प्रशांत फाउंडेशन द्वारा अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर श्रमिकों को फल, सब्जियां, लंच पैकेट और राशन सामग्री वितरित की गई।

देश में कोरोना वायरस कोविड-19 के कारण जब से सम्पूर्ण लाॅक डाउन घोषित किया गया है। तब से रोज कमाने खाने मजदूरों, गरीबों के सामने अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया है। दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। हमेशा हर परिस्थिति में गरीब मजदूर ही पिस्ते हैं। प्रशांत फाउंडेशन ट्रस्ट लगातार अपने स्तर से मदद एवं सहयोग करने में लगा हुआ है। और आगे भी हमेशा सदैव तत्पर रहेगा। आज  अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर प्रशांत फाउंडेशन ट्रस्ट इटावा द्वारा गरीब मजदूरों को…

Read More

प्रार्थना -1

तरुण प्रकाश, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप  प्रार्थना शब्द के साथ जो मानसिक चित्र उभरता है, वह बड़ा ही पवित्र, निश्छल व शांत है- कहीं दूर वादियों में चाँदी की घंटियों की जल तरंग- पहाड़ों की चोटियों पर तैरता सुवासित धूम्र और प्रकृति की अधमुँदी आँखों में तैरता संतोष की पराकाष्ठा तक पहुँचा एक जादू । कितना पवित्र – कितना अलौकिक – कितना दिव्य । प्रार्थना व्यक्ति और परमात्मा के बीच संपर्क सेतु है। इस सेतु का प्रयोग कर अपने नश्वर शरीर व स्थूल काया के साथ ही परम सत्ता की ऊर्जा…

Read More

क्योंकि उनका फोन नंबर मेरे पास नहीं है।

आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P. गोरखपुर। मेरी वह नायिका जो रायगंज की सड़को के किनारों ,डीह पर और गांव के दखिन गोबर पाथ रही होगी ।चूल्हा चौकटा निबटा के अधिया खेत में बोया बर्सिन काट रही होगी।गेहूं की फसल काटने के उत्सव से पहले अगली फसल की प्लानिंग ने दोपहर की नींद से समझौता करने पर विवश कर दिया होगा ,उस प्यारी नायिका तक मेरा सलाम पहुंचे। मेरा सलाम पहुंचे दुरमूस ठीक कर रहे मेरे उन हीरोज तक जिनके बदौलत घर को मनपसंद शक्ल देने का सपने को…

Read More

कुछ पाया भी क़ुछ खोया भी

डॉ अमेय त्रिपाठी, एसोसिएट एडिटर-ICN  कुछ पाया भी क़ुछ खोया भी कुछ भाग्य जगा कुछ सोया भी, क़ुछ स्वप्न जगे क़ुछ टूटे भी, क़ुछ भरम बने क़ुछ छूटे भी . क़ुछ कलित कामनाएं भी रिक्त हुयी  क़ुछ चरित विधाएँ भी सिद्ध हुईं दो चार कदम सब और चले दो चार हाँथ फिर और बढे. क़ुछ संभल जड़ से टूट गए क़ुछ लोग स्वार्थवश छूट गए क़ुछ और बढे प्रकृति की ओर सतर्क हो थामा जीवन की डोर क़ुछ मार्ग पुराने अवरुद्ध हुए क़ुछ लोग बेवजह क्रुद्ध हुए क़ुछ गडित हमारी…

Read More

ज़िन्दगी फुटपाथ पर

अमिताभ दीक्षित , एडिटर-ICN U.P. मेरे छू देने से जो सरासरा सी उठती है तमन्ना है कि उसके जानिब कोई अफसाना कहूं कुछ ऐसी बात बहुत नजदीक से छू ले उसे कुछ ऐसे लफ्ज़ जो जा बैठे हैं उसकी पलकों पर पंछियों के शोर से सुबह की सुगबुगाहट  आए नींद अभी बाकी हो लैंप पोस्ट  बुझ जाए और जिंदगी  उनींदी सी करवट बदल के सो जाए……….थोड़ी देर और……….. थोड़ी देर बाद फिर ताके यूं टुकुर टुकुर डूबते तारों की चमक आंखें मिचियाए बुरा  सा  मुंह बना के उठ बैठे फेंक  के चादर कूद चारपाई से तेज कदमों…

Read More