गर्भवती स्त्री …..

आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P.
गोरखपुर: गर्भवती स्त्री ….. यह शब्द सुनकर गांव सीवान याद आ जाता है। जेठ की दुपहरी हो या पूस की रात ,गांव की महिलाओं को अगर तनिक भी सूचना मिलती थी की कोई गर्भवती स्त्री गांव के डीह को पार कर रही थी तो ‘नून पानी ‘की व्यवस्था भर को वह तत्क्षण सामर्थ्यवती हो जाती थीं।
कल का ट्रेनिंग सेशन बाराबंकी की कुछ स्वयंसेवी जनों के साथ बीता ,जिसमें श्रीमती अंचुल (बदला नाम) बता रही थीं कि इन दिनो बेटे (10 बरस)की आनलाइन क्लास के कारण फोन उसके पास ही रहता है ,कल क्लास खत्म होने के बाद बेटा इंटरनेट ‘”प्रेगनेंसी रेसिपी ” सर्च कर रहा था क्योंकि जब भी किसी टापिक के लिये वह इंटरनेट खोल रहा तो प्रेगनेंसी शब्द उसके आस पास बहुतायात में सर्कुलेट होते दिख रहा है।
शायद इस बात के कई पक्ष हो सकते हैं।
कल रात न जाने क्या सोचकर मैने फेसबुक होम पेज पर स्क्राल किया और मैं समझ नहीं पा रही कि एक गर्भवती स्त्री को चरित्र प्रमाण पत्र देने वाले लोग कौन लोग हैं?
आपकी सहमति या असहमति अमुक व्यक्ति के विचारों से है तो है लेकिन आप उसके विरोध में उसके निजी जीवन का यह पक्ष ,ख़ासकर गर्भावस्था पर ऐसी घटिया अमर्यादित टिप्पणी करने वाले होते कौन हैं?
प्रश्न ,तर्क डेमोक्रेसी का वह हिस्सा है जिसे ख़ूब भुनाया गया। पहले तो गुस्सा आया कि ये लोग अभी ऐसी घिनौनी टिप्पणी क्यों कर रहे लेकिन गुस्सा तब बढ़ जाता है जब इन टिप्पणियों का विरोध करने वाले स्वयं यह दुहाई दे रहे होते हैं कि जिस विचारधारा को आप मानते हैं उससे जुड़ी फलाने स्त्री भी तो इसी पंगत की थी।
अर्थात यह घिनौना विरोध या अवसरवादी समर्थन दोनो ही महाघटिया और घातक हैं।
लेकिन यह बात सरासर निंदनीय है कि हम अपना विरोध व्यक्त करने के लिये यह रास्ता अपना रहे हैं।
जो लोग भी किसी गर्भवती स्त्री पर इतनी घटिया टिप्पणीबाजी कर रहे वो किसी के नहीं हो सकते। वो घाघ लोग हैं ।
कुछ लोगों ने कहा कि यह सनातन भारत की परंपरा में नहीं तो उन्हे यह कैसे भूल गया कि गर्भवती स्त्री पर इतनी अमर्यादित टिप्पणी करना सनातन का सरासर विरोध है। गर्भावस्था फिर भी एक क्षण का परिणाम है लेकिन आपके संस्कार, आपकी टिप्पणी आपके अभ्यास और विचारों का परिणाम है।
इसीलिए मेरा स्पष्ट मानना है कि देवी का टैग अपने पास अपने  रखा जाना चाहिये ,यह अवसरवादी टैग मुबारक हो ,बेहतर है रिंकिया ,चिंकिया ,अर्पणवा रहने दिया जाय।
लेकिन समय समय पर कैरेक्टर सर्टिफिकेट न रिलीज किया जाय।
ये घटिया टिप्पणी करने वाले ऐसे समर्थक या विरोधी हैं जो किसी काम के नहीं ,यह बोझ हैं और इनके किये का प्रतिफल इन्हे जब मिलता है तो चेतना के स्तर पर इन्हे पता नहीं होता कि ये भुगत रहे।
एक बात और बहुत जरूरी लग रहा कि बुद्धिजीवी होने का टैग भी वहीं तक ढोया जाय जहां तक हो सके । इसका इस्तेमाल बस अपनी वैचारिकी भुनाने के लिये न हो।
अगर हम वैचारिक स्तर पर निरपेक्ष नहीं तो हम दुनिया के किसी भी निरपेक्ष शब्द के साथ न्याय कर ही नहीं सकते। और ‘वाद ‘शब्द तो निभने से रहा ।
किसी भी वाद का एजेंडा ग्रसित होना इस बात पर निर्भर करता है कि उस वाद का ढोवईया कौन है। लोकालोकी के खेल में हर वादधारी अपना अलग ही वाद बना रहा ।’त्व’ को समझा जाना शायद इसीलिए बहुत आवश्यक रहा होगा।
हमें निष्पक्ष और स्वस्थ विचारक बनना होगा।
अंत में फिर यही कहूंगी कि जो गर्भावस्था जैसे मसले पर मसाला बना रहे हैं वो डूब मरें। मसाला कैसा भी हो ,किसी तरह का हो मसाला सिर्फ मसाला है।

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