By: Amit Pandey, Asstt. Editor-ICN Uttarakhand
‘उत्तराखंड में पीरियड्स के दौरान महिलाओं के अलग रहने के लिए सरकारी पैसे से बन रहा सेंटर’
नैनीताल। उत्तराखंड में पीरियड्स के दौरान महिलाओं के अलग रहने के लिए सरकारी पैसे से बन रहा सेंटर, उत्तराखंड के चंपावत जिले के दूरदराज गांव गुरचम में सरकारी फंड से एक ऐसी इमारत बनवाई जा रही है, जहां पीरियड्स के दौरान घर से बाहर रहने को मजबूर महिलाओं और लड़कियों को अस्थायी तौर पर यहां रखा जाएगा.दुनिया बदली, परंपराएं, रूढ़ियां, सोच सब कुछ बदला; लेकिन महिलाओं के पीरियड्स (मासिक धर्म) को लेकर लोगों की सोच अभी तक नहीं बदली.
पीरियड्स को आज भी अपवित्रता से जोड़कर देखा जाता है. उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है. यहां के चंपावत जिले के कई गांवों में पीरियड्स के दौरान महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. पीरियड्स के दौरान यहां लड़कियों और महिलाओं को घर से बाहर अलग रहना पड़ता है.
सरकार भी कहीं न कहीं इस सोच को बढ़ावा दे रही है.दरअसल, चंपावत जिले के दूरदराज गांव गुरचम में सरकारी फंड से एक ऐसी इमारत बनवाई जा रही है, जहां पीरियड्स के दौरान घर से बाहर रहने को मजबूर महिलाओं और लड़कियों को अस्थायी तौर पर यहां रखा जाएगा. ये मामला तब सामने आया, जब गांव के एक दंपती ने मेंस्ट्रूएशन सेंटर के निर्माण को अवैध ठहराते हुए जिलाधिकारी (डीएम) से इसकी शिकायत की.
‘अपवित्रता’ नहीं, महिलाओं के शरीर की अहम प्रक्रिया है पीरियड्स
जिलाधिकारी रनबीर चौहान के अनुसार ‘गुरचम जैसे रिमोट गांव में मेंस्ट्रूएशन सेंटर के बारे में सुनकर ताज्जुब लगता है. इसे लेकर एक दंपती की शिकायत आई है. इस सेंटर में पीरियड्स के दौरान महिलाओं को वाकई रखा जा रहा है कि नहीं, इसकी जांच की जाएगी.’
वहीं, एक अधिकारी का कहना है कि सरकार ने संबंधित गांव में विकास कार्यों के लिए फंड अलॉट किए थे. इस फंड से अगर मेंस्ट्रूएशन सेंटर बनवाया जा रहा है, तो ये अवैध है. शिकायत की गहनता से जांच होगी.
मेंस्ट्रूएशन सेंटर का विचार काफी हद तक नेपाल के ‘पीरियड्स हट’ जैसा है. दरअसल, नेपाल में सदियों से छौपदी प्रथा चली आ रही है. छौपदी का मतलब है अनछुआ. इस प्रथा के तहत पीरियड या डिलिवरी के चलते लड़कियों को अपवित्र मान लिया जाता है.
इसके बाद उन पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं. वह घर में नहीं घुस सकतीं. बुजुर्गों को छू नहीं सकती. खाना नहीं बना सकती और न ही मंदिर और स्कूल जा सकती हैं. छौपदी को नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में गैरकानूनी करार दिया था, लेकिन फिर भी ये जारी है.