तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ,
पढ़ रहा हूँ रेत पर,
मिटते मिटाते लेख, जो बाँचे समय ने।
वो भगीरथ की तपस्या, और वो अद्भुत कमंडल।
वेग था जिसमें समाया साथ लेकर स्वर्ग का जल।।
और फिर शिव शीश पर उतरी महा गंगा निनादी ।
तर गये पुरखे, धरा पर धार अमृत की बहा दी।।
राम ने ले जन्म, लक्ष्मण साथ दानव दैत्य तारे।
भूमिजा को वारि, पापी नाश, रावण कुल संहारे।।
राम का था राज्य अद्भुत, थे प्रजा के भाग्य जागे।
पूर्ण कर उद्देश्य निज, सरयू नदी में प्राण त्यागे।।
और द्वापर में धरा पर धर्म की स्थापना हित।
कृष्ण कारागार में जन्मे स्वयं ले सृष्टि संचित।।
प्रेम राधा से किया, कर्तव्य पर सबसे बड़े थे।
कंस का ही वध नहीं, वे हर अराजक से लड़े थे।।
कर्म द्वारा धर्म तो बस, आत्मा का अनुकरण है।
ज्ञान गीता का बहा जो, सब समय को स्मरण है।।
वे महाभारत विजेता, पूर्ण कर सब कर्म अपने।
देह छोड़ी तीर का बन लक्ष्य, थे दृग बीच सपने।।
मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ,
पढ़ रहा हूँ रेत पर,
कुछ जगमगाते लेख, जो बाँचे समय ने।