भारतीय लोकतंत्र एवं जिम्मेदार पत्रकारिता

मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप

सहसवान/बदायूं: भारतीय गणतंत्र के चार स्तंभ है व्यवस्थापिका कार्यपालिका न्यायपालिका और चौथा स्तंभ पत्रकारिता (जर्नलिज्म) जिसको हम मीडिया के नाम से जानते हैं। आज मैं अपने इस लेख में पत्रकारिता के विषय में अपने सम्मानित पाठकों से कुछ बातें  साझा करना चाहूंगा। बदलते हुए माहौल और भागदौड़ की जिंदगी में पत्रकारिता बहुत ही जिम्मेदारी व जोखिम भरा कार्य है। इस समय देश कोरोना जैसी भयानक बीमारी का मुकाबला बड़ी वीरता से कर रहा है एक और जहां  हमारे अजीम मुल्क हिंदुस्तान के नागरिक अपने अपने घरों में रहकर लोक डाउन का पालन करके इस बीमारी से लड़ने में शासन व प्रशासन का साथ दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर समाज में ऐसे योद्धा भी हैं जिसमें मुख्य रूप से प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस प्रशासन, चिकित्सक, मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी व विशेषकर पूरी बहादुरी का सबूत देते हुए लैब टेक्नीशियन जिनका मुश्किल के इस दौर में सबसे कठिन कार्य कोरोना संक्रमित मरीजों के सैंपल लेने का है और इसके अतिरिक्त हमारे सम्मानित पत्रकार बंधु व मीडिया से जुड़े हुए सभी लोग प्रशंसा के योग्य हैं जो अपने-अपने घरों से निकलकर इस वक्त समाज की सेवा में लगे हुए हैं। मीडिया और मीडिया से जुड़े हुए लोग जैसे न्यूज़ एंकर, पत्रकार बंधु, न्यूज़ एडिटर, कैमरामैन, फोटोजर्नलिस्ट व समाज के विभिन्न पहलुओं पर तथा ज्वलंत समस्याओं पर अपने कलम के द्वारा आर्टिकल लिखने वाले एडिटर, ब्यूरो चीफ आदि लोगों  को ईश्वर ने कलम के द्वारा वह ताकत दी है जिसका इस्तेमाल यह लोग चाहे तो देश के विकास मैं कर सकते हैं और चाहे तो देश के विनाश में। देश का एक आम नागरिक जब सुबह को उठता है तो वह सबसे पहले अखबार न्यूज़ चैनल या न्यूज़ वेब पोर्टल के जरिए देश के हाल जाने की कोशिश करता है और एक आम आदमी इस यक़ीन के साथ मीडिया के जितने भी सोर्सेस आजकल देश में प्रचलित हैं उन पर ऐसा यकीन करता है  जैसे कि वह किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि स्वयं  किसी देवता की वाणी है। एक आम आदमी का मीडिया के अलावा  किसी और संस्था या ऑर्गेनाइजेशन पर इतना अटूट विश्वास शायद कहीं और देखने को नही मिलेगा मगर एक पत्रकार होने की हैसियत से क्या हम इस बात का कभी आकलन करते हैं कि भारत की मासूम जनता जो हमारे द्वारा बोले गए शब्दों पर या हमारे द्वारा लिखे गए लेखों पर आंखें मींच कर इतना अटूट विश्वास करती है तो क्या हम उनके इस भरोसे पर खरा उतरते हैं या खरा उतरने की कोशिश करते हैं। यदि हम ईमानदारी से अपने जमीर अपनी आत्मा से यह सवाल करें कि हम अपने समाज को अपनी वाणी और अपनी कलम के द्वारा एक सही दिशा दिखा पा रहे हैं तो यकीनन अंदर से यही जवाब आएगा कि नही। हम भारत के 130 करोड़ उन मासूम लोगों का जो हमसे बेपनाह मोहब्बत करते हैं और जो हम पर इतना विश्वास करते हैं।उसके बदले मैं हम उन्हें गुमराहियत के अलावा और कुछ नहीं दे रहे हैं। मीडिया का मुख्य दायित्व शासन प्रशासन व जनता के बीच एक संवाद कायम करने का होता है। ना तो शासन, प्रशासन और ना ही जनता व्यक्तिगत रूप से एक दूसरे तक अपनी बात एक दूसरे तक नहीं पहुंचा सकते।