डॉ. संजय श्रीवास्तव
आज कल प्रायः अखबारों में ,टेलीवीजन में ,सोशल साइट्स पर या अन्य खबरों में आये दिन किसी न किसी व्यक्ति के आत्महत्या द्वारा म्रत्यु की खबरे हमारे संज्ञान में आती रहती है | इन खबरों में मरने वालो में ज्यादातर खबरे नई उम्र के नवयुवको एवं नवयुवतियो की होती है |
बड़ा अजीब सा लगता है यह देख कर कि जिस उम्र में अभी तक इन बच्चो ने ,इन किशोरों ने इस जिंदगी के सफ़र को अच्छे से देखा नहीं है , समझा नहीं है और अभी उनके उपर किसी ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं है फिर क्या वजह है की वह इस तरह का कदम उठा रहे है और सोचने वाली बात ये भी है कई बार अनपढ़ किशोरों के या औसत दर्जे के विद्यार्थियों के साथ साथ बहुत मेधावी छात्र भी मौत को गले लगाने से नहीं हिचक रहे हैं |क्या कारण है कि वे बिना हिचक के इस तरह आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे है ?
कही सामाजिक या पारिवारिक कारणों के साथ साथ एक कारण इन किशोरों की जिंदगी में धीरे धीरे पैर पसारता कारण अवसाद तो नहीं है ?
किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमे किशोर न तो पूरी तरह से परिपक्व होते है और न ही छोटे बच्चे होते है | वे उम्र के इस पड़ाव में बड़ा दिखना चाहते है और बड़ो जैसे सारे काम करना चाहते हैं | वे यह मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि कई बार वे जिन कामो को करने की जिद कर रहे हैं वे अभी ऐसे कामो का बोझ सहने के लिए बहुत छोटे है, अभी उनमे अनुभव की कमी है | किन्तु उम्र के इसी पड़ाव में किशोरों में बहुत सारे हार्मोनल बदलाव आते हैं | जिसके कारण उन्हें यह अहसास होता है कि अब वे भी बड़े हो गए हैं | ठीक ऐसे ही बदलाव किशोरियों में भी होते हैं | वह भी अपने से बड़ी उम्र की महिलाओ की तरह व्यवहार करने लगती हैं और मना करने पर वे चिढ़चिढ़ी भी हो जाती है और क्रोध में आ कर या नासमझी के कारण कई बार वे ऐसा कदम उठा लेती हैं जिसके कारण उन्हें पूरी जिंदगी अवसाद का सामना करना पड़ता है या वे लम्बे समय तक अवसादित रहती हैं |
‘अवसाद’ आज इस नाम से शायद ही अपरिचित होगा | किन्तु यह शब्द देखने में जितना छोटा लगता है इसका असर उतना ही गंभीर और घातक होता है और कई बार इसके परिवार के सदस्य ,रिश्तेदार ,दोस्त आदि इसको समझ नहीं पाते हैं | जिसकी वजह से अवसाद पीड़ित किशोर/किशोरियां कुछ ऐसा कदम उठा लेते हैं | जिसका परिणाम अक्सर बहुत घातक होता है |
आइये सबसे पहले हम ये समझ ले कि अवसाद ग्रस्त होने के बाद व्यक्ति में क्या क्या बदलाव आते हैं या किन कारणों के आधार पर हम यह जान सकते हैं कि अमुक किशोर अथवा किशोरी अवसाद ग्रस्त हैं |
लक्षण—: सामान्यता: अवसाद ग्रसित व्यक्ति में ध्यान में कमी , बेचैनी , एक जगह ठहराव की कमी , घबराहट, व्यवहार में बदलाव जैसे अचानक खुश हो जाना या अचानक बहुत दुखी हो जाना , रोने लगना , किसी ग्रुप में या दोस्तों में चुपचाप रहना , कई बार अचानक आक्रोशित हो जाना या अचानक शांत हो जाना |इन लक्षणों के साथ साथ कई बार पीड़ित बिलकुल अंतर्मुखी और उदासीन हो जाता है |
