भगवान की ब्रांडिंग

अमरेश कुमार सिंह, असिस्टेंट एडिटर-ICN 

देखिए वैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई, आदि- इत्यादि के नाम पर हमने अपने तरीके से नीले आसमान के ऊपर बैठे अदृश्य ताकत को राम रहीम ईशा नानक जिसे विभिन्न तरह के नाम दे दिए हैं। लेकिन शायद यह जानकर आपको काफी आश्चर्य होगा कि तमाम देवी-देवता धरती पर अपनी एक ही रूप के कई ब्रांडिंग बन चुके हैं।

चलिए हम देवों के देव महादेव का ही उदाहरण ले लेते हैं। महादेव का भी दायरा बंधा हुआ है। अगर हम महा ज्ञानियों के महाज्ञान के उच्च विचारों पर स्मरण करें तो यहां हर मन में भगवान है, कण-कण में भगवान है लेकिन वास्तविकता की बात करें तो मंदिर में ही भगवान है। मैं बताना चाहूंगा कि इंसानों ने अपने आसपास के रत्नों को नजर अंदाज करना सीख लिया है, शायद इसलिए देवताओं ने मंदिर या मस्जिद में बसने का निर्णय किया। काफी कड़वा सच है, अगर इन शक्तियों ने अपने अस्तित्व को इंसानों के बीच आराम से बनाया होता तो इंसान इन्हें भी हल्के में लेना शुरू कर देते। खैर, महादेव का स्थान सबसे ज्यादा मंदिर में होता है और यहीं से शुरू होती है तीनो लोक के मालिक भोलेनाथ की ब्रांडिंग।

ब्रांडिंग की शुरुआत होती है हमारी घर की छोटी सी मंदिर से। इस मंदिर के महादेव निरंतर गिने-चुने चेहरे को देखकर परेशान हो चुके होते एक तरीके से कहें तो  यह भोलेनाथ की आरक्षित ब्रांडिंग है, जहां आप या आपके परिवार ही महादेव से आशीर्वाद पाने के हेतु अनकंडीशनल इन्वेस्टमेंट करते रहते हैं। कभी लड्डू का भेंट किया कभी ₹10 कभी सौ रुपया का भेंट किया। यह इन्वेस्टमेंट निरंतर चलता रहता है और महादेव की जिम्मेदारी घर की खुशी, परिवार की खुशी और परिवार की तरक्की तक ही सीमित रहती है। हां कभी-कभी हमारे मेहमान भी भोलेनाथ की इस सेवा का लुफ्त उठा लेते हैं।

अब आती है भोलेनाथ की शहर या जिले की ब्रांडिंग। इस ब्रांड के भोलेनाथ के इन्वेस्टर की संख्या थोड़ी ज्यादा होती है, जहां पर कुछ विशेष सुविधाओं के साथ भोलेनाथ पर इन्वेस्ट किया जाता है, जैसे कि दूध का चढ़ावा, 1000 से 10000 का चढ़ावा आदि इत्यादि। जितनी प्रतिष्ठित मंदिर उतना बड़ा चढ़ावा और उतनी ही बड़ी भगवान को सौंपी गई जिम्मेदारी। जैसे कि भगवान नौकरी दिला दो, 10 किलो दूध का चढ़ावा ले लो, सुंदर लड़की से शादी करा दो ₹25000 का मुकुट का चढ़ावा ले लो। ऐसे ही निरंतर मंदिरों का कद बढ़ता जाता है, भोलेनाथ पर इन्वेस्टमेंट का दायरा भी बढ़ता जाता है। और उनसे पाए जाने वाले आशीर्वाद की उम्मीद भी बढ़ती चली जाती है।

और फिर एक वक्त ऐसा आता है जब आपकी मुश्किल छोटे ब्रांडेड भोलेनाथ कि हद से बाहर निकल जाता है, जैसे कि कभी किसी को कैंसर हो गया, किसी को एड्स हो गया, किसी की परिवार की खुशी चली गई, किसी की जिंदगी में दुख के अलावा कुछ है ही नहीं, ऐसे लोग हिंदुस्तान के सबसे बड़े मंदिर में भोलेनाथ के पास गिव एंड टेक का ऑफर लेकर चले जाते हैं। भगवान कैंसर ठीक कर, दो सोने के मुकुट ले लो, भगवान खडूस बीवी को छम्मक छल्लो बना दो चांदी का चढ़ावा ले लो, 1 साल कि मेरी सैलरी ले लो आदि इत्यादि।

वैसे बुजुर्गों की माने महादेव की मूर्ति छोटी हो या बड़ी, महादेव का दिल बहुत बड़ा है। लेकिन इस ब्रांडिंग ने  महादेव की भी दिक्कत बढ़ा दी है। बड़ी मंदिर पर पहुंचने वाले भक्त भी बड़े होते हैं और उनके चढ़ावे की पेशकश भी बड़ी होती है।  अब मानो की किसी को बहुत बड़ी बीमारी हो गई तो घर की मंदिर वाले महादेव को हिंदुस्तान के सबसे बड़ी मंदिर के महादेव का संदेश आता है कि भाई जी हद में रहिएगा, चढ़ावे का ऑफर काफी बड़ा है। अगर आपने  बीमारी को ठीक कर दिया तो हमारे व्यापार का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा।

अगर कमीशन चाहिए तो ले लो लेकिन हमारा नुकसान ना करो। अब बेचारे घरवाले महादेव करें भी तो क्या करें? कौन इतनी बड़ी इन्वेस्टमेंट को ठुकराकर सस्ते में भक्तों को निपटा दें। आखिर ब्रांडिंग नाम की भी कोई चीज होती है। ब्रांडिंग का दायरा अगर विदेशी हो जाए तो क्या बात है, आशीर्वाद के लिए किए जाने वाला इन्वेस्टमेंट मतलब गिव एंड टेक ऑफर और भी यादगार तथा दमदार हो जाता है। अब विदेश से संदेश आने में भी तो कुछ खर्च होता है।

भगवान का पैसा ना ही सही उर्जा तो जाता ही है। और जिन महाभक्तों ने उनकी अस्तित्व को बचाने की जिम्मेदारी ले रखी है उनके परिवार, उनके परिवार की चापलूसी करने वालों की परिवार तथा आदि इत्यादि के जीविका के बारे में भी तो सोचना पड़ता है। आज पैसे का महत्व इतना ज्यादा हो गया है इंसानियत मरे तो मरे पर मेरा पैसा न मरे वाली सोच श्रद्धा बन चुकी है। भगवान को आखिर अपनी अस्तित्व को बचाना है कि नहीं? अगर पैसा नहीं आया तो महादेव की ब्रांडिंग कैसे होगी? दोस्तों महादेव तो एक उदाहरण मात्र है।

यही जुमला हर धर्म के हर देवता के साथ बड़ी शिद्दत से निभाया जा रहा है। इसलिए अंधभक्ति करते रहो और लूटते रहो और अपने इस व्यंग के लिए गुस्ताखी माफ करते रहो।

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