डॉ अशोक कुमार शर्मा
अंग्रेजों के विपरीत हम भारतीयों की ख़ास आदत होती है, अजनबी लोगों से बात करना। नयी दिल्ली से आस्ट्रेलिया जा रहे, एयर इण्डिया के बोईंग विमान ने जैसे ही सिडनी एयरपोर्ट को स्पर्श किया, मेरे पड़ौस में बैठी अधेड़ पंजाबी महिला ने अपना मोबाइल फोन ऑन कर लिया। सुबह के सात बजे थे। बारह घंटे से अधिक के सफ़र में उस महिला मुझसे या मेरी पत्नी से कोई बात नहीं की थी। लेकिन अचानक उसने अपना मोबाइल फोन मेरे सामने करते हुए कहा, “इसमें चर्च स्ट्रीट लिख दीजिये।” उसके फोन में ऊबर आस्ट्रेलिया की टैक्सी एप्प खुली हुई थी। अपना काम होते ही वह अपना बैग उठा कर खड़ी हो गयी और बाहर निकल रहे लोगों की भीड़ के आगे सरकने का इंतज़ार करने लगी। फिर ना जाने क्या सोच कर हम दोनों की तरफ मुखातिब हो कर पंजाबी लहजे में बताने लगी, “लुधियाने से एजेंट ने मेरी यहाँ एक कपल के घर इंडियन खाने बनाने की नौकरी लगवाई थी। अच्छी कमाई होती है। साल में दो बार इंडिया आती-जाती हूँ।” तभी भीड़ आगे सरकने लगी। हम भी अपने केबिन लगेज को लेकर बाहर निकल आये।
इम्मीग्रेशन जांच में आस्ट्रेलिया आनेवालों की कतार में मुझे बहुत से भारतीय चेहरे दिखे और वही बातूनी महिला फिर दिखाई दी। कई काउंटरों पर व्यस्त आस्ट्रेलियाई बॉर्डर फ़ोर्स के अधिकारी, आगंतुकों की सीक्योरिटी जांच, पासपोर्ट तथा वीजा देखने के बाद लोगों को बहुत ही जल्दी-जल्दी निपटा रहे थे। एकाध मुस्लिम यात्रियों को ज़रूर अधिक सवालों का सामना करना पड़ा, परन्तु आमतौर पर चीनी, भारतीय, योरोपीय और अमरीकियों को किसी अड़चन का सामना नहीं करना पड़ा। लगेज बेल्ट पर वही बातूनी महिला एक बंगाली सज्जन से माथपच्ची कर रही थी कि पहले बुक कर दी गयी, ऊबर टैक्सी की बुकिंग रद्द कर दें, क्योंकि वह जिनके यहाँ काम करती थी, वह दंपत्ति खुद ही उसे लेने आ रहे थे। मुझे देख कर फिर मेरे पास आ गयी और अपने ठेठ पंजाबी लहजे में बोली: “वीरजी, इस सवारी को कैंसिल कर दीजिये, वरना मेरे क्रेडिट कार्ड से 60 डॉलर बेकार में ही खर्च हो जायेंगे।”
हिन्दुस्तानी एयरपोर्ट्स के मुकाबले सिडनी एयरपोर्ट काफी उदार है, यात्रियों को छोड़ने और लेने आनेवाले लोग मुख्य भवन के भीतर बुकिंग काउंटर तक आ सकते हैं । मेरा भांजा गौरव शर्मा हमें लेने आया था और दूसरी तरफ मैं देख रहा था, उस बातूनी औरत को भी एक युवा दक्षिण भारतीय जोड़ा अपने साथ ले जा रहा था। मेरा भांजा सिडनी से लगभग आधा घंटा दूरी पर औद्योगिक उपनगर पैरामेटा में रह रहा था। वह अंतर्राष्ट्रीय आईटी कम्पनी आईबीएम में सलाहकार था, लेकिन आस्ट्रेलियाई नागरिकता पाने के बाद उसने अपना स्वतंत्र परामर्शी व्यवसाय खड़ा कर लिया।
