पुलिस और जनता

मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप
साठ के दशक में  हिंदी सिनेमा  की सबसे कामयाब फिल्म मुग़ले आजम बनी थी। फिल्म में मुख्य भूमिका अकबर ए आजम, शहजादा सलीम, व अनारकली की थी। फिल्म के अंत में मुगल शहंशाह अकबर अनारकली से मुखातिब होकर कहते हैं  “अनारकली  बखुदा हम मोहब्बत के दुश्मन नहीं लेकिन अपने उसूलों के गुलाम हैं। एक गुलाम की बेबसी पर  गौर करोगी तो शायद तुम हमें माफ कर सको।”
सहसवान/बदायूं: फिल्म की बेशुमार कामयाबी की गंभीर, सख्त, तेज तर्रार व तमाम जमाने की बुराई  अपने ऊपर लेने वाले बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के बिना  कल्पना भी नहीं की जा सकती।ठीक उसी तरह से पुलिस के बिना हमारे सुदृढ़ समाज की भी कल्पना नहीं की जा सकती। पुलिस डिपार्टमेंट का देश की कानून व्यवस्था बनाए रखने में और संपूर्ण देश मै शांति व्यवस्था बनाए रखने मे बहुत बड़ा योगदान है। केंद्र सरकार राज्य सरकार या फिर हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट या देश की अन्य कोई मैनेजमेंट बॉडी कोई भी कानून बनाती है उसको इंप्लीमेंट करवाने के लिए सबसे बड़ा रोल पुलिस विभाग का होता है। पुलिस विभाग के सहयोग के बिना हम  किसी भी राष्ट्र के निर्माण की कल्पना भी नहीं कर सकते। आज के दौर में पुलिस विभाग