राणा अवधूत कुमार
(हाल-ए-बक्सर)
सीपीआई का क्षेत्र में शुरू से रहा प्रभाव, 1989 के जनता लहर में जीती थी सीट
1952 में शाहाबाद उतरी पश्चिम सीट रही तो 1962 में बक्सर क्षेत्र से नाम हुआ
1952 से 2014 के चुनाव तक बक्सर लोकसभा से चुनकर गए हैं कुल नौ सासंद
सासाराम। बक्सर बिहार के उन लोकसभा सीटों में शामिल है, जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों को सत्ता में रहने का बराबर मौका मिलता रहा है. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे बक्सर (पूर्व में बिक्रमगंज) संसदीय क्षेत्र पर 1989 के बाद से इस क्षेत्र में समाजवादियों का कब्जा रहा है। देश की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा बक्सर सीट पर मजबूती से चुनाव लड़ती रही है. यहां राजद, जदयू, लोजपा, समता, हम रालोसपा जैसी क्षेत्रीय दलों का कोई प्रभाव नहीं रहा है। 1996 के बाद भाजपा के लालमुनी चौबे ने तो यहां जीत की चौकड़ी लगायी थी. इस क्षेत्र में अब कांग्रेस का प्रभाव समय के साथ कम होता गया. 2009 में राजद के जगदानंद सिंह पहली बार यहां लालटेन जला कर जीते। लेकिन इस सीट पर 1989 के जनता दल के लहर के बावजूद सीपीआई के तेज नारायण सिंह लगातार दो बार सांसद बन कम्युनिष्ट का झंडा बुलंद रखी. दोनों प्रमुख दल भाजपा-कांग्रेस बक्सर की सियासी इतिहास को ऐतिहासिक शहर बक्सर के महत्व को देश के नक़्शे पर स्थापित किया है. इस बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे को तो महागठबंधन की ओर से राजद के वरीय नेता जगदानंद सिंह को प्रत्याशी बनायी है। इस सीट की विडंबना रही है कि सत्ताधारी दलों के सांसद होने के बावजूद क्षेत्र व बक्सर शहर के अपेक्षित विकास नहीं हुआ.
1984 के बाद कांग्रेस इस सीट पर नहीं कर सकी वापसी
1952 में शाहाबाद उतरी पश्चिम क्षेत्र के नाम से जाने जाने वाले इस क्षेत्र से निर्दलीय सांसद बने थे डुमरावं के महाराज कमल सिंह। 1952 कमल सिंह यहां से दोबारा सांसद बने. हालांकि बाद में उन्होंने कांग्रेस को समर्थन दिया था।1962 के चुनाव में यहां से सांसद कांग्रेस के अनंत प्रसाद शर्मा बने. 1967 में कांग्रेस के दिग्गज नेता राम सुभग सिंह यहां से सांसद बने। 1971 में कांग्रेस के टिकट पर ही अनंत प्रसाद शर्मा यहां से दोबारा सांसद बने। 1977 में भारतीय लोक दल के रामानंद तिवारी सांसद बने। 1980-84 में कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलाकांत तिवारी लगातार दो बार सांसद बने। जो बाद में विदेश राज्य मंत्री भी बने. इसके बाद कांग्रेस इस सीट पर कभी जीत नहीं दर्ज कर सकी। 1989-91 में जनता दल के लहर के विपरीत कम्युनिष्ट का झंडा पहली बार यहां खिला। सीपीआई के तेज नारायण सिंह यहां से लगातार दो बार सांसद बने रहे। इसके बाद अगले चार चुनाव में भाजपा के लालमुनी चौबे सांसद बने। 2009 में राजद नेता जगदानंद सिंह सांसद बने. 2014 में भागलपुर से आए अश्विनी चौबे भी मोदी लहर में भाजपा की वापसी करा दी.