रास्ते में गौरव ने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार आस्ट्रेलिया में लगभग 2,76,000 हिंदू हैं। वहां अन्य धर्मों को मानने वाले भारतीय भी बसे हैं। इसके बाद 2016 की जनगणना में 6,19,164 लोगों ने घोषणा की कि वे मूलतः भारतीय थे। दो वर्ष बाद 2018 में ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो ने अनुमान लगाया कि ऑस्ट्रेलिया में कुल 5,92,000 भारतीय मूल के लोग मौजूद थे। जिनमें करीब 26,500 सिख थे। आस्ट्रेलिया में भारतीयों की आबादी वस्तुतः चीनी मूल के लोगों के बाद सर्वाधिक है। इसी जनगणना में, यह भी पता चला कि वहां 54.6 प्रतिशत भारतीय प्रवासियों के पास स्नातक की डिग्री या उच्च शैक्षणिक डिग्री है, जो 2011 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय औसत 17.2 प्रतिशत से तीन गुना अधिक है, जिससे आज भारतीय ऑस्ट्रेलिया में सबसे अधिक शिक्षित प्रवासी समूह बन गए हैं। यह संख्या चीनियों की शिक्षा दर से दोगुनी है।
आस्ट्रेलिया में गये भारतीयों की अधिकतर आबादी विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। लगभग 20 प्रतिशत भारतीय वहां होटल उद्योग, पर्यटन, दुकानदारी और आयात के कार्यों में लगे हैं। तीस प्रतिशत भारतीय ड्राइवरी, घरेलू कामकाज, खानसामा, सफाई कर्मचारी, दर्जी और मजदूरी जैसी छोटी मोटी नौकरियां करते हैं। आस्ट्रेलिया में अधिकांश नई या तो इराकी हैं या हिन्दुस्तानी। मजेदार बात यह है कि पाकिस्तानी भी आमतौर पर खुद को हिन्दुस्तानी बताते हैं। वहां रीयल एस्टेट का कारोबार पूरी तरह से चीनियों के हाथों में पहुँच चुका है। आस्ट्रेलिया के हर शहर में किसी ना किसी सिनेमा हाल में कोई नयी हिंदी फिल्म जरूर लगी होती है। वहां के विराट और अकल्पनीय मॉल पर भले ही चीनी उत्पादों की रेल-पेल मची रहती है, मगर खान-पान के रेडीमेड भारतीय पैकेट्स की भी खूब कदर है।
आस्ट्रेलिया ने बहुत से भारतीयों के सपने पूरे किये हैं। मेरे मित्र प्रोफेसर प्रदीप माथुर की पुत्री आकांक्षा एक अनुभवी पत्रकार के रूप में वहां गयी थी, मगर पत्रकार के रूप में उसे ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली, इस पर उसने नये तरीके से तैयारी की और आज वह सिडनी में आस्ट्रेलियाई सरकार के परिवहन विभाग में अधिकारी है। आकांक्षा के पति राकेश एक इंजीनियर होने के बावजूद वहां न्यायपालिका के अभिलेखागार के अधिकारी बन चुके हैं। इसी तरह मेरे एक दूसरे मित्र की चिकित्सक पुत्री डॉ. विधि शर्मा का विवाह एक इंजीनियर अभिषेक मोदगिल से हुआ। उसे भारतीय डिग्री के बावजूद आस्ट्रेलिया सरकार के प्रतिबंधों के अनुरूप फिर से परिक्षा देनी पडी और आज वह भी सिडनी में प्रेक्टिस कर रही है। उसका पति इंजीनियरिग की किसी नौकरी के बजाय आस्ट्रेलिया में टेलीकम्युनिकेशन क्षेत्र का बड़ा कारोबारी है। आजकल अभिषेक पेट्रो रसायनों और रीयल स्टेट के कारोबार में भी पाँव पसार रहा है।
आस्ट्रेलिया में चीनियों और भारतीयों की लाख कामयाबी के बावजूद उनको कई हरकतों से पहचान लिया जाता है। जैसे सड़क पर कूड़ा फेंकना। यातायात के नियमों का पालन नहीं करना। व्यापार में मनमानी करना। रेडलाईट चौराहों पर लाल बत्ती हो जाने पर, पैदल लोगों के रास्ता पार करने के दौरान, आस्ट्रेलियाई अथवा यूरोपीय मूल के नागरिक हरी बत्ती होने पर भी बेचैनी नहीं दिखाते, मगर भारतीय नागरिक हॉर्न बजा कर नाक में दम कर देते हैं।
मोम में ढली शोहरत
सिडनी से कुछ दूर आस्ट्रेलिया का प्रसिद्ध डार्लिंग हार्बर बंदरगाह है। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थल हैं। इनमें से एक है विश्वप्रसिद्ध मूर्तिकार मैडम तुसाद के नाम पर स्थापित म्यूजियम। इस म्यूजियम के पहले ही कक्ष में विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन के अध्ययन कक्ष की प्रतिकृति में आइन्स्टीन खड़े नज़र आते हैं। उनके पास ही है उनकी मेज के सामने ही खड़े नज़र आते हैं, भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। आगे बढ़ते ही “बॉलीवुड गैलरी” आती है, जिसमें लगी सूचनाएं अंग्रेज़ी के साथ ही हिंदी में भी दी गयी हैं। यहाँ एक सिमुलेटर स्क्रीन पर आप अमिताभ बच्चन के फिल्म “कभी खुशी कभी गम” के प्रसिद्ध भंगड़ा डांस “शाबा शाबा” या उस समय चल रहे किसी भी दूसरे गीत जैसे “कजरारे कजरारे” पर उनके साथ नाचने की कोशिश करते हुए फोटो खिंचा सकते हैं। इन चित्रों में अमिताभ बच्चन की वर्चुअल (आभासी) छवि ही आपके साथ रिकार्ड होगी। इसी जगह एक कोने में खडी नज़र आतीं हैं, विश्व सुन्दरी रहीं अभिनेत्री ऐश्वर्या राय।
उनकी लम्बाई मूर्तिकारों ने छह फुट से भी कुछ अधिक कर दी है। इसके फ़ौरन बाद सबसे पहले 1995 में बनी सुपरहिट हिन्दी फिल्म “दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे” (डीडीएलजे) का ट्रेन के सामने फिल्माया गये, आख़िरी सीन का सेट लगा हुआ दिखता है। वहीं खड़े नज़र आते हैं बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान, चमड़े की वहीं जैकेट पहने जैसी उन्होंने फिल्म के उस सीन में पहनी थी। पास में ही एक हैंगर पर वैसी ही दूसरी जैकेट टंगी रहती है, जिसे पहन कर सभी आगन्तुक शाहरुख खान के साथ फोटो खींचा सकते हैं। इससे कुछ आगे चलते ही एक गैलरी में अंतर्राष्ट्रीय खिलाडियों के बीच भारत रत्न सचिन तेंदुलकर अपना बल्ला आकाश की ओर विजयी मुद्रा में उठाये खड़े नज़र आते हैं। इसके पास ही दूसरी गैलरी में एक ऊंची गोल मेज़ पर कुहनी टिकाये विश्व सुन्दरी रहीं सफल अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और इसी गैलरी के दायीं ओर खड़े उनके पति हॉलीवुड गायक निक जोनास नज़र आते हैं। साफ़. ज़ाहिर है कि हिन्दुस्तानियों के साथ हिंदी और बॉलीवुड ने भी विदेशों में भारत को एक तेज़ी से वैश्विक पटल पर उभरते देश की हैसियत दिलाने में कामयाबी पायी है।
चित्रों में शाहरुख खान के साथ खड़े इस वृत्तान्त के लेखक डॉ अशोक कुमार शर्मा सात राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सम्मानों से सम्मानित नॉन-फिक्शन के स्थापित लेखक तथा अनेक विश्वविद्यालयों व संस्थानों के सॉफ्ट-स्किल्स, पत्रकारिता, मीडिया और जनसंचार फैकल्टी हैं।