राणा अवधूत कुमार, ICN बिहार
2014 में पहली बार भाजपा के दिग्गज नेता भोला सिंह ने खिलाया था कमल।
1989 के जनता लहर में कांग्रेस का टूटा तिलिस्म, भाजपा की स्थिति मजबूत।
1952 से लेकर 2014 तक बेगूसराय लोकसभा से चुनकर गए हैं कुल 12 सासंद।
कांग्रेस की गढ़ रही बेगूसराय में वामपंथियों का है पूरा प्रभाव, राजद भी कतार में।
लोकसभा चुनाव में बिहार की बेगूसराय सीट, जी वहीं बेगूसराय जो राष्ट्रकवि दिनकर की कर्मभूमी है। लोकसभा चुनाव में यहां इस बार मुकाबला रोचक होने के पूरे आसार हैं। भाजपा के सांसद व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, महागठबंधन के डॉ. तनवीर हसन और भाकपा के कन्हैया कुमार यहां से मुख्य प्रत्याशी हैं।भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह हिन्दू राष्ट्रवाद की बात करते हैं और विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की सलाह देते हैं तो दूसरी तरफ कन्हैया कुमार पर देशद्रोह के आरोप लग चुके हैं और वो सत्ता पक्ष को फ़ासीवादी ताक़त क़रार देते हैं। इन दोनों के बीच बेगूसराय की लड़ाई की संभावना के बाद बेगूसराय सीट अब लोकसभा चुनावों में देश की सबसे हॉट सीट बन चुकी है। जिस पर देश भर की नज़रें टिकी हुई है। दो धुर-विरोधी विचारधारा के उम्मीदवारों के आमने-सामने होने से बेगूसराय ‘हॉट’ सीट बन गई है। दूसरी ओर राजद ने यहां से तनवीर हसन को मैदान में उतारा है, जिससे बेगूसराय का मुकाबला त्रिकोणीय होने के साथ ही काफी रोमांचक हो गया है।
दरअसल, बेगूसराय सीट से कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने से यहां की राजनैतिक चेतना जाग चुकी है। यूं कहें कि बनारस के बाद यदि किसी सीट की चर्चा है तो वह बेगूसराय सीट है। देश की मीडिया, चिंतकों, बुद्धिजीवियों, युवा वर्ग की सक्रियता बेगूसराय की ओर बढ़ गई है। मौजूदा हाल है कि देश के कई राज्यों से चुनाव विश्लेषक बेगूसराय में डेरा डाले हुए हैं। देश के विभिन्न भागों से विचारकों, चिंतकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का जमावड़ा भी यहां बढ़ने लगा है। बेगूसराय में पहले से ही वाम प्रगतिशील विचारधारा का प्रभाव रहा है। पूर्व में इस सीट पर वामपंथ ने जीत भी हासिल किया है। तीनों प्रमुख उम्मीदवारों के नामांकन के बाद से बेगूसराय का सियासी तापमान बढ़ गया है। कई नामचीन हस्तियां चुनाव प्रचार के लिए आ रही हैं, जिनमें बॉलीवुड के कलाकार शामिल हैं। अभिनेत्री शबाना आजमी, जावेद अख्तर और प्रकाश राज यहां चुनाव प्रचार के लिए पहुंच चुके हैं। कन्हैया के नामांकन के समय भी बॉलीवुड कलाकारा स्वरा भाष्कर (JNU की पूर्व छात्रा), गुलमेहर कौर, गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी उनके साथ में थे।
वैसे बेगूसराय पिछले साल से ही सुर्खियों में आया था। जब जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व चर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार ने यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। इसके बाद यह कयास लगाए जाने लगे थे कि वह महज भाकपा के उम्मीदवार होंगे या महागठबंधन के साझा प्रत्याशी। तालमेल नहीं होने पर अब वह सिर्फ भाकपा के प्रत्याशी हैं। उधर, भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को