मुफ्तखोरी को बढ़ावा देती हमारी सरकारें

होशियार सिंह, संवाददाता दिल्ली, ICN
पिछले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का कर्जा माफ़ का दावा कामयाब होने के साथ ही केवल भाजपा द्वारा ही नही बल्कि कांग्रेस द्वारा भी मुफ्त खोरी को बढ़ावा देने की योजनओं को चुनावी वायदो के रुप मे सामने लाया जा रहा है। जैसे ही केंद्र सरकार द्वारा गरीब किसानों को प्रतिवर्ष छ हजार रुपये देने की योजना को क्रियान्वित किया गया उसी को देखते हुए राहुल गांधी ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों की तरह गरीबो हटाओ का नारा देते हुए प्रतिवर्ष गरीब परिवार को 72 हज़ार रुपए सालाना देने की घोषणा कर दी। चुनावों में इसका असर क्या होगा क्या नहीँ ये आने वाला समय ही बताएगा लेकिन देशभर के बुद्धिजीवियों में एक बहस छिड़ गयी है।
आर्थिक समस्या का रोना रोकर सरकार नए रोजगार सृजन के बजाय सरकारी कामकाज को भी को भी भेट चढ़ा रही है। 72 हज़ार रुपये सालाना किसी भी गरीब परिवार को देने के बजाय उसी परिवार के किसी भी सदस्य को सरकार क्या नौकरी या रोजगार मुहैया नही करा सकती। आज हम sustainaibility की बात करते हैं, क्या किसी भी व्यक्ति या परिवार को आर्थिक मदद दे कर sustainable बनाया जा सकता है। sustainability के लिए रोजगार सृजन करने की जरूरत है, नौकरियों की जरूरत है। sustainable development का सबसे अच्छा उदाहरण दिल्ली की AAP सरकार ने दिया है शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी जैसी आधारगत सुविधाएं मुहैया कराने में। मनरेगा जैसी गरीबी उन्मूलन की और भी योजनाओं की जरूरत है देश को समृद्ध करने के लिए।
जरूरत है गरीबी उन्मूलन योजनाओं को और पारदर्शी बनाने की ताकि गरीब के लिए दिया गया पैसा उस गरीब तक पहुँच सके। आज हम उस देश में रह रहे हैं जहां विभिन्य राज्यों में गरीब के लिए दिए गए 1 रुपये में कितना पैसा उन तक पहुँच पा रहा है उस पर चर्चा होती है। बहुत प्रगतिशील राज्य दावा करते हैं कि गरीब को दिए हुए 1 रुपये में से 85-90 पैसे उन तक पहुच पाते है, बाकी राज्यों में शायद इसका आधा भी गरीब के पास नही पहुँचता। सवाल है कि बाकी के पैसे अगर गरीब के पास नही पहुचते तो जाते कहाँ हैं? वास्तविकता यही है कि गरीबों के लिये योजनाएं चला कर सरकारें खुद ही मलाई चट कर जाती हैं।
मनरेगा योजना भी गरीब के विकास के बजाय भ्रष्टाचार की वजह से ज्यादा चर्चित रहा। मध्यप्रदेश, राजस्थान में किसानों की कर्ज माफी का मामला अभी शुरू ही हुआ था कि उसमें भी भ्रष्टाचार की शिकायत आने लगी है। सबसे बड़ा सवाल है की हर साल तीन लाख साठ हजार करोड़ की भारी-भरकम राशि कहाँ से लेकर आयेगे? क्या अन्य मदो से धन की कसौटी की जायगी? बरोजगारी इस देश का ज्वलंत मुद्दा है और आज़ादी के बाद से वर्तमान तक सारी सरकारें बेरोजगार की समस्या से निपटने में विफल रही हैं। हमने brain-drain की बात तो की पर टैलेंट्स का इस्तेमाल करने में पूरी तरह से असफल रहे हैं। जहाँ हमारे देश में डिस्लेक्सिया पर आज भी मजाक बनाया जाता है, हमारे साथ ही या हमसे बाद स्वतंत्र हुए देश अपने dyslexic पापुलेशन को ना सिर्फ रोजगार देने में सफल हुए हैं बल्कि उनका नार्मल लोगों से भी बेहतर इस्तेमाल किया है। हम आज भी अपने पढ़े लिखे नौजवानों के रोजगार और नौकरी की सिर्फ बात करने में लगे हैं।
बेरोजगारी को मुद्दा बनाती कांग्रेस क्या नए रोज़गार का सृजन कर पाएगी? पिछली कांग्रेस सरकारें तो विफल ही रही है, नए कांग्रेस अध्यक्ष की बातों में बेरोजगार युवाओं के लिए एक पीड़ा तो जरूर नजर आती है, सफलता कितनी मिलेगी ये तो आने वाला वक़्त ही तय करेगा।

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