डॉ.रिपुदमन सिंह, एसोसिएट एडिटर-ICN
हमारे देश में उगाए जाने वाले फलों में आम सबसे लोकप्रिय फल हैं। इसका फल विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ का सर्वश्रेष्ठ स्त्रोत है। ताजा फल के उपयोग के अलावा इसका उपयोग अचार, अमचूर, चटनी, स्क्वेयर तथा मुरब्बा आदि उत्पाद बनाने में भी उपयोग किया जाता है।
जलवायु एवं भूमि – आम के उचित बढ़वार एवं फलन के लिए जीवांशयुक्त गहरी बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो उपयुक्त रहती है। ऐसी भूमि जिसके 2 मीटर गहराई तक अवरोध ना हो आम उत्पादन के लिए अच्छी रहती है। भूमि का पीएच मान 6.5 से 7.5 होना आम उत्पादन के लिए उत्तम रहता है। चुनायुक्त कंकरीली पथरीली व ऊसर भूमि इसकी खेती (Mango farming) के लिए उपयुक्त नहीं है।
आम की उन्नत किस्में-
केसर– फल मध्य आकार के सुगंध युक्त, गुद्दा रेशे रहित, रंग केसरिया लिए हुए होता है। पूर्ण विकसित वृक्ष से औसतन 100 किग्रा फल वृक्ष प्राप्त हो जाते हैं। इसके फल भी जुलाई में पकते हैं।
दशहरी– फल आकार में छोटे से मध्यम आकार के होते हैं। इनका छीलका मोटा व पीला, गुद्दा पीला व रेशे रहित होता है। अच्छे मिठास (18 डिग्री ब्रिक्स) वाली इस फल की गुठली पतली होती है। प्रति वृक्ष से 100 किग्रा फल प्रतिवर्ष प्राप्त होते हैं।
लंगड़ा– यह मध्यम आकार का होता है। इसका छिलका मोटा, चिकना व हरा, पीला, मीठा सुगंध युक्त होता है। इसकी गुठली मध्यम आकार की होती है एवं फल जुलाई में पकता है। प्रति वृक्ष औसतन 95 कि.ग्रा. फल प्राप्त होते हैं।
मल्लिका– नीलम तथा दशहरी के संकरण से बनी हुई नियमित फलन वाली यह किस्म जुलाई में फल देती है। हर वर्ष औसतन 82 किग्रा तक उपज मिलती हैं जिनमें औसत वजन 262 ग्राम होता है।
आम्रपाली– यह किस्म दशहरी व नीलम के संकरण से तैयार की गई है हर साल फल देती है तथा सघन बागवानी हेतु उपयुक्त हैं। वृक्ष मल्लिका की तरह 82 की.ग्रा. तक उपज प्राप्त होती हैं। परंतु फलों का वजन 90 से 350 ग्राम तक पाया जाता है।अन्य किस्मों में समर बहिस्त, चौसा फजली, पूसा अरुणिमा, पूसा सूर्य, पूसा लालिमा, पूसा श्रेष्ठा, पूसा प्रतिभा व पूसा पीताम्बर किस्में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली तथा अंबिका व अरुणिका सी.आई.इस.एच. लखनऊ से प्राप्त कर सकते हैं।
प्रवर्धन– आम को बीज व वानस्पतिक विधियों द्वारा प्रवर्तित किया जा सकता है। अच्छे गुणों वाले पौधे तैयार करने के लिए वानस्पतिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। इन विधियों में इनार्चिंग, विनियर ग्राफ्टिंग, सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग एवं स्टोन ग्राफ्टिंग प्रमुख हैं।
पौधे लगाने की विधि– उन्नत विधियों द्वारा प्रवर्तित किए गए पौधों को वर्षा ऋतु (जुलाई से सितंबर) तक में रोपण किया जाना चाहिए। भूमि को समतल कर मई माह में 1x1x1 मीटर आकार के गड्ढे 10×10 या 8×8 मीटर की दूरी पर खोदकर कर उन्हें 20 से 25 दिन खुला छोड़ देवें। प्रत्येक गड्ढे में 25 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 किलो सुपर फास्फेट तथा सौ ग्राम मिथाइल पैराथियान (2 प्रतिशत) चूर्ण मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गड्डा भर दे। संकर किस्म आम्रपाली को 2.5×2.5 मीटर दूरी पर लगाया जाता है।
खाद एवं उर्वरक– आम के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद उर्वरक एवं अन्य पोषक तत्वों का प्रयोग आवश्यक होता है। अधोलिखित तालिका के अनुसार आम के पौधों में खाद व उर्वरक (मात्रा किग्रा. प्रति वृक्ष) देनी चाहिए।
खाद व उर्वरक प्रथम वर्ष द्वितीय वर्ष तृतीय वर्ष चतुर्थ वर्ष पंचम वर्ष बाद में देने का समय
गोबर की खाद 15 30 45 60 75 दिसंबर
सुपर फास्फेट 0.25 0.50 0.75 1.00 1.00 जनवरी
म्यूरेट आफ – – – 0.25 0.50 जनवरी
पोटाश यूरिया 0.25 0.50 0.75 1.00 1.25 आधा भाग फूल आने के बाद (मार्च) व शेष जून
गोबर की खाद को दिसम्बर तथा सुपर फास्फेट व म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को जनवरी माह देना चाहिए, जबकि नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने के बाद (मार्च) एवं शेष आधी मात्रा जून माह में देना चाहिए। जस्ते की कमी होने पर 0.3 प्रतिशत जिंक सल्फेट के तीन छिड़काव पोषण के पश्चात करना चाहिए।