इन लक्षणों के साथ साथ और भी अन्य लक्षण हैं जिसके बारे में भी समझना बहुत आवश्यक है जैसे :
- दर्द की शिकायत लगातार करते रहना या लगातार थकान लगना |
- किसी भी कार्य में रूचि का कम हो जाना या धीरे धीरे बिलकुल समाप्त हो जाना |
- किसी भी प्रकार का यह तक कि छोटे से छोटा फैसला लेने में असमंजस या कठिनाई का अनुभव होना |
- भूख का बिलकुल न लगना या जरूरत से ज्यादा भूख लगना |
- बार बार चीजों या बातो को भूलना या याददाश्त में कमी आना |
- निराशावादी या नकारात्मक हो जाना |
- रात रात भर जागना और दिन में सोना |
- परीक्षा के अंको या ग्रेड में अचानक गिरावट आना |
- किसी मादक पदार्थो का सेवन अचानक से शुरू कर देना |
इसके अलावा कुछ ऐसे लक्षण भी हैं जिन्हें हम वार्निंग साईंन (warning sign )के नाम से जानते हैं | जिसमे व्यक्ति का बहुत गहन अध्यन किया जाना आवश्यक हो जाता है क्यों कि इन लक्षणों के लगातार दिखने पर अधिकांश किशोर या किशोरी आत्म हत्या के अंजाम तक पहुच जाते हैं |
जिसमे से कुछ प्रमुख लक्षण हैं-:
- किशोर अथवा किशोरी को अच्छे या बेहतर भविष्य की आशा किसी भी प्रकार से न दिखना |
- किशोर या किशोरी का हमेशा शांत और एकांत में रहना |
- अपने उपर बिलकुल ध्यान न देना यह तक कि अपनी पर्सनल हाईजीन (PERSONAL HYGIENE) पर भी ध्यान न देना |
- किशोर या किशोरी ऐसा महसूस होना कि अब वह सबसे नाकारा व्यक्ति है तथा किसी को भी अब उसकी जरूरत नहीं है|
- किसी भी प्रकार की डायरी या पत्र लिखना जिसमे किशोर या किशोरी ने दूर जाने का जिक्र भी किया हो|
- अचानक अपने परिवार या दोस्तों की बहुत अच्छे से देखभाल करने लगना |
- अपने आपको बार बार किसी न किसी प्रकार चोट पहुचाने की कोशिश करना |
ऊपर दिए गए तमाम लक्षणों के आधार पर हम यह जान सकते हैं कि फलां किशोर या किशोरी अवसादित तो नहीं है या अवसाद की तरफ तो नहीं जा रहे | इन लक्षणों को देख कर हम किसी भी व्यक्ति के बारे में पूर्ण रूप से नहीं किन्तु लगभग अनुमान तो लगा ही सकते हैं कि अमुक किशोर या किशोरी अवसाद ग्रस्त है कि नहीं |
लक्षणों की जानकारी होने के साथ साथ हमे अवसाद उत्पन्न करने वाले कारक या कारणों का भी जानना अति आवश्यक है | जिससे उस अवसाद उत्पन्न करने वाले कारणों का निवारण करने में आसानी रहती है और हम किसी भी व्यक्ति को अवसाद ग्रस्त होने से बचा सकते है |
डॉ० संजय श्रीवास्तव अब स्मृति शेष हैं। प्रस्तुत लेख उन्होंने अपने जीवन काल में लिखा था। आई. सी. एन. द्वारा इस लेख के पुन: प्रकाशन का उद्देश्य समाज को इसकी उपयोगिता से पुन: परिचित कराना एवं अपने विद्धान लेखक को श्रृद्धांजलि अर्पित करना हैडॉ. संजय श्रीवास्तव आई सी एन ग्रुप के एसोसिएट एडिटर, साइकोलोजिकल काउन्सलर एवं क्लीनिकल हिप्नोथेरेपिस्ट थे.