तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ,
पढ़ रहा हूँ रेत पर,
मिटते मिटाते लेख, जो बाँचे समय ने।
क्रूर यवनों ने किये थे आक्रमण भारत धरा पर।
जीतने को विश्व था यूनान से निकला सिकंदर ।।
वीर पोरस को हरा कर मान निज उसने बढ़ाया।
पर मगध में मौर्य वंशी वीर ने उसको हराया।।
शाक्य, हूणों ने अनेकों देश पर हमले किये थे।
वंशजों ने जाम शासन के यहाँ सदियों पिये थे।।
जान कब बख्शी अरब, मंगोल, फिर ईरानियों ने।
गजनवी महमूद देखा खूब हिंदुस्तानियों ने।।
देश पर सत्रह दफे की, क्रूर गौरी ने चढ़ाई।
सोम मंदिर ध्वस्त कर वापस गया वह आतताई।।
फिर कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहाँ सत्ता संभाली।
और जिसके बाद खिलजी और तुगलक नींव डाली।।
लूट कर तैमूर, नादिर शाह लौटे देश अपने।
फिर मुग़लिया वंश ने अपने किये थे पूर्ण सपने।।
राज फिर बरतानिया ने भी किया ढाई सदी तक।
मुक्ति की हमने सुनी थी सिर्फ़ उसके बाद दस्तक।।
मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ,
पढ़ रहा हूँ रेत पर,
आँसू बहाते लेख, जो बाँचे समय ने।