सिंचाई एवं निराई गुड़ाई– आम के बाग में वर्षा ऋतु को छोड़कर गर्मियों में प्रति सप्ताह तथा शीत ऋतु में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। परंतु नए लगाए गए पौधों को बरसात छोड़कर 3 से 4 दिन के अंतराल पर सींचना चाहिए। फल बनते समय भूमि में पर्याप्त नहीं होना आवश्यक होता है। परंतु फूल आने से फल बनने तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए। आम के बगीचों को खरपतवारओं से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए व भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए निराई– गुड़ाई की आवश्यकता होती है। आम के बगीचों में प्रति वर्ष दो से तीन जुताई करके खरपतवार रहित कर देना उपयुक्त रहता है।
पौध संरक्षण,कीट प्रबंधन
आम की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले विभिन्न में निम्नलिखित प्रमुख है:-
मिली बग– यह किट मुलायम टहनियों, पुष्पक्रम तथा छोटे फलों के डंडलों पर एकत्रित होकर रस चूसते हैं। इसके निदान के लिए दिसंबर माह में खेत की जुताई के कीट को वृक्षों के ऊपर चढ़ने से रोकने के लिए पेड़ के चारों और पॉलिथीन की 30- 40 सेमी चौड़ी पट्टी जमीन से 60 सेमी की ऊंचाई पर तने के चारों तरफ लगाकर इसके निचले भाग में ग्रीस लगा दे। इसका नियंत्रण कीटनाशी इमिडाक्लोरप्रिड 3 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
आम का फुदका– यह भूरे रंग का होता है व आम के फूल, छोटे फल तथा नई वृद्धि का रस चुस्ता है जिससे पुष्पक्रम एवं छोटे फलों को काफी नुकसान होता है। फल मुरझाकर गिर जाते हैं तथा उपज घट जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
छाल भक्षक कीट– यह कीट आम की छाल में घुसकर छाल को खाता है। तने एवं शाखाओं में सुरंग बनाकर वृक्ष को खोखला बना देता है। इसके नियंत्रण हेतु रुई को पेट्रोल या केरोसिन में भिगोकर कीट की सुरंगों के अंदर भर देना चाहिए तथा ऊपर से मिट्टी लगा दे।
व्याधि प्रबंधन– आम की फसल को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित व्याधियां प्रमुख है:-
चूर्णी फफूंद– यह रोग ऑडियम मेंजीफेरी नामक कवक से होता है। इस रोग से प्रभावित टहनियों, पत्तियों व पुष्पक्रमो पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है तथा अधिक प्रकोप की अवस्था में पुष्प व पत्तिया गिर जाती है। इसके नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम या केराथेन 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर दो बार (15 दिन के अंतराल) छिड़काव करना चाहिए।
श्याम वर्ण– इस रोग से प्रभावित पत्तियों पर भूरे व काले धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्तियाँ गिरने लगती है। इसके नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मेंकोजेब 2 ग्राम मिलाकर छिड़काव करें तथा रोग ग्रस्त टहनियों व पत्तियों को काट कर नष्ट कर दे।
कार्यिकीय विकार (फिजियोलॉजिकल डिसऑर्डर)-पुष्पशीर्ष विकृति (मैंगो मालफॉर्मेशन) या गुच्छा– मुच्छा रोग:-
इस रोग से प्रभावित पत्तियां एवं पुष्पक्रम गुच्छों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं वहपौधे की बढ़वार रुक जाती है तथा उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अभी तक इस रोग के स्पष्ट कारणों का पता नहीं चल सका है, परंतु उसके प्रभाव को कम करने के लिए रोगी भाग को नष्ट करने के साथ 200 पीपीएम अल्फ़ा– नेप्थलीन एसिटिक अम्ल (एन.ए.ए.) 4 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव सितंबर– अक्टूबर माह में करना चाहिए तथा शीघ्र आने वाले (अगेती) पुष्पक्रम को तोड़ देना चाहिए।
ब्लेक टिप–यह व्याधि आम के उन बगीचों में पाई जाती है जो ईद के भट्ठों के दो किलोमीटर के क्षेत्र में हो। इससे बचाव के लिए आम के बग़ीचों को ईंट के भट्टों से दूर लगाएं तथा भट्टों की चिमनिया ऊंची होनी चाहिए। बोरेक्स 0.6% (6 ग्राम प्रतिलीटर) की दर से छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर फलन के बाद करना हितकर रहता है।
तुड़ाई एवं उपज– फलों का रंग जब हरे से हल्का पीलापन लिए होने लगे तब सावधानी पूर्वक डंठल के साथ तोड़े। आम के वयस्क पौधे से 80 से 100 किलोग्राम फल प्राप्त हो जाते हैं, वैसे पैदावार पेड़ की उम्र, किस्म तथा बगीचे की देखभाल पर भी निर्भर करती है। परिपक्व फल पकाने हेतू इथाइल 500 पि.पि.एम.(0.5 मिली. प्रति लीटर) के घोल में दो मिनट डुबोकर उसके पानी को सुखाकर पेकिंग करने से 3 से 4 दिन में फल पककर तैयार हो जाते हैं।