आपदा से दो-दो हाथ

ओडिशा में जिस मुस्तैदी व संवदेनशील ढंग से फानी चक्रवात की भयावहता का सामना किया गया, उसकी पूरी दुनिया में मुक्तकंठ से प्रशंसा की गई। हर जिंदगी को बचाने के लिये जिस तरह योजनाबद्ध ढंग से काम हुआ और ग्यारह लाख लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाया गया, वह काबिलेतारीफ है।
दरअसल, अक्सर आने वाले चक्रवातों से ओडिशा ने लडऩा सीख लिया है। वर्ष 1999 में आये महाचक्रवात ने जो तबाही मचायी थी, उसने राज्य को योजनाबद्ध ढंग से आपदा से जूझने का अनुभव दिया। उपग्रहों की मदद से तूफान आने की सूचना समय पर मिलनी शुरू हुई तो संचार साधनों के चलते राहत व बचाव कार्यक्रम समय रहते तैयार किये जाने लगे। एनडीआरएफ ने पूरे देश में जहां लाखों लोगों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं इसी तर्ज पर राज्यों में बने संगठनों ने भी आपदा प्रबंधन को नई दिशा दी। यदि सत्ताधीश हर जान को बचाने के लिये संवेदनशील नजर आएं तो कोई वजह नहीं है कि आपदा प्रबंधन को प्रभावी न बनाया जा सके। ओडिशा ने चक्रवात के संबंध में जो जानकारी आम लोगों तक पहुंचायी, उससे न केवल राज्य बल्कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु आदि को भी सतर्क होकर राहत-बचाव कार्य नियोजित करने का अवसर मिला। हवाई व रेल यातायात को नियंत्रित किया गया और तरह-तरह की एडवाइजरी जारी की गई। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के प्रयासों की भरपूर सराहना की। लेकिन वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा प्रधानमंत्री के साथ आपदा प्रबंधन पर रिव्यू बैठक करने से मना करना अखरा है। ऐसे दौर में जब ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के मिजाज में तल्खी आई है, हमें ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के लिये तैयार रहने की जरूरत है। एक ओर जहां तकनीक व सूचना संसाधनों के जरिये सजगता व सतर्कता को बढ़ाया जा सकता है, वहीं राहत व बचाव के कार्य को आधुनिक तौर तरीकों से चलाया जा सकता है।हाल ही में भूकंप वैज्ञानिकों के राष्ट्रीय सम्मेलन में चिंता जताई गई कि हिमालय क्षेत्र में अधिक तीव्रता के भूकंप आ सकते हैं। नि:संदेह भूकंप को लेकर सटीक भविष्यवाणी कर पाना तो संभव नहीं है मगर हम सतर्कता व सजगता से ऐसे उपायों को अमल में ला सकते हैं, जिनसे जन-धन की हानि को कम से कम किया जा सके। हमें जापान से सबक लेना होगा जहां आये दिन भूकंप आते हैं। वे थोड़े समय के लिये बचाव के उपाय अपनाते हैं और फिर अपने कामधंधों में लग जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। इस स्थिति में आने के लिये जापान ने विज्ञान व तकनीक के जरिये महत्वपूर्ण काम किया है। घरों व सार्वजनिक इमारतों को भूकंपरोधी बनाया गया है। भारत में एक छत का जुगाड़ ही तो प्राथमिकता होती है, मगर उसे भूकंपरोधी बनाने पर ध्यान नहीं दिया जाता।?देश की प्रयोगशालाओं में भूकंप पर काम तो बहुत हुआ है मगर विडंबना यही है कि उसे आम आदमी तक पहुंचाने का काम उस गति से नहीं हुआ। जिन सरकारी विभागों का दायित्व मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों में भूकंपरोधी तकनीक के अनुपालन का है, वे भी पूरी जिम्मेदारी से काम नहीं कर रहे हैं। गुजरात में आये भूकंप में सबसे ज्यादा नुकसान बहुमंजिली इमारतों के गिरने से हुआ था। सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम भूकंप आदि आपदाओं के बाद राहत व बचाव का होता है। घर इतनी तंग गलियों में बनाये जाते हैं कि फायर ब्रिगेड को वहां पहुंचने में?भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। प्राकृतिक आपदा की प्रकृति के अनुसार राहत व बचाव कार्य में दक्षता के लिये विभिन्न विभागों में बेहतर तालमेल जरूरी है। दरअसल, लोगों को भूकंप नहीं, गरीबी मारती है। लोगों के पास जितने भी संसाधन हैं, उसी के अनुरूप भूकंप से बचाव के लिये ज्ञान उपलब्ध कराना भी जरूरी है।

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