तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
‘ज़िंदगी’ एक बहुत ही खूबसूरत अहसास है और शायद इंसान की सबसे बड़ी ज़रुरत भी। सारी दुनिया इसी ‘ज़िंदगी’ नाम की एक शय के बदौलत ही चल रही है।
सच कहा जाये तो इस ‘दुनिया’ रूपी गाड़ी में ‘ज़िंदगी’ नाम का ही ईंधन का प्रयोग होता है। और इसकी खूबी भी देखिये, हज़ारों शिकायतों के बावजूद भी हर इंसान अपने दोनों हाथों से अपनी ज़िंदगी को कस कर पकड़े हुये है कि वक़्त के बहाव में वह उसके हाथों से कहीं छूट न जाये।
ज़िंदगी जितनी हसीन है, उतनी ही जादुई भी। हर व्यक्ति को लगता है कि ज़िंदगी को उससे बेहतर कोई नहीं समझता है लेकिन अगले ही पल ज़िंदगी उसे अपना ऐसा पैंतरा दिखाती है कि उसकी सारी समझ धरी की धरी रह जाती है। ज़िंदगी के हज़ारों रंग हैं और हर दृष्टिकोण से ज़िंदगी का एक नया ही पहलू दिखाई पड़ता है। उर्दू शायरी में तमाम शायरों ने ‘ज़िंदगी’ नाम की इस नियामत को अपनी-अपनी नज़रों से परखने की कोशिशें की हैं। उर्दू में ‘ज़िंदगी’ के पर्याय ‘हयात’ व ‘ज़ीस्त’ भी हैं। मैंने उर्दू के कठिन लफ़्ज़ों के अर्थ भी साथ में देने का प्रयास किया है ताकि वे पाठक भी जो उर्दू भाषा से भली-भाँति परिचित नहीं हैं, वे भी शायरी का भरपूर आनंद ले सकें।
‘ज़िंदगी’ शायद दुनिया की सबसे रहस्यमयी अवधारणा है। ‘ज़िंदगी’ पर दुनिया के हर साहित्य में सबसे अधिक लिखा व समझा गया है किंतु ‘आदि’ से ‘अंत’ तक पूरी गहराई से विमर्श करने के बाद भी आखिर में जो चीज़ ‘सबसे कम समझी और सुलझी’ हुई पाई जायेगी, वह यक़ीनन ‘ज़िंदगी’ ही होगी।
आइये, आज हम यह देखने का प्रयास करते हैं कि उर्दू शायरी में विभिन्न शायरों व कलमकारों ने ‘ज़िंदगी’ को अपने-अपने नज़रिये से किस प्रकार देखा। मैं इस विषय पर जितना अध्ययन कर पाया, उसमें से कुछ खूबसूरत शेर मैंने आपके लिये चुने हैं।
जॉन एलिया उर्दू शायरी में प्रगतिशील शायर माने जाते हैं और वे उर्दू साहित्य में अपने अलग व निराले अंदाज़ के लिये मशहूर हैं। आइये, चलते हैं उनके पास और उनसे ‘ज़िंदगी’ पर कुछ गुफ़्तगू (वार्तालाप) करते हैं –
जॉन एलिया के अनुसार –
“ज़िंदगी एक फ़न है लमहों का,
अपने अंदाज़ से गँवाने का।”
वे आगे कहते हैं –
“जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।”
और उनके इस मासूम शेर का तो कहना ही क्या है –
“अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं,
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या।”
फिराक़ गोरखपुरी उर्दू शायरी का एक जगमगाता हुआ नाम है। बगैर इस नाम को शामिल किये उर्दू शायरी का कोई भी तबसरा बेमानी है। फिराक़ साहब ‘ज़िंदगी’ पर फ़रमाते हैं –
“मौत का भी इलाज हो शायद,
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं।”
और यह भी उनका एक शानदार शेर है –
“ग़रज़ कि काट दिये ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।”
एक रंग और ज़िंदगी का कुछ इस तरह –
“ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त,
सोच लें और उदास हो जायें।”
कितना सही कहा है सर आपने –
“ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी।”
ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आप उर्दू शायरी से मोहब्बत करते हों और आप जिगर मुरादाबादी जैसे बड़े शायर से परिचित न हों। कुछ नामचीन शायर तो उर्दू शायरी में एक ‘स्कूल’ की हैसियत रखते हैं। आइये, जिगर मुरादाबादी साहब के सानिध्य का आनंद लेते हैं –
“यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बगैर
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं।”
उर्दू के एक और शायर इमाम बख़्श नासिख़ का ज़िंदगी पर कहा एक शेर इतना लोकप्रिय हुआ कि हर खास-ओ-आम की ज़ुबान पर चढ़ गया। लोगों को यह शेर तो बखूबी याद रहा लेकिन वे शायर का नाम उस शिद्दत से याद नहीं रख पाये। यह अच्छा अवसर है कि हम उस खूबसूरत शेर के साथ उसके शायर इमाम बख़्श नासिख़ को भी याद कर लें –
“ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है
मुर्दा दिल ख़ाक जिया करते हैं।”
इसी तरह ‘ज़िंदगी’ पर एक और शेर हम अपने बचपन से सुनते आये हैं लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि यह शेर ख़्वाजा मीर ‘दर्द’ साहब का है –
“सैर कर दुनिया की गाफ़िल, ज़िंदगानी फिर कहाँ,
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ।”
लेकिन ‘ज़िंदगी’ का जैसा आध्यात्मिक स्वरूप चकबस्त ब्रिज नारायण के इस शेर में मिलता है, वैसा कहीं अन्यत्र नहीं मिलता। शेर के इस छोटे से फॉरमेट में भी कितनी बड़ी बात कही जा सकती है, उसकी इससे बेहतर मिसाल मिलना मुश्किल है –
“ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब,
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना।”
उर्दू में ‘अनासिर’ का अर्थ ‘तत्व’ हैं जिनमें ‘क्षितिज’, ‘जल’, ‘अग्नि’, ‘आकाश’ व ‘हवा’ शामिल हैं। ‘ज़ुहूर-ए-तरतीब’ का अर्थ ‘समायोजन की कला’ एवं ‘अज्ज़ा’ का अर्थ भी ‘तत्व’ है तथा ‘परेशाँ’ का अर्थ है ‘बिखर जाना’ । इस प्रकार इस शेर का अर्थ है कि ज़िंदगी पंचभूत तत्वों के समायोजन की कला है और इन तत्वों का बिखर जाना ही मौत है। है न खूबसूरत और आध्यात्म की गहराई से परिपूर्ण बात?
क़ैफ़ भोपाली फ़रमाते हैं –
“ज़िंदगी शायद इसी का नाम है,
दूरियाँ, मजबूरियाँ, तनहाइयाँ।”
तो मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ ज़िंदगी को कुछ इस अंदाज़ से देखते हैं –
“ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिसमें,
हर घड़ी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं।”
अमीर मीनाई उर्दू शायरी में एक बड़ा नाम है। वे ज़ीस्त यानी ज़िंदगी के बारे में फरमाते हैं –
“ज़ीस्त का ऐतबार क्या है अमीर,
आदमी बुलबुला है पानी का।”
उर्दू में ज़िंदगी को ‘हयात’ भी कहते हैं। सलाम संदेलवी का हयात पर एक मशहूर शेर का आनंद लें –
“रह-ए-हयात चमक उट्ठे कहकशाँ की तरह,
अगर चराग़-ए-मोहब्बत कोई जला के चले।”
इस शेर में ‘रह-ए-हयात’ का अर्थ ‘ज़िंदगी की राह’ एवं ‘कहकशाँ’ का अर्थ ‘आकाश गंगा’ है।
किसी अज्ञात शायर का यह शेर भी हयात की बड़े निराले अंदाज़ में नुमाइंदगी करता है –
“जीने की आरज़ू में जो मरते हैं सारी उम्र,
शायद हयात नाम इसी मरहले का है।”
‘मरहले’ का अर्थ ‘अवस्था’ अर्थात ‘स्टेज’ है।
पुराने ज़माने के उस्ताद शायर मीर तक़ी ‘मीर’ ने ज़िंदगी अर्थात ‘जान’ के बारे में जो फरमाया, वह बाद में समाज में मुहावरा ही बन गया –
“मीर अमदन भी कोई मरता है,
जान है तो जहान है प्यारे।”
‘अमदन’ का अर्थ ‘जान बूझ कर’ है।
कलीम आजिज़ का एक शानदार शेर देखिये –
“दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिये,
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने का जी चाहे है।”
उर्दू की पारंपरिक शायरी से उसके आधुनिक शायरी तक के सफ़र में जो चंद लोग ज़िम्मेदार हैं, उनमें निदा फ़ाज़ली एक महत्त्वपूर्ण नाम है। निदा फ़ाज़ली न केवल जदीद अर्थात आधुनिक शायरी के लिये ही जाने जाते हेैं वरन् वे सूफियाना काव्य के भी चमकदार हस्ताक्षर हैं। ज़िंदगी को वे कुछ ख़ास नज़र से देखते हैं। आइये, उनके कुछ शेरों के माध्यम से हम उनसे भी मुलाकात करते हैं –
“होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज़ है,
इश्क कीजे फिर समझिये, ज़िंदगी क्या चीज़ है।”
और
“धूप में निकलो, घटाओं में नहा कर देखो,
ज़िंदगी क्या है, किताबों को हटा कर देखो।”
शकील बदायूनी उर्दू शायरी का एक बड़ा नाम है। शकील बदायूनी ने अनेक हिंदी फ़िल्मों में सैकड़ों खूबसूरत गीत लिखे हैं जिन्हें भारतीय जन मानस गाहे बगाहे गुनगुनाता रहता है। आइये, ज़रा ज़िंदगी के बारे में उनकी क्या राय हेै, ये भी देखें –
“अब तो खुशी का ग़म है न ग़म की खुशी मुझे,
बेहिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे।”
इस शेर में ‘बेहिस’ का मतलब ‘असंवेदनशील’ है।
डॉ बशीर बद्र उर्दू शायरी में बहुत ऊँचाई पर स्थापित नाम है जो अपने जीवन काल में ही एक किंवदंती बन चुका है। उनके नाम उर्दू शायरी को सबसे ज़्यादा मशहूर व मकबूल शेर देने का कीर्तिमान है। उनकी शायरी समाज व उम्र के हर वर्ग के लोगों के लिये है। आइये, एक छोटी सी मुलाकात बशीर बद्र से उनके दो- एक शेरों के माध्यम से करते हैं –
“ज़िंदगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मी,
पाँव फैलाऊँ तो दीवार से सर लगता है।”
एवं
“उजाले अपनी यादों के, हमारे पास रहने दो,
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाये।।”
अख़्तर सईद ख़ान अपने शेर में ज़िंदगी की सच्चाई कुछ इस तरह परखते हैं –
“तू कहानी ही के परदे में भली लगती है,
ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती।”
साहिर लुधियानवी उर्दू शायरी के महबूब शायर हैं। कहा जाता है कि उनके समय में वे प्यार करने वालों की ज़ुबान थे और उनके कहे शेर कभी तकियों के गिलाफ़ों पर और कभी चिट्ठियों की शक्ल में नौजवान लड़के-लड़कियों की किताबों के बीच पाये जाते थे। फ़िल्मी दुनिया को हज़ारों खूबसूरत व लोकप्रिय गीत देने वाले साहिर ज़िंदगी को कुछ इस नज़र से देखते हैं –
“इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ,
जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से।”
और इस शेर का तो कोई जोड़ ही नहीं है –
“ले दे के अपने पास फ़क़त एक नज़र तो है,
क्यों देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम।”
मुज़्तर खैराबादी का ज़िंदगी के लिये यह नज़रिया भी कम दिलचस्प नहीं है –
“मुसीबत और लंबी ज़िंदगानी
बुज़र्गों की दुआ ने मार डाला।”
हर किसी को ज़िंदगी के खूबसूरत रंग तोहफ़े में मिले, यह हमेशा आवश्यक नहीं है। फ़ानी बदायुनी का यह खूबसूरत शेर ज़रा देखिये तो –
“हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत फ़ानी,
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिये जाने का।”
इस शेर में प्रयुक्त ‘नफ़स’ का अर्थ ‘आत्मा’ तथा ‘उम्र-ए-गुज़िश्ता’ का मतलब ‘अतीत/ भूतकाल/ बीता हुआ समय’ है।
अहमद फ़राज़ उर्दू शायरी के उन चंद शायरों में हैं जिनका नाम उर्दू अदब में बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। वे पाकिस्तान के बाशिंदे (निवासी) थे। ज़िंदगी पर क्या हसीन इमेजिनेशन उनके इस शेर में है –
“ज़िंदगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिंदा,
और तू है कि सदा आईनाखाना माँगे।”
जनाब हैदर अली ज़ाफ़री की नज़र में ज़िंदगी एक सफ़र के बीच का पड़ाव मात्र है। क्या खूबसूरत अंदाज़ में वे ज़िंदगी को बयां करते हैं –
“आप ठहरे और रवाना हो गये,
ज़िंदगी क्या है सफ़र की बात है।”
गुलज़ार किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। वे पहले एक साहित्यकार हैं तथा बाद में एक फ़िल्मकार। उनका लहज़ा सबसे जुदा और अनोखा है –
“कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है,
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है।”
सदा अंबालवी का यह शेर दिल की गहराईयों में उतर जाता है –
“बड़ा घाटे का सौदा है ‘सदा’ ये सा़ँस लेना भी
बढ़े है उम्र ज्यूँ ज्यूँ ज़िंदगी कम होती जाती है।”
और नज़ीर सिद्दिक़ी का यह दावा भी कोई झूठा दावा नहीं है –
“जो लोग मौत को ज़ालिम करार देते हें,
खुदा मिलाये उन्हें ज़िंदगी के मारों से।”
और इबरत मछली शहरी ने जैसी सादगी से ज़िंदगी को परिभाषित किया है, वह किसी कमाल से कम नहीं है –
“ज़िंदगी कम पढ़े परदेसी का ख़त है ‘इबरत’,
ये किसी तरह पढ़ा जाये न सनझा जाये।”
सुहैल काकोरवी ने न केवल उर्दू, बल्कि हिंदी, अंग्रेज़ी व फ़ारसी में भी अपना महत्त्वपूर्ण साहित्यिक योगदान दिया है। उनके तमाम हैरतअंगेज़ साहित्यिक कारनामे कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। अदब की दुनिया में उनका नाम बड़ी इज़्ज़त से लिया जाता है। वे ज़िंदगी के बारे में फ़रमाते हैं –
“गर तुझे जीना है तो दिल में मोहब्बत रख के जी,
मेरी जानिब आ रही है, ये सदा-ए-ज़िंदगी।”
तश्ना आज़मी एक ऐसे शायर हैं जो जितनी मोहब्बत से मंचों से सुने जाते हैं, उतने ही चाव से अपने प्रकाशित दीवानों के माध्यम से पाठकों द्वारा पढ़े भी जाते हैं। ज़िंदगी पर उनके नज़रिये भी खासे दिलचस्प हैं –
“सवाल ये नहीं कब तक है ज़िंदगी अपनी,
सवाल ये है इसे किस तरह जिया जाये।”
और
“दिन के हारे हुए जब शाम को घर जाते हैं,
ज़िंदगी हम तिरी आग़ोश में मर जाते हैं।”
और यह भी –
“आप क्या समझेंगे इसको हज़रत ए वाइज़ कि हम,
किस तरह से ज़िंदगी को ज़िंदगी करते रहे।”
विवेक भटनागर एक ऐसे युवा शायर हैं जिन्होंने ग़ज़ल के शहर में हिंदी भाषा के रास्ते से प्रवेश किया लेकिन उनके निराले तेवर और अनूठे अंदाज़ ने उन्हें कम उम्र में बड़ी इज़्ज़त हासिल हुई। उन्होंने ज़िंदगी की परख अपने ही दिलचस्प दृष्टिकोण से की –
“मानिन्दे-नूडल्स है ज़िंदगी,
उलझी हुई और लज़्ज़त भरी।”
और
“पीजिए, ना पीजिए, है आप पर,
जिंदगी सुलगी हुई सिगरेट है।”
और यह भी –
“ये जिंदगी भी आपकी क्या है विवेक जी,
तपते हुए तवे पे है इक रक़्स बूंद का।”
मंजुल मयंक मिश्र ‘मंजंर’ शायरी में एक तेज़ी से उभरता हुआ नाम है। उनकी शायरी हमें एक से एक मंज़र दिखाती है। ज़िंदगी उनकी शायरी में बकायदा ज़िंदा दिखाई देती है। आइये, कुछ उनकी शायरी का भी लुत्फ़ उठाया जाये –
“कभी हँसाती है सबको कभी रुलाती है
जहां के सारे रंग-ओ-बू हमें दिखाती है।
सँवार लो ज़रा शिद्दत से ज़िंदगी यारो,
फिसल के रेत सी मुठ्ठी से छूट जाती है।”
और
“बयां कर दे हक़ीक़त ज़िंदगी की,
वही है शायरी जो दिल को छूले।”
अमिताभ दीक्षित किस कला में पारंगत नहीं हैं। चाहे वह संगीत हो, या चित्रकला हो या साहित्य, सब पर उनकी विशिष्ट छाप है।
अपनी एक नज़्म के माध्यम से ज़िंदगी पर वे फ़रमाते हे –
” ….. पंछियों के शोर से सुबह की सुगबुगाहट आए,
नींद अभी बाकी हो लैप्म पोस्ट बुझ जाए,
और ज़िन्दगी उनींदी सी करवट बदल के सो जाए,
थोड़ी देर और ……
जी हाँ ये वही जगह है ज़िन्दगी जहां सांस लिया करती है,
पैदा होती है, उम्र भर जीती है, मर भी जाती है,
इसकी सांसें मगर यहाँ फिर भी चला करती हैं,
ज़िन्दगी फुटपाथ पे बस यूं ही गुज़र जाती है।….”
ज़िंदगी की एक बहुत लंबी कहानी है जिसमें रोज़ नयी- नयी कहानियाँ जुड़ती जाती है। जिस समय विश्व को लगता है कि अब ज़िंदगी ख़त्म हो गयी, ज़िंदगी मुस्कराती है और फिर चल पड़ती है। इसके दामन में ढेर सारी खुशियाँ हैं, कहकहे हैं, मुस्कानें हैं, और हाँ, सैकड़ों कभी न भुलाये जाने वाले ग़म भी। ज़िंदगी कभी नहीं हारती क्योंकि वो ‘ज़िंदगी’ है। हम सब ज़िंदगी को अपनी-अपनी जगह से और अपने-अपने अंदाज़ से देखते हैं और इस खूबसूरत भूलभुलैया में अपने आप को ढूंढते रहते हैं। कल जब हम नहीं थे, ज़िंदगी तब भी थी और कल जब हम नहीं होंगे, यह ज़िंदगी तब भी रहेगी।
ज़िंदगी एक ऐसी शय है जो हर ग़म, दुख, त्रासदी और मुसीबत के बाद भी हमें प्यारी है। तभी तो, कभी मुझसे भी एक शेर ज़िंदगी के नाम हो गया था –
” जिसने मरने के लिये खुद ही ज़हर खाया था,
उसने मरते हुये सोचा कि ज़िंदगी होती।”