस ने एनडीए सरकार से अध्यादेश मांगा है.सबरीमाला मंदिर के पारंपरिक संरक्षक पांडलम के शाही परिवार ने आरोप लगाया कि सरकार महिलाओं को लेकर नैष्ठिक ब्रह्मचारी मंदिर की पवित्रता को नष्ट करने की कोशिश कर रही थी.रविवार को एक महिला जब मंदिर तक जाने वाली पहाडिय़ों पर चढ़ रही थी तब प्रदर्शनकारियों ने उसे घेर लिया और पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा. महिला की उम्र 46 वर्ष होने का पता चलने के बाद प्रदर्शनकारियों ने उन्हें वापस जाने के लिए कहा. इस दौरान महिला का प्रदर्शनकारियों से वाद-विवाद हुआ जिसके बाद वह बेहोश हो गईं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया.उस दौरान वहां उपस्थित एक बुजुर्ग महिला भक्त ने कहा कि महिला के पहचान पत्र से पता चला कि उनका जन्म 1971 में हुआ था. जिसके कारण प्रदर्शनकारियों ने उसे प्रवेश नहीं करने दिया. अन्य दो महिलाओं को भी मंदिर के तलहटी पर रोक दिया गया. महिलाओं के साथ उनके रिश्तेदार भी थे.महिलाओं को सुरक्षित ले जाने वाली पुलिस ने बताया कि महिलाओं को मंदिर के रीति रिवाजों के बारे में जानकारी नहीं थी. जबकि जो महिला प्रतिबंधित आयु वर्ग में नहीं थीं, उन्हें पवित्र पहाडिय़ों पर चढऩे की इजाजत थी. मामले पर सीपीआई (एम) के सदस्य एस रामचंद्रन पिल्लई ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वाले भक्त अल्पसंख्यक थे और उन्हें पूरे केरल समाज का समर्थन नहीं मिला था. उन्होंने सबरीमाला पर कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था.
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