इस बार नवादा की बजाय बेगूसराय से चुनाव में उतारने से यहां मुकाबला रोचक हो गया है। राजद से महागठबंधन के उम्मीदवार डॉ. तनवीर हसन जातीय समीकरण में उपरोक्त दोनों से मजबूती से लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाने की पूरी कोशिश में हैं। वैसे पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाले डॉ. तनवीर हसन को 369892 मत प्राप्त हुए थे। वहीं तीसरे नंबर पर कम्युनिस्ट उम्मीदवार रहे कॉमरेड राजेंद्र सिंह को 192656 वोट प्राप्त हुए थे। इन्हीं वोटों की बदौलत बेगूसराय में सीपीआई अपने पुराने दिन में लौटने और बिहार में पांव जमाने की कोशिश हैं।
कभी कांग्रेस का गढ़ रहे बेगूसराय (पूर्व में बलिया और बेगूसराय) संसदीय क्षेत्र पर कांग्रेस, समाजवादियों और वामपंथियों का कब्जा रहा है। देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा 2014 में पहली बार बेगूसराय में जीत हासिल की. यहां राजद, जदयू, कम्युनिस्ट जैसी क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। 1991 के बाद भाजपा ने तो बेगूसराय में कभी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे। भाजपा इसके बाद हर चुनाव में यह सीट अपने सहयोगी जदयू को दे दी है। 2014 में भाजपा के भोला सिंह डॉ. तनवीर हसन को कम ही वोटों से हराकर सांसद बने, भोला सिंह की पिछले वर्ष निधन होने के बाद यह सीट खाली थी। इस बार काफी मान-मनौवल के बाद एनडीए गठबंधन की ओर से गिरिराज सिंह तो महागठबंधन की ओर से डॉ. तनवीर हसन को प्रत्याशी बनायी है। लड़ाई को रोचक बनाया हैं जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष डॉ. कन्हैया कुमार ने। संपत्ति के मामले में बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह राजद और राजद प्रत्याशी डॉ. तनवीर हसन कम्युनिस्ट उम्मीदवार से भारी साबित होते हैं। वहीं शिक्षा के मामले में सीपीआई के डॉ. कन्हैया कुमार व राजद प्रत्याशी डॉ. तनवीर हसन पीएचडी धारक हैं तो बीजेपी के गिरिराज सिंह स्नातक पास हैं।
1952 से 1984 तक कांग्रेस इस सीट पर रही थी हावी
कभी कांग्रेस की गढ़ रही बेगूसराय सीट पर भाजपा के दिवंगत नेता भोला सिंह ने यहां पहली बार कमल खिलाया था। इस चुनाव उन्होंने राजद के डॉ. तनवीर हसन को कड़े मुकाबले में पटखनी दी थी। भोला सिंह भाजपा के उन चंद नेताओं में थे जो गलत होने पर आलाकमान के सामने भी आवाज़ उठाने में पीछे नहीं रहते थे। 1952 से 1971 तक कांग्रेस के मथुरा प्रसाद मिश्र चार बार सांसद बने। 1967 में कांग्रेस हराओ देश बचाओ आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी के योगेंद्र शर्मा यहां से पहली बार सांसद बने। उसके बाद से ही कम्युनिस्ट पार्टियों का यहां प्रभुत्व बढ़ता गया। हालांकि बीच-बीच में कांग्रेस वापसी भी करती रही लेकिन 1996 में कम्युनिस्ट दलों के समर्थन से ही निर्दलीय रमेंद्र कुमार यहां से सांसद बन गए। 1971 और 1977 में कांग्रेस के श्याम नंदन मिश्र दो बार यहां से सांसद बने। 1980-84 में कांग्रेस के दिग्गज नेता कृष्णा साही लगातार दो बार सांसद बने। इसके बाद 1991 में कृष्णा साही तीसरी बार सांसद बने। इसके बाद हर चुनाव में यहां से अलग-अलग दलों के प्रत्याशी सांसद बने।
1989 से बेगूसराय से लगातार बदल रहे हैं सांसद
