जापान में सम्राट अकीहितो के पदत्याग के बाद बुधवार को उनके ज्येष्ठ पुत्र प्रिंस नारुहितो ने उनका पदभार ग्रहण किया। जापान दुनिया के उन गिने-चुने देशों में है जहां आज भी, नाममात्र के लिए ही सही पर राजशाही चल रही है। उन चुनिंदा देशों में भी यह इस मायने में खास है कि यहां का प्राचीन राजवंश इतिहास के तमाम उतार-चढ़ाव झेलते हुए भी अपनी निरंतरता बनाए हुए है।
1868 के बहुचर्चित मेइजी रेस्टोरेशन से जापान की शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण प्रक्रिया का ऐसा समावेश हुआ, जिसने बदलती दुनिया के साथ जापानी राजशाही का अच्छा तालमेल बनाए रखा। शीर्ष स्तर पर प्राचीन प्रतीकों की मौजूदगी के बावजूद जापान ने तकनीक पर अपनी पकड़ कभी ढीली नहीं होने दी। नतीजा यह कि इस द्वीपीय देश ने जहां बीसवीं सदी की शुरुआत में ही रूस को हराकर यूरोप की अपराजेयता का मिथक तोड़ा, वहीं अपनी भौगोलिक सीमा का आश्चर्यजनक विस्तार भी किया।हालांकि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में अपनी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं की उसे भयानक कीमत चुकानी पड़ी। इसके बाद जब जापान ने सैन्यवादी पराक्रम से तौबा की तो आर्थिक क्षेत्र में विकास की चमचमाती मिसाल खड़ी कर दी। इसका कुछ श्रेय सम्राट नाम की उस संस्था को भी जाता है, जो जापानी समाज की स्थिरता के प्रतीक के रूप में जापानियों के दिलो-दिमाग में काफी ऊंचा मुकाम रखती है। एशिया के गणतांत्रिक देशों से तुलना की जाए तो लोगों की एकजुटता और समर्पण की ऐसी मिथकीय कहानियां और कहीं भी नहीं मिलतीं। मगर, इस चमकती तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि एक जीवंत, लोकतांत्रिक मिजाज वाले समाज में जो प्रवाह होता है, नए मूल्यों को अपनाने की जो जद्दोजहद होती है, जापानी समाज में उसका घोर अभाव दिखता है। यह छोटा-सा देश आर्थिक महाशक्ति तो बन गया, लेकिन न ऐसे नेता दे सका जो उसकी लोकतांत्रिक परिपक्वता की मिसाल के रूप में दुनिया में स्वीकार्य होते, न ही ऐसे जमीनी नायक गढ़ सका जो एक समाज के रूप में उसके आत्मसंघर्ष की नजीर बनते। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान के ज्यादातर प्रधानमंत्री डेढ़-दो साल में ही निपटते रहे और समाज यथास्थिति के चंगुल में पड़ा रहा। हालत यह रही कि ऑक्सफर्ड में पढ़े प्रिंस नारुहितो ने 1993 में जब मसाको से शादी की तो कूटनीतिक क्षेत्र में शानदार करियर छोड़कर आ रही अपनी पत्नी की ‘हर हाल में रक्षा करनेÓ और शाही परिवार को आधुनिक बनाने की शपथ ली। बावजूद इसके, परिवार की ओर से बेटा पैदा करने के लिए पड़ रहे असह्य दबाव से उन्हें वे नहीं बचा सके। यहां तक कि बुधवार को उत्तराधिकार ग्रहण की शाही रस्म के दौरान भी शाही परिवार की कोई महिला उपस्थित नहीं रही। बहरहाल, नारुहितो का जापान उस जापान से बहुत अलग है जो उनके पिता अकीहितो ने उत्तराधिकार में पाया था। अच्छा होगा कि उनके नेतृत्व में जापानी समाज अपने आधुनिक मूल्यों के लिए जाना जाए।