एफपीआई- एनआरई रूट के मर्जर पर आरबीआई को ऐतराज

मुंबई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को सेबी के प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) और फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर (एफपीआई) रूट से आनेवाले इनवेस्टमेंट को मिलाने के प्रस्ताव पर ऐतराज है। यह जानकारी मामले से वाकिफ कम-से-कम तीन सूत्रों ने दी है। दोनों रूट को मिलाने का जो प्रस्ताव पेश किया गया है, रिजर्व बैंक उसके खिलाफ इसलिए है क्योंकि दोनों तरह के निवेश के नियम अलग हैं। उसका कहना है कि इसलिए इन्हें मिलाने से रेगुलेशन को लेकर उलझन बढ़ेगी।प्रवासी भारतीय नॉन-रेजिडेंट एक्सटर्नल रुपी (एनआरई) रूट से भी देश में निवेश करते हैं। आरबीआई के सामने यह सवाल है कि इसे अगर एफपीआई रूट से मिला दिया जाता है तो एनआरई पर कौन से रूल लागू होंगे? एनआरआई और एफपीआई पर अलग-अलग इनवेस्टमेंट लिमिट लगाई गई है। इनवेस्टमेंट रूट को मिलाने पर इस लिमिट की निगरानी की चुनौती भी बढ़ जाएगी। विदेशी निवेशकों की निगरानी जहां सेबी करता है, वहीं एनआरआई निवेश को रिजर्व बैंक रेगुलेट करता है।आरबीआई ने एच आर खान कमेटी की मीटिंग में ये मुद्दे उठाए हैं। सेबी की बनाई इस समिति की बैठक जनवरी के आखिर में हुई थी। इस खबर के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब खबर लिखे जाने तक आरबीआई से नहीं मिला था। एनआरआई और एफपीआई रूट को मिलाने सहित खान कमेटी के अन्य प्रस्ताव को सेबी ने मंजूर कर लिया है। पिछले साल 10 अप्रैल को सेबी ने एक सर्कुलर जारी कर एनआरआई निवेश पर सख्ती बढ़ाई थी, जिससे विदेशी फंड्स में घबराहट फैल गई थी। उस समय एनआरआई निवेशकों ने कई सवाल खड़े किए थे, जिन पर विचार करने के लिए खान समिति बनाई गई थी।एफपीआई अपने कस्टोडियन के मार्फत (इनमें खासतौर पर विदेशी बैंक आते हैं) भारत में शेयर खरीद या बेच सकते हैं, जबकि एनआरआई को चुनिंदा बैंकों के जरिये ही निवेश करने का अधिकार मिला हुआ है। इनका रेगुलेशन आरबीआई की पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट स्कीम (पीआईएस) के जरिये होता है। एनआरई एकाउंट का इस्तेमाल रियल एस्टेट खरीदने और फिक्स्ड डिपॉजिट के अलावा अन्य निवेश में होता है।

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