बेगूसराय संसदीय क्षेत्र देश के उन कुछ चुनिंदा लोकसभा सीटों में है जहां देश भर की मीडिया और राजनैतिक विश्लेषकों की नज़रें बनी हुई हैं। यदि इसके अतीत में जाए तो 1989 के पहले कुछ सांसदों को छोड़ दें तो किसी सांसद को दो बार यहां से प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला है। 1989 में जनता दल की लहर में ललित विजय सिंह सांसद बने। 1991 के चुनाव में कांग्रेस के कृष्णा साही ने वापसी करते हुए इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। 1996 में वामपंथियों के सहयोग से निर्दलीय रमेंद्र कुमार पहली बार सांसद बने। 1998 में राजो सिंह ने कांग्रेस की बेगूसराय में पुनः वापसी कराई। 1999 में राजद के राजबंशी महतो पहली बार यहां से सांसद बने। 2004 में जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह जदयू की टिकट पर कांग्रेस के कृष्णा साही को हरा कर सांसद बने। 2009 में परिसीमन होने के बाद बेगूसराय में जदयू के डॉ. मोनाजिर हसन सीपीआई के शत्रुघ्न सिंह को हरा कर सांसद बने। 2014 में मोदी लहर पर सवार नवादा से आए भाजपा के भोला सिंह ने राजद के डॉ. तनवीर हसन को हराकर बेगूसराय में पहली बार कमल खिलाया।
इस बार भाजपा-राजद-सीपीआई में है त्रिकोणात्मक मुकाबला
17 वीं लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर से भाजपा प्रत्याशी फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह व महागठबंधन की ओर राजद प्रत्याशी डॉ. तनवीर हसन के बीच सीपीआई के प्रत्याशी कन्हैया कुमार ने बेगूसराय के मुकाबले को रोचक बना दिया है। लोगों से चंदा मांगकर चुनाव में उतरे कन्हैया को बेगूसराय में युवाओं में अच्छी तरजीह मिल रही है। उनके नामांकन में भी भारी भीड़ दिखी थी, जिसमें हर वर्ग के लोग शामिल थे। कन्हैया द्वारा चुनाव प्रचार और डफली के माध्यम से आज़ादी की मनुहार लोगों को विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं और बुज़ुर्गों को आकर्षित कर रही है। कन्हैया की जनसभाओं या नुक्कड़ सभा में बढ़ती भीड़ को देख वामपंथ की उम्मीद बिहार में कम से कम एकाध सीटों पर बन गयी हैं। एक सीट आरा के बाद अब बेगूसराय में। दोनों गठबंधनों की ओर से जातीय समीकरण को ध्यान में रख प्रत्याशियों का चयन किया गया है। लेकिन इन तीनों उम्मीदवारों की लड़ाई में जनता दिग्भ्रमित नजर आ रही है। कारण कि भूमिहारों के मतों में जहां बिखराव होने की पूरी संभावना है। वहीं डॉ. तनवीर हसन की पिछले चुनाव में बेहतर स्थिति को देख मुकाबला रोचक होने की पूरी संभावना है। राजद जहां यादव, मुस्लिम, मल्लाह व कुशवाहा वोट के सहारे ही चुनावी जीत के मंसूबे पाले हुए है, वहीं भाजपा सवर्ण वोटरों के अलावे अति पिछड़े वोटों के साथ हिन्दुओं के ध्रुवीकरण कर चुनावी जीत हासिल करना चाह रही है। इस बीच सीपीआई के डॉ. कन्हैया कुमार युवा जोश व मोदी विरोध की छवि बनाकर चुनाव में युवाओं, ग्रामीणों व महिलाओं के मतों पर नजर बनाए हुए है। यहां उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनावों में सीपीआई का यहां दबदबा रहा है। जिससे बेगूसराय संसदीय क्षेत्र का मुकाबला रोचक होने की पूरी संभावना है।
बेगूसराय सीट की भौगोलिक संरचना
परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आए बेगूसराय सीट में पूर्व के दो लोकसभा सीटों बेगूसराय और बलिया को मिलाकर एक सीट बेगूसराय बना दिया गया। परिसीमन से पूर्व एकाध मौकों को छोड़ दिया जाए तो बलिया सीट पर वामपंथियों का कब्ज़ा रहा तो बेगूसराय सीट पर कांग्रेस जीतती रही है। बेगूसराय लोकसभा सीट में कुल सात विधानसभा सीटें शामिल की गयी हैं। जिसमें चेरिया बरियारपुर, तेघड़ा, बछवाड़ा, मैतिहानी, साहेबपुर कमाल, बेगूसराय और बखरी विधानसभा की सीटें शामिल हैं। तेघड़ा विधानसभा सीट जिसे कभी छोटा मास्को और बेगूसराय को लेनिनग्राम के नाम से मशहूरी मिली थी, तेघड़ा विधानसभा में 1962 से 2010 तक वामपंथी पार्टियों का कब्ज़ा रहा है। 2010 में पहली बार गैर वामपंथी राजद उम्मीदवार को पहली बार जीत नसीब हुई, वहीं बछवाड़ा विधानसभा सीट पर भी पिछले 38 वर्षों से वामपंथियों का ही कब्ज़ा था। 2015 में यहां भी राजद ने पहली बार जीत हासिल की। बिहार में वामपंथ के सबसे मजबूत किला में सेंध 1990 के दशक में लगने लगा था। 1995 तक यहां की सात विधानसभा सीटों में से पांच सीटों पर सीपीआई या सीपीएम का दबदबा रहा था। लेकिन 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का उदय, ऊंची जातियों के खिलाफ आंदोलन, पिछड़ी जातियों का राजनीति में बढ़ते प्रभाव और बड़े पैमाने पर सूबे के विभिन्न हिस्सों में नरसंहार की घटनाओं ने बिहार को जातिवाद की राजनीति में पूरी तरह जकड़ लिया और बिहार के अन्य हिस्सों की तरह इसका व्यापक प्रभाव बेगूसराय में भी हुआ। यहां लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 29 मई को एक साथ सभी 1944 मतदान केंद्रों पर मतदान कराएं जाएंगे। लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 1953007 है। जिसमें महिला मतदाताओं की संख्या 913962 है तो पुरूष मतदाताओं की संख्या 1038983 है।
वर्तमान सांसद – स्व. भोला सिंह
बेगूसराय संसदीय सीट से 2014 के आम चुनाव में दिग्गज नेता डॉ. भोला सिंह ने पहली बार यहां कमल को जीत दिलायी। मोदी लहर पर सवार होकर चुनाव जीतने वाले डॉ. भोला सिंह का व्यक्तिगत प्रभाव भी लोगों को आकर्षित करता रहा। वर्ष 2018 में उनके निधन से भाजपा की सियासत में एक बड़ी शून्यता आई है। यह संयोग है कि नवादा से 2009 में सांसद बनने के भोला सिंह को 2014 में बेगूसराय भेज दिया गया। ठीक उसी तरह 2014 में नवादा से सांसद बने गिरीराज सिंह को बेगूसराय में चुनाव लड़ने के लिए भेज दिया गया। नवादा से ही चुनाव लड़ने की मंशा रखे गिरीराज सिंह को अंतत: भारी मन से चुनाव लड़ने का फैसला लिया। जहां उनके सामने राजद के डॉ. तनवीर हसन व सीपीआई के कन्हैया कुमार से कड़ी टक्कर मिल रही है। देखने वाली बात होगी कि तीन दिग्गजों की लड़ाई में किसके सर पर ताज चढ़ता है। यह तो 29 मई के बाद ही पता चल सकेगा।
बेगूसराय लोकसभा सीट से जुड़े ग्राफिक्स :
1999 – राजो सिंह, कांग्रेस (जीत) 318244 (मिले मत); श्याम सुंदर सिंह, जदयू (हार) 298294 (मिले मत)
2004 – राजीव रंजन सिंह, जदयू (जीत), 301562 (मिले मत); कृष्णा शाही, कांग्रेस (हार), 281071 (मिले मत)
2009 – डॉ. मोनाजिर हसन, जदयू (जीत), 205680 (मिले मत); शत्रुघ्न प्रसाद, सीपीआई (हार), 164823 (मिले मत)
2014 – डॉ. भोला सिंह, भाजपा (जीत), 428227 (मिले मत); डॉ. तनवीर हसन, राजद (हार), 369892 (मिले मत)