तुम बंदों पर कृपा करो, ईश्वर तुम पर कृपा करेगा।

मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप

सहसवान/बदायूं: यूं तो देश और दुनिया में अनगिनत लोगों को ईश्वर ने दौलत से शोहरत से नवाजा है इस संसार में बेशुमार ऐसे लोग हैं जिनके पास बेशुमार दौलत का खजाना है मगर उन बेशुमार लोगों में ऐसे खुशकिस्मत बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें ईश्वर दौलत के साथ-साथ अपनी रहमत की दौलत से भी नवाजता है। अक्सर यह बात कही जाती है फला शख्स बहुत दौलतमंद है ईश्वर कि उस पर बहुत कृपा है मगर यह जरूरी नहीं की हर दौलतमंद शख्स पर ईश्वर की कृपा हो ओर ईश्वर उससे खुश हो। कुरान और वेदों में लिखा है जिसमें ईश्वर हम सब से कहता है कि तुम मेरे बंदो पर रहम करो मैं तुम पर रहम  करूंगा। इस वाक्य से हमें यह संदेश मिलता है कि यदि हम ईश्वर की रहमत (कृपा) हासिल करना चाहते हैं तो हमें उसके बंदो विशेषकर मजबूर और लाचार बंदो से प्रेम  किए बिना प्राप्त नहीं हो सकती। जैसा यह बात हदीस शरीफ के हवाले से प्रमाणित है की ईश्वर ने दुनिया बनाने से पहले पचास हजार वर्ष पूर्व जब ईश्वर का अर्श आज़म (सिंहासन) पानी पर था उसी समय हजरत आदम अलेह सलाम से लेकर ता कयामत तक जितनी भी रूह (आत्मा) इस पृथ्वी पर आएंगी उन सबकी तकदीर ईश्वर के द्वारा लिखी जा चुकी है। हमारे मस्तिष्क में यह बात  शैतान डालता है कि यदि तमाम मखलूक (प्रजातियों) की तकदीर दुनिया बनने से पचास वर्ष पूर्व लिखी जा चुकी है तो भाग्य में जो लिखा होगा वह उसके साथ घटित होना ही है तो फिर हमें कर्म करने की आवश्यकता क्या है जिसके भाग्य में जो लिखा है वह तो होना ही है मगर किसके भाग्य में क्या लिखा है यह बात  ईश्वर के अलावा किसी को नहीं पता पूरी दुनिया में कहीं भी किसी भी व्यक्ति के साथ कोई भी घटना घटित होती है या किसी भी व्यक्ति  को फायदा या नुकसान होता है तो उसे फायदा या नुकसान पहुंचाने के लिए स्वयं ईश्वर धरती पर विराजमान नहीं होते हैं। संसार में किसी भी व्यक्ति को फायदा या नुकसान पहुंचाने के लिए किसी ना किसी रूप में व्यक्ति का ही हाथ होता है। अब यह  हमारे विवेक के ऊपर निर्भर करता है कि हम ईश्वर के द्वारा बनाए गए बंदो को अपनी कलम अपनी दौलत अपनी वर्दी अपनी कुर्सी अपनी ताकत या अपनी सियासी (राजनीतिक) शक्तियों का प्रयोग इंसान को फायदा पहुंचाने में इस्तेमाल करते हैं या नुकसान पहुंचाने में करते हैं। मैं लाख-लाख शुक्र अदा करता हूं उस ईश्वर का जिसने यह दुनिया नाशवर खत्म होने वाली बनाई।कुरान ए करीम में लिखा है “कुल्लू नफसिन ज़ायकतुल मौत” जिसका अर्थ है हर जानदार को मौत का स्वाद चखना है ।