तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
हमारा ‘मैं’ तो सदैव हमारे साथ रहता है। वह न कभी व्यतीत होता है, न कभी उसका जन्म होता है और न ही कभी उसकी मृत्यु होती है।
इस बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए यदि मैं आपसे पूछूँ – बचपन तो बीत गया, युवा अवस्था व्यतीत हो रही है एवं वृद्धावस्था भी आयेगी । वह कौन है आपके अंदर जो ‘बचपन’ में भी था, ‘आज’ भी है और ‘कल’ भी रहेगा। न वह कहीं गया और न ही कहीं से आएगा। कभी कभी हम रात को सपना देखते हैं तो हमें लगता है कि सब वास्तविक रूप से घटित हो रहा है। प्रातः उठने पर हमें पता चलता है कि वह तो मात्र स्वप्न था। ध्यान दीजिये- जिसने रात में स्वप्न में उन घटनाओं को सत्य समझा, वह भी ‘मैं’ था और जिसने आँख खुलने पर स्वप्न जानकर उन्हें झूठा समझा, वह भी ‘मैं’ ही था।
हमारा ‘मैं’ तो सदैव हमारे साथ रहता है। वह न कभी व्यतीत होता है, न कभी उसका जन्म होता है और न ही कभी उसकी मृत्यु होती है। साक्षीभाव का अर्थ है – स्वयं के साथ सहयात्रा। हमारा यह सहयात्री सब कुछ निहारता है, सब कुछ परखता है लेकिन इसमें हस्तक्षेप करने की शक्ति नहीं होती है। साक्षीभाव अपने उस सहयात्री के नेत्रों से स्वयं की पड़ताल करना है और अपने विषय में ‘सच’ और ‘झूठ’ व ‘अच्छा’ व ‘बुरा’ का अनुभव कर मस्तिष्क को सकारात्मक आदेश देकर अपने अवचेतन मन के डाटा स्टोरेज से झूठी वह बुरी फाइलों को नष्ट करना अर्थात ‘डिलीट’ करना है। यह साक्षीभाव उस बात के लिए आवश्यक है जो मैं अब आपसे करने जा रहा हूँ।
हम सभी जानते हैं कि सामान्य रूप से समय के तीन हिस्से होते हैं- बीता हुआ अर्थात ‘अतीत’, समक्ष अर्थात ‘वर्तमान’ तथा आने वाला अर्थात ‘भविष्य’। अपने एक अध्ययन के दौरान मुझे एक अत्यंत सुंदर पुस्तक पढ़ने का सौभाग्य मिला जिसमें समय का मूल्यांकन बहुत ही प्रायोगिक व व्यावहारिक रूप से किया गया था। उसमें एक अत्यंत प्रभाव कारी तकनीक का उल्लेख है जिसे जब मैंने अपनाया तो चमत्कारिक परिणाम प्राप्त हुये। मेरा जीवन सकारात्मक होता चला गया। मैं आपका मित्र व शुभचिंतक होने के कारण आपका जीवन भी सकारात्मकता से भरना चाहता हूँ इसलिए मेरी प्रार्थना है कि इस तकनीक को व्यवहार में लाकर इसके चमत्कारों का अनुभव अवश्य करें।
साक्षीभाव से अपने दिन भर के सभी ‘इवेंट्स’ अर्थात घटनाओं की एक सूची बनाएं। यह सूची दैनिक जीवनचर्या की होगी तथा उनमें वे कार्य होंगे जो आप प्रतिदिन करते हैं। कुछ कार्य ऐसे होंगे जिन्हें आप सप्ताहिक अथवा मासिक अंतराल पर करते हैं और उनके लिये आप इवेंट्स की एक अलग सूची बना सकते हैं। ध्यान रहे – सूची साक्षीभाव से अर्थात बिना किसी सकारात्मक अथवा नकारात्मक भाव से बनाएं और पूर्ण तटस्थ भाव से ही बनायें। जब आपकी सूची तटस्थ भाव से पूरी हो जाये तो अाप लाल रंग, नीला/काला रंग तो व हरे रंग की पेन्सिलें लेकर बैठे तथा जो इवेंट्स अथवा घटनायें आपके अतीत से संबंधित हों, उन्हें लाल रंग से रेखांकित करें, जो अापके वर्त्तमान से सम्बंधित हों उन्हें नीले/काले रंग से तथा जो घटनाएं आपके भविष्य से संबंधित हो उन्हें हर रंगे से रेखांकित करें। अब इन्हें अलग-अलग रख कर देखने का प्रयास करें। सामान्यतःआप पाएंगे कि लाल रंग की घटनाओं का प्रतिशत अस्सी से भी अधिक है, नीले/काले रंग की घटनाएं अट्ठारह उन्नीस प्रतिशत तक है तथा हरे रंग की घटनाएं मात्र एक दो प्रतिशत अथवा शून्य हैं। अलग-अलग व्यक्तियों की सूची में यह प्रतिशत थोड़ा बहुत भिन्न हो सकता है किन्तु यहां पर यह तथ्य आवश्यक है कि ये सूचियां कितनी विश्वसनीय हैं। जो सूची जितनी तटस्थ होगी व पूर्वाग्रह से मुक्त होगी, वह उतनी ही जीवंत होगी और अांकड़ें भी उतने ही विश्वसनीय होंगे। संकेत स्पष्ट हैं- हम अस्सी प्रतिशत से अधिक जीवन अतीत के साथ गुजार रहे हैं, सत्रह-अठारह प्रतिशत वर्तमान में है और भविष्य का हमें कोई पूर्वानुमान नहीं है और यदि है भी तो नगण्य है। ये तथ्य इतना तो भविष्य के लिए संकेत आपको देते हैं कि आपका भविष्य अंधकारमय है और आपके पास भविष्य की कोई योजना नहीं है और वर्तमान में ऐसा कोई बीजारोपण आप नहीं कर रहे हैं जिसका सुन्दर व स्वस्थ वृक्ष आपको मधुर फल भविष्य में उपलब्ध कराये।
