डॉ. प्रांजल अग्रवाल, एसोसिएट एडिटर-ICN लखनऊ। प्राय: ईश्वर के बराबर महत्व दिए जाने वाले चिकित्सक को कब जल्लाद, यमराज और अंतत: खूनी, हत्यारा, इत्यादि उपाधियों से नवाज़ दिया जाए, पता नहीं चलता | एक व्यक्ति अपनी जवानी नष्ट कर, अपनी महत्वकांक्षाओं का दमन कर, अपने तन-मन-धन का पूर्ण उपयोग कर, अपने और अपने परिवार के सुख-समृद्धि और सम्मान के लिए ‘चिकित्सा छेत्र’ को अपनी कर्म भूमि चुनता है | कोई 8-10 वर्ष तक खुद को घिसने के बाद, जब ‘चिकित्सक’ की उपाधि मिलती है, तो उस सफ़ेद कोट वाले को…
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