यदि इंसान को यहां इस धरती पर हमेशा हमेशा के लिए रहना होता तो इंसान इंसान को खा जाता इतने पर भी कि जब इंसान को यह मालूम है कि उसे एक न एक दिन मरना है और मरने के बाद ईश्वर के सामने उपस्थित होकर उसे अपने कर्मों का हिसाब देना है फिर भी वह इंसान जो पैदा होते वक्त इतना मजबूर और लाचार होता है कि वह अपने मुंह पर बैठी हुई मक्खी नहीं मार सकता और यही हालत दुनिया में बड़े-बड़े पदों पर रहे हुए चाहे अधिकारी हो मंत्री हो या फिर बादशाह हो बुढ़ापे का खौफनाक साया अपनी गिरफ्त में लेता है तो बड़े-बड़े धुरंधरों की हालत इतनी काबिले रहम हो जाती है कि चाह कर भी वे चम्मच से अपने मुंह में पानी  तक डाल नहीं सकते। “जमाने ने मारे जवां कैसे कैसे जमीन खा गई आसमां कैसे कैसे” प्रकृति का नियम है समय सदैव एक जैसा नहीं रहता कभी इंसान जमीन के ऊपर होता है कभी जमीन इंसान के ऊपर होती है इसलिए जवानी, दौलत,ताकत कुर्सी, वर्दी, राजनीतिक ताकत के घमंड में चूर हर उस इंसान को इस बात का  अवश्य ध्यान रखना चाहिए यह कि  जो ताकत ईश्वर ने उसे दी है यह बहुत थोड़े समय के लिए हैं और कल जब वह मृत्यु शैया पर पड़ा होगा तो उसे अपने बीते हुए समय के कार्य का ख्याल आएगा और जो जुल्म उसने ईश्वर के बंदों पर किए होंगे उसके लिए पछतावा और जो पुण्य के कार्य उसने अपने जीवन में किए होंगे उसके लिए संतुष्टि की भावना उत्पन्न होगी। यह बात तो तय है कि इस दुनिया की संरचना करने वाला एक ही ईश्वर है जिसे हम अलग-अलग नामों से अल्लाह भगवान वाहेगुरु गॉड के नाम से जानते हैं इस दृष्टिकोण से हम माने या ना माने संपूर्ण विश्व की मानव जाति एक दूसरे के भाई बहन हैं। शायद इसीलिए हमारे महान देश भारत की यह संस्कृति है जिसमें कहा गया है कि वासुदेवाय: कुटुंब यानी संपूर्ण विश्व के नागरिक एक परिवार समान है। यदि कोई व्यक्ति किसी राजा के घर में पैदा हो गया तो उसमें उसका कोई कमाल नहीं कमाल है तो उस ईश्वर का कि उसने उसे राजा के घर में पैदा किया और यदि कोई व्यक्ति किसी रंक के घर में पैदा हुआ तो उसमें उसका कोई दोष नहीं है संपूर्ण ब्रह्मांड का व्यवस्थापक ईश्वर है। वह भली-भांति जानता है कि किस व्यक्ति को कहां पैदा करना है और किस व्यक्ति से दुनिया में क्या काम लेना है। यदि सब कलेक्टर बन गए तो साइकिल में पंचर कौन जोड़ेगा इसलिए यदि कोई व्यक्ति किसी अच्छे पद पर आसीन है तो वे अपने आप में इतराए ना ओर  यदि कोई व्यक्ति दुनिया में गुमनामी की जिंदगी गुजार रहा है कहने का तात्पर्य है कि उसे समाज के बिल्कुल निम्न दर्जे में रखा जाता है तो वह घबराए ना और हर परिस्थिति में ईश्वर का शुक्र अदा करता रहे। आला अधिकारी से लेकर  निम्न स्तर के कर्मचारी दस्तगीर तथा मजदूर का राष्ट्र निर्माण में बराबर का सहयोग है इसलिए किसी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं कि वह  मुख्यधारा से कटे हुए लोगों  को  हिकारत (तिरस्कार) की दृष्टि से देखें।

यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं यदि इस लेख में कोई त्रुटि हो तो उसके लिए लेखक क्षमा चाहता है।

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