36 सालों से अधर में लटकी है मलई बराज परियोजना
पिछले 36 वर्षों से बक्सर के सभी सांसदों के लिए मलई बराज परियोजना सरदर्द बनती रही है. 1976 से शिलान्यास के बाद से यह योजना आज तक पूरी नहीं हो सकी है. इस सीट से लड़ने वाले उम्मीदवारों को मलई बराज परियोजना के सवाल से जूझना पड़ा है. वस्तुतः यह परियोजना बक्सर और भोजपुर जिले की करीब 24 हज़ार एकड़ जमीन को सिंचित करने के साथ ही रोहतास जिले के कुछ हिस्सों को भी पानी दे सकेगी। बक्सर संसदीय क्षेत्र देश के उन चुनिंदा लोकसभा सीटों में रही है। जहां लालमुनी चौबे को छोड़ कर किसी सांसद को दो बार से अधिक प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला है। गंगा के कछार में स्थित बक्सर लोकसभा सीट की समस्याएं आज भी कमोबेश उसी तरह बनी हुई है जो करीब 30 वर्ष पूर्व रही है. 1996 से लालमुनी चौबे यहां से लगातार सांसद बनी। 2009 में पहली बार राजद को यहां कामयाबी मिली जब परिसीमन के बाद कैमूर के रामगढ़ और रोहतास के दिनारा विधानसभा को इसमें जोड़ दिया गया. हालांकि 2014 में भाजपा ने इस सीट को दोबारा अपने कब्ज़े में कर लिया।
1998 के बाद से भाजपा बक्सर में होती गयी मजबूत
1989 और 1991 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से कम्युनिस्ट तेज़ नारायण सिंह लगातार सांसद बने. उसके बाद भाजपा, राजद या जदयू जैसी दलों के लिए चिंता की सबब बनी थी. लेकिन जब 1996 में लोकसभा के चुनाव हुए तो भाजपा की टिकट पर पूर्व प्रधानमंत्री के करीबी विधायक लालमुनि चौबे को चुनाव में लड़ने का मौका मिला। उसके बाद तो अगले चार चुनाव तक किसी की दाल बक्सर में नहीं गली. हालांकि इस बीच बक्सर की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही. 2009 में परिसीमन होने के बाद बक्सर में नए जातीय समीकरण के बीच रामगढ़ के विधायक रहे पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह यहां पहली बार लालटेन जलाये। जहां परिसीमन के बाद पहली बार चुनाव में जगदानंद सिंह महज़ 2728 वोटों से ही जीते थे. 2014 में मोदी लहर पर सवार भागलपुर से आए भाजपा के फायरब्रांड नेता अश्विनी चौबे, जगदानंद सिंह को हरा कर सांसद बने। यहां जदयू के मौजूदा विधायक ददन सिंह पहलवान हर चुनाव में किसी ना किसी का खेल बिगाड़ते रहे है. यादव जाती से आनेवाले ददन पहलवान डुमरावं से विधायक हैं, लेकिन राजद नेता के लिए परेशानी का सबब बनते रहे हैं. इस बार राहत की बात है की ददन सिंह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
इस बार भाजपा और राजद में ही है सीधा मुकाबला
17 वीं लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर से भाजपा प्रत्याशी अश्विनी कुमार चौबे व महागठबंधन की ओर से राजद के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह के बीच सीधी टक्कर है। दोनों गठबंधनों की ओर से जातीय
समीकरण को ध्यान में रख प्रत्याशियों का चयन किया गया है। चुनावी मैदान में दोनों पुराने चेहरे होने मुकाबला दिलचश्प होने की संभावना हैं. दोनों के अपने दावे है. अपने जातिगत समीकरण हैं. कोई धर्म के साथ तो कोई जाति की दुहाई दे रहा हैं. हालांकि राज्य मंत्री का दर्ज़ा लिए अश्विनी चौबे का क्षेत्र में कम आने, लोगों के सुख-दुःख में शामिल नहीं होने के आरोप भी लगे हैं. कई गांवों के लोगों ने तो वोट बहिष्कार की पहले ही कर दी है. आनेवाले 23 मई को परिणाम चाहे जो हो यूपी की सीमा से लगे बक्सर लोकसभा उन सीटों में शुमार है, जहां चुनाव में पैसों के साथ शराब का इस्तेमाल भी खूब हो रहा है. इस लोकसभा सीट पर 1820035 मतदाता आगामी 19 मई को 1856 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसमें 967278 पुरुष मतदाता हैं तो महिला मतदाताओं की संख्या 852740 है.
पिछले चार चुनावों में बक्सर से चुने गए सांसद
लोकसभा चुनाव वर्ष जीते हारे
1. 1999 लालमुनि चौबे, भाजपा-235968 शिवानंद तिवारी, राजद- 224362
2. 2004 लालमुनि चौबे, भाजपा- 205980 ददन पहलवान, आईएनडी- 151114
3. 2009 जगदानंद सिंह, राजद- 132614 लालमुनि चौबे, भाजपा- 130376
4. 2014 अश्विनी चौबे, भाजपा – 319012 जगदानंद सिंह, राजद- 186674