जनता की बात शासन व प्रशासन तक पहुंचाना और शासन व प्रशासन की बात जनता तक पहुंचाने का दायित्व मीडिया का होता है यदि प्रशासन द्वारा जनता के हितों का किसी भी क्षेत्र में हनन हो रहा है तो जनता के हित में आवाज उठाने का कार्य पत्रकार बंधुओं का है और यदि शासन व प्रशासन द्वारा जनकल्याण कारी  योजनाओं का कार्यान्वयन ठीक प्रकार से किया जाता है तो उसकी भी प्रशंसा जरूर करना चाहिए। यदि हम किसी अधिकारी की चाहे वह प्रशासनिक अधिकारी हो या चाहे पुलिस अधिकारी हो सच्ची नियत से केवल और केवल जनता के हितों के लिए आलोचना करते हैं या किसी अधिकारी के पक्षपात पूर्ण रवैया का खुलासा करते हैं तो हमारी भाषा इतनी सभ्य होना चाहिए जिससे किसी के हृदय को कष्ट न पहुंचे। देशहित के लिए चाहे वह शासन हो प्रशासन हो या जनता यदि कोई गलत कर रहा है तो उसकी आलोचना सभ्य भाषा मैं करना ही मीडिया का परम कर्तव्य है लेकिन कलम के जरिए किसी भी अधिकारी या किसी भी व्यक्ति से व्यक्तिगत द्वेष के कारण कार्य नहीं करना चाहिए और किसी भी पत्रकार बंधुओं को यह भी आशा नहीं करना चाहिए कि उसे जिला स्तर के अधिकारी उसे अच्छी तरह से परिचित हो हमें केवल जनता के हितों को व  देश के हितों को ध्यान में रखते हुए अपनी कलम के द्वारा जनता को वास्तविक स्थिति शिष्टाचार के साथ पहुंचाते रहें क्योंकि जब आप  किसी व्यक्ति से  पीने के लिए पानी मांगते हैं तो गिलास और जग तो उसके साथ स्वयं चलकर आ ही जाता है। एक पत्रकार होने की हैसियत से यदि हम किसी सरकारी कर्मचारी अधिकारी या जनता के किसी गलत कार्य की आलोचना करते हैं तो आलोचना करते वक्त हमें अपनी लैंग्वेज पर जरूर ध्यान देना चाहिए। देश सेवा वा जनसेवा हेतु पत्रकारिता एक बहुत बढ़िया प्लेटफार्म है  मगर सेवा भाव  पूरी श्रद्धा  व ईमानदारी के साथ होना चाहिए। इस लेख में,  मैं हजरत अली के जीवन की एक घटना अपने पाठकों को बताना चाहता हूं एक बार हजरत अली मैदाने जंग में एक व्यक्ति से तलवार हाथ में लेकर लड़ रहे थे। वह व्यक्ति हजरत अली का मुकाबला नहीं कर पाया और जब  वह पूरी तरह से पस्त होकर जमीन पर गिर गया और उससे कुछ ना बन पाया तो उसने हजरत अली के मुबारक चेहरे पर थूक दिया। हजरत अली उस व्यक्ति की गर्दन अलग करने ही वाले थे कि उसकी इस नाजैब बेहूदा हरकत पर हजरत अली ने फौरन तलवार फेंक दी। हजरत अली के इस व्यवहार पर वह व्यक्ति बहुत हैरान हुआ और उसने पूछा “जनाब मैं तो आपसे हार ही गया था और गुस्से में जब मुझसे  कुछ ना बन पाया तो मैंने आपके मुबारक चेहरे पर थूक दिया। इस हालत में तो आपको मेरे जिस्म के टुकड़े टुकड़े कर देने चाहिए थे मगर आपने तलवार जमीन पर फेंक दी आखिर आपने ऐसा क्यों किया। इस पर हजरत अली ने उस व्यक्ति से कहा थूकने से पहले मेरी और तुम्हारी लड़ाई  इंसानियत के उसूलों के हक  की थी। अब अगर यदि मैं तुम्हें मारता तो उसमें मेरा स्वयं का नफ्स (अहंकार) शामिल हो जाता कि तुमने मेरे मुंह पर थूका है। मेरी तुम से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है। फिर तुम्हें मार कर मैं कल अपने रब को क्या जवाब देता। हजरत अली का यह जवाब सुनकर वह व्यक्ति फूट-फूट कर रोने लगा और उनके पैरों में गिर पड़ा। इस घटना के जरिए  हमें यह सबक मिलता है कि  नफरत  रूपी दानव को  केवल  प्रेम व उच्च कोटि के चरित्र के तीर से ही मारा जा सकता है। लेख के अंत में मेरी अपने  सभी सम्मानित पाठकों से अनुरोध है कि ईश्वर ने जिस व्यक्ति को जिस हिसाब से भी ताकत दी है चाहे वह कलम की ताकत हो वर्दी की ताकत हो या कुर्सी की ताकत हो उसका इस्तेमाल देश व जनता के हित के लिए पूरी कर्तव्य निष्ठा के साथ करें यह केवल एक अनुरोध है कोई मशवरा नहीं क्योंकि मेरी यह हैसियत नहीं है कि मैं किसी को मशवरा दे सकूं। अपनी बात मै इस के साथ शेर के साथ पूरी करता हूं । चमन में इखतिलाफे रंगों बू से बात बनती है,  हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो”।

यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं यदि किसी व्यक्ति को मेरी किसी शब्द से कोई कष्ट पहुंचा हो तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं।

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