हमारे अंदर प्रायः पीछे देखते हुये आगे चलने की आदत है। कोई व्यक्ति अगर पीछे देखते हुए आगे चलता है तो उसकी गति क्या होगी? निश्चित ही वह समय की रफ्तार से पिछड़ जाएगा और एक अभावपूर्ण व तनावग्रस्त जीवन जीने को विवश होगा। ऐसा व्यक्ति भला कितनी दूर जाएगा और वह कब दुर्घटनाग्रस्त हो जाए, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। यह ईश्वर की इच्छा के भी विरूद्ध है। ईश्वर चाहता है कि आगे चलते समय हम सदैव अागे देखें और इसीलिए उसने हमारी आँखें हमारे चेहरे पर आगे लगाई हैं, पीछे गर्दन पर नहीं। यदि हम प्रकृति के विरुद्ध कोई कार्य करते हैं तो उसका दंड तो हमें भुगतना ही पड़ेगा। आइए, अब हम प्रयास करें कि हमारी सूची से लाल रंग के निशान कम होते हुये एक दिन समाप्त हो जायें अर्थात हम अतीत से अनुभव लें, वर्तमान से ऊर्जा प्राप्त करें और भविष्य से स्वप्न हासिल करें। जैसे जैसे ही आपकी सूची सकारात्मक होती जाएगी, आपके जीवन भी सकारात्मक होगा और आप के जीवन में नित्य प्रति चमत्कार होने प्रारंम हो जाएंगे। आपके इस नितांत नवीन स्वरूप का मैं अभिवादन करता हूँ – अपनी बाहें खोलकर अभिनन्दन करता हूँ।
एक अन्य बात और आपसे बांटनी है। यह समय प्रबंधन के संबंध में है। ‘समय प्रबंधन’ अर्थात ‘टाइम मैनेजमेंट’। आज हर स्थान पर, हर स्तर पर टाइम मैनेजमेंट का ही शोर सुनाई पड़ता है। इस विषय पर कार्यशालायें आयोजित की जा रही हैं, अनेको पुस्तकें लिखी जा रही हैं और ऐसा लगता है कि जैसे टाइम मैनेजमेंट के माध्यम से समय को मुट्ठी में बांधने का मंत्र सिखाया जा रहा हो। आपको क्या लगता है? क्या हम समय को मुट्ठी में बांध सकते हैं? क्या हम समय को नियंत्रित कर सकते हैं? कदापि नहीं। समय की गति शाश्वत है। यह न तो कम होती है और न अधिक। यद्यपि ब्रम्हांड में कुछ शून्य खण्ड ऐसे भी हैं जहां वैज्ञानिकों के अनुसार समय की गति परिवर्तित है लेकिन वह हमारी दुनिया नहीं है।हम जिस दुनिया में रहते हैं , वहीं का समय हमें प्रभावित करता है। हमारी दुनिया का सच यह है कि हमारे पास समय की गति को नियंत्रित करने की कोई शक्ति नहीं है। हम सामान्य मानव है और प्राकृतिक नियमों से बंधे हैं। हमारे पास मात्र स्वयं को नियंत्रण करने की शक्ति होती है यदि हमारे अंदर ‘अच्छे-बुरे’, ‘सही-गलत’ व ‘उचित-अनुचित’ की समझ आ जाए। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि ‘समय-प्रबंधन’ कुछ नहीं होता और इसे समय के अनुसार स्वयं का प्रबंधन कहना व ३समझना ज्यादा उचित है। हमारे पास हमारे कार्यों की सूची होनी चाहिए और हमें यह प्रबंधन कला आनी चाहिए कि निश्चित समयावधि में यदि हमें अमुक मात्रा के कार्य करने हैं तो उन्हें कैसे करना चाहिए। ये प्रबंधन कला हमारी सोच का स्पष्ट होना मात्र है। हम चाहें तो एक कार्य प्रारंभ कर उसके प्रक्रिया काल तक प्रतीक्षा कर उसे पूर्ण करने का विकल्प चुन सकते हैं या एक-एक करके अनेक कार्य प्रारंभ करके उनकी पूर्णता प्रक्रिया की अलग-अलग अवधियों के पश्चात एक -एक करके उन्हें पूरा कर अनेक परिणाम हासिल कर सकते हैं। ज़रा सोचिए तो, जिस घर में एक से अधिक बच्चे होते हैं, उनके माता पिता क्या उन्हें एक-एक कर पालते हैं या सभी साथ-साथ पलते हैं तथा अपने-अपने जन्म के आधार पर वयस्कता की आयु प्राप्त करते चले जाते हैं?
