By: C.P. Singh, Literary Editor-ICN Group
बेटियाँ , उजाला – हैं – जी , घर – सँसार – की |
प्रभु – का “ दिया “ हैं – ये – ही , जग – आधार – भी ||
सुख – होती – हैं – ये – तो , खुशियों – की – डाली |
कैसे – पलती – हैं – देखो ? प्रभु – जी – की – पाली ?
शुभता – भरें – ये , चेतो , अन्न – धन – की – थाली |
“ दैवी – पुष्प – माला “ हैं – जी , “ पितु – मातु – हार “ की ||
बेटियाँ – उजाला – हैं – जी , घर – सँसार – की ||
दैवी – कृपा – हो – जिनपर , उनके – ही – घर – में |
जग – की – ये – अदभुत – कलियाँ , आएँ – सु – करनें |
फिर – तो – दशा – उस – घर – की , लगे – ज्यों – सुधरनें |
कोमल – कृपाला – हैं – ये , “ पितु – मातु – प्यार “ की ||
प्रभु – का “ दिया “ हैं – ये – ही , जग – आधार – भी ||
बिधि – की – कृपा – नित – बरसे , उस – आँगन – में |
निधि – सी – कृपा – ले – ये – हरशें , जिस – पितु – मन – में |
सिद्धि – ही – उगा – दे – ये – घर – से , जननी – के – पन – में |
भाग्य – का – दिया – है – बेटी , हर – आगार – की |
“ जग – पहिया “ है – बेटी , जी – आकार – की ||
मृदु – कलियाँ – हैं – ये – ज्यों – जग – उपवन – की |
कारक – विमा – हैं – ज्यों – त्यों , शुभ – पन – धन – भी |
सुख – भरी – गलियाँ – हैं – ये , तल – क्षिति – गगन – की |
सबके – नहीं – है – बेटी , निज – या – उधार – ली |
बेटियाँ , उजाला – हैं – जी , घर – सँसार – की |
घर – के – सभी – कोनों – में , भरि – शुभ – उमँग – ये |
माँ – पितु – के – उर – दोनों – में , भरि – हँसते – रँग – दें |
जीवन – रूपी – सब – सोनों – में , मणियों – से – सँग – ये |
भाव – भरा – थाला – हैं – जी , (हिय) बगिया – बहार – सी |
चरित – करा – ताला – हैं – धी , हिय – परे – हार – सी ||
घर – में – अन्धेरा – हो – या , पिता – के – ह्रदय – में ?
दुःख – क्लेश – घेरा – हो – या , मन – किसी – भय – में ?
समय – कुछ – घनेरा – हो – या , मनोबल – हो – क्षय – में |
“ दुःख – क्लेश – घाला “ हैं – धी , शाश्वत – सु – सार – भी |
त्रिपुर – भाव – जाला – हैं – जी , बेटी – परिवार – की ||
बेटियाँ , उजाला – हैं – जी , घर – सँसार – की |
प्रभु – का “ दिया “ हैं – ये – ही , जग – आधार – भी ||