चिकित्सकों ने किया देवताओं के वैद्य सर्वदेव धन्वंतरि देवता के मंदिर का निर्माण, डॉ रमा श्रीवास्तव एवं डॉ मनोज कुमार की पहल

सत्येंद्र कुमार सिंह & डॉ प्रांजल अग्रवाल
लखनऊ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धन्वंतरि, भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय शरद त्रयोदशी को हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था। भगवान धन्वंतरि की चार भुजायें है। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।इन्‍हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे।कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।सीतापुर रोड, लखनऊ में बनौगा गांव में सर्वदेव धन्वंतरि जी के मंदिर में देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा तथा यज्ञ समारोह का आयोजन किया गया।आईएमए पूर्व अध्यक्ष डॉ पी.के. गुप्ता भी रहे मौजूद।

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