किसी अवकाश के दिन जब मैं अपने परिवार की निद्रा में विघ्न नहीं डालना चाहता हूँ, सवेरे बिस्तर छोड़कर बाथरूम में सबसे पहले गीज़र आन करता हूँ। जितनी देर में पानी गरम होता है, मैं फ्रेश हो जाता हूँ, पानी के गर्म होते होते हैं मैं शेव कर स्नान के लिए तैयार हो जाता हूँ। स्नान के पश्चात् जब तक मेरी चाय बनती है, मैं वस्त्र बदल लेता हूँ। ध्यान दीजिए- इन सारे छोटे छोटे कार्यों की पूर्णता अवधि अलग-अलग है। एक कार्य प्रारंभ कर उसके पूर्ण होने की प्रतीक्षा में शिथिल व क्रियाहीन बैठना भी एक विकल्प है और उस समय का लाभ लेकर दूसरे कार्य को प्रारंभ कर देना भी एक विकल्प है। जो पहला विकल्प चुनते हैं, वे समय को नष्ट करते हैं तथा समय प्रबंधन से चूक जाते हैं जबकि दूसरा विकल्प चुनने वाले समय प्रबंधन का लाभ उठाते हैं। इस बात को एक और उदाहरण से भली-भाँति स्पष्ट किया जा सकता है और वह है बैंकों द्वारा जमा की आवर्ती योजनाएं अर्थात रिकेरिंग डिपाज़िट स्कीम का उदारण। ऐसी योजनाओं का एक उदाहरण इस विचार को और अधिक स्पष्ट करने के लिए लेते हैं। इस योजना में हम एक निश्चित अवधि (एक वर्ष, तीन वर्ष इत्यादि) के लिए एक निश्चित धनराशि खाते में प्रत्येक माह जमा करते हैं तो निर्धारित अवधि के पूर्ण होने पर एक वर्ष में एक अतिरिक्त किश्त अथवा ब्याज के साथ धन परिपक्वता राशि के रूप में हमें प्राप्त होता है। अब हमारे पास सुविधानुसार धन उपलब्ध होने की स्थिति में दो विकल्प हैं – एक तो हम एक-एक करके बारह किश्तें देने के पश्चात वर्ष पूरा होने पर एक परिपक्व राशि प्राप्त करें और दूसरा यह कि प्रत्येक माह एक नई योजना प्रारंभ कर एक वर्ष बाद से प्रतिमाह एक नयी परिपक्व राशि प्राप्त की जाये। मैं अर्थशास्त्र का विद्यार्थी रहा हूँ। प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोo राबिन्सन ने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी है, “सीमित साधनों से अधिकतम आए प्राप्त करना ही अर्थशास्त्र है।” यह बात तो समय पर भी लागू होती है – “सीमित समय का प्रयोग करके अधिकतम संभव लाभ प्राप्त करना ही समय-प्रबंधन है।”
अंत में एक प्रश्न पूछना चाहूंगा – यदि एक वस्त्र धूप में एक घंटे में सूख जाता है तो दस वस्त्र कितने समय में सूखेंगे? आशा करता हूँ आपका उत्तर ‘एक घंटे में’ ही होगा क्योंकि अगर धूप एक वस्त्र एक घंटे में सुखा सकती है तो दस वस्त्रों को भी एक घंटे में सुखा देगी। एक और प्रश्न – यदि एक कार एक व्यक्ति को किसी निश्चित दूरी तक एक घंटे में ले जाती है तो चार व्यक्तियों को एक कार उसी निश्चित दूरी पर कितने घंटे में ले जाएगी?