By : श्रेय शेखर
कुछ ऐसे ही चलते चलते वो रुक गए होंगे
पैदल चल कर यक़ीनन थक गए होंगे,,
कल फिर से कुछ दूर निकल जाएंगे
ये सोच कर रात में ठहर गए होंगे।।
कोई दहलीज़ नहीं लांघी थी
कोई घर द्वार नहीं भूला था,,
वो माँ जो गाँव में रह रही है
उसके बाँहों में आख़िरी बार झूला था।।
आज भी सब याद करते होंगे
उसकी ही बात करते होंगे,,
अभी कल ही तो बात हुई होगी
यह सोच कर विलाप करते होंगे।।