राणा अवधूत कुमार
काराकाट में बिहार में सर्वाधिक 27 उम्मीदवार ताल ठोंक रहे मैदान में
रोहतास व औरंगाबाद दो जिलों के छह विधानसभा के मतदाता देंगे वोट
परिसीमन के बाद काराकाट लोकसभा सीट पर तीसरी बार हो रहा चुनाव
सासाराम। सूबे के दो जिलों रोहतास व कैमूर के मध्य बने काराकाट संसदीय क्षेत्र में इस बार दो कुशवाहा जाति के उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। लेकिन इन दोनों की प्रतिद्वंदता में कुछ निर्दलीय व सशक्त उम्मीदवार भी लड़ाई को रोचक बनाने में जुटे हुए हैं। इस संसदीय क्षेत्र में रोहतास जिले के तीन विधानसभा डेहरी, काराकाट व नोखा विधानसभा हैं तो औरंगाबाद जिले के गोह, नबीनगर व ओबरा विधानसभा क्षेत्र के मतदाता अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव करेंगे। सोन नदी के पार दो भाषाओं को जोड़ने वाली संसदीय क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं हैं। जिसका जवाब मतदाता प्रत्याशियों से पूछ रहे हैं। डालमियानगर फैक्ट्री बंद होने के बाद रेल वैगन कारखाना शुरू होने की घोषणा के बाद अभी तक मतदाताओं में इसकी शुरूआत होने की उम्मीदें हैं। पांच वर्ष पूर्व एनडीए में शामिल रालोसपा इस चुनाव में महागठबंधन का अंग बन चुकी है। वहीं बदलते सियासी समीकरण में जदयू पिछली बार अकेले लड़ी थी। लेकिन इस बार अपने पुराने सहयोगी भाजपा के साथ गठबंधन कर काराकाट क्षेत्र में अपनी बादशाहत कायम रखना चाहती है। कारण कि 2004 से 2014 तक हुए तीन चुनावों में जदयू यहां से जीतती रही है।
कांग्रेस के गढ़ में अब समाजवादियों का है कब्जा
कभी कांग्रेस का गढ़ रहे काराकाट (पूर्व में बिक्रमगंज) संसदीय क्षेत्र पर 1989 के बाद से इस क्षेत्र में समाजवादियों का कब्जा रहा है। देश की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा काराकाट सीट से दूर ही रही है। यहां राजद, जदयू, समता व रालोसपा जैसी क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। 1991 के बाद भाजपा ने तो काराकाट में कभी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे। भाजपा इसके बाद हर चुनाव में यह सीट अपने सहयोगी जदयू, समता या रालोसपा को दे दी है। सहकारिता सम्राट तपेश्वर सिंह की कर्मस्थली रहे इस क्षेत्र में अब कांग्रेस का नाम लेने वाले भी कम ही रह गए हैं। इस सीट पर 1989 के जनता दल के लहर के बाद दोनों प्रमुख दल लड़ाई से बाहर हो गए। इस बार एनडीए गठबंधन से पूर्व सांसद महाबली सिंह व मौजूदा सांसद उपेंद्र कुशवाहा में सीधी टक्कर है। लेकिन सपा प्रत्याशी घनश्याम तिवारी व निर्दलीय कुमार सौरभ जैसे प्रत्याशी इस सीट पर लड़ाई को रोचक बनाने में जुटे हुए हैं।
यादव, कुशवाहा व राजपूत वोटों पर है सबकी नजर
काराकाट संसदीय क्षेत्र में यादव, कुशवाहा व राजपूत समुदाय के वोटर चुनाव में निर्णायक की भूमिका में रहते हैं। तभी तो यहां से राजपूत, यादव व कुशवाहा ही सांसद बनते रहे हैं। तीनों जातियों की करीब ढ़ाई-ढ़ाई लाख वोटर हैं। इसके अलावे मुस्लिम वोटरों की संख्या भी दो लाख के बराबर है। इसके अलावे अनुसूचित जाति की संख्या यहां तीन लाख के आसपास है। लेकिन इन वोटों में बिखराव होने की संभावना है। इसके साथ दो जिलों में बंटी इस संसदीय क्षेत्र में भोजपुरी व मगही भाषा का प्रभाव भी दिखेगा। हालांकि भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूचि में शामिल कराने के मुद्दे पर कोई प्रत्याशी कुछ भी बोलने से परहेज कर रहा है।
1996 से काराकाट से लगातार बदल रहे हैं सांसद
काराकाट संसदीय क्षेत्र देश के उन कुछ चुनिंदा लोकसभा सीटों में रही है। जहां किसी सांसद को दो बार से अधिक प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला है।1996 में जनता दल से कांति सिंह सांसद बनी। 1998 में समता पार्टी से वशिष्ठ नरायण सिंह सांसद बने।1999 में कांति सिंह दूसरी बार सांसद बनी। 2004 में तपेश्वर सिंह के बेटे अजीत सिंह पिता की विरासत संभाली। 2008 में सड़क हादसे में अजीत सिंह के निधन के बाद पत्नी मीना सिंह उप चुनाव में सांसद बनी। 2009 में परिसीमन के बाद पहले चुनाव में जदयू के महाबली सिंह सांसद बने। 2014 में मोदी लहर पर सवार वैशाली से आए रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा सांसद बने।
इस बार जदयू-रालोसपा में है सीधा मुकाबला
17 वीं लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू प्रत्याशी महाबली सिंह व महागठबंधन की ओर रालोसपा प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा के बीच सीधी टक्कर है।रालोसपा जहां यादव, मुसलिम व कुशवाहा वोट के सहारे ही चुनावी जीत के मंसूबे पाले हुए है।वहीं जदयू सवर्ण वोटरों के साथ अति पिछड़े वोटों की सियासत कर चुनावी जीत हासिल करना चाह रही है। सपा के उम्मीदवार घनश्याम तिवारी, बसपा के राजनारायण तिवारी, निर्दलीय कुमार सौरभ, डॉ. नीलम कुमारी जातिगत वोटों के अलावे कुछ अन्य तर्कोँ के सहारे कैडर दलित वोटरों के साथ यादव मतों पर नजर बनाए हुए है। जिससे काराकाट संसदीय क्षेत्र का मुकाबला रोचक होने की संभावना है।
काराकाट सीट की भौगोलिक संरचना
परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आए काराकाट लोकसभा सीट रोहतास व औरंगाबाद के बीच का संसदीय क्षेत्र है। जिसमें कुल छह विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए हैं। इस सीट में रोहतास जिला के नोखा, डेहरी, काराकाट विधानसभा क्षेत्र व औरंगाबाद जिला के गोह, ओबरा व नवीनगर विधानसभा सीटें शामिल हैं। चुनाव के अंतिम चरण में 19 मई को मतदान होंगे।
काराकाट से 27 प्रत्याशी हैं मैदान में
उपेंद्र कुशवाहा – रालोसपा
महाबली सिंह – जदयू
राजनारायण तिवारी – बसपा
घनश्याम तिवारी – सपा
ज्योति रश्मि – राष्ट्र सेवा दल
आरिफ इसाइन हुसैन – जनता दल राष्ट्रवादी
उषा शरण – शोषित समाज दल
कमलेश राम – सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी
नंद किशोर यादव – स्वराज पार्टी लोकतांत्रिक
प्रकाशचंद्र गोयल – पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया
प्रदीप चौहान – बिहार लोक निर्माण दल
पृथ्वीनाथ प्रसाद – असली देसी पार्टी
मनोज कुशवाहा – जयप्रकाश जनता दल
ममता पांडेय – राष्ट्रीय समता पार्टी सेकुलर
मो. अतहर हुसैन – आंबेडकर नेशनल कांग्रेस
राजाराम सिंह – कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इंडिया
रामजी सिंह कांता – अखिल हिन्द फॉरवर्ड ब्लॉक
शशिकांत सिंह – भारतीय मोमिन फ्रंट
अभिराम प्रियदर्शी – निर्दलीय
कुमार सौरभ – निर्दलीय
धर्मेंद्र सिंह – निर्दलीय
डॉ. नीलम कुमारी – निर्दलीय
पूनम देवी – निर्दलीय
राम अयोध्या सिंह – निर्दलीय
रामेश्वर सिंह – निर्दलीय
वासुदेव हजारिका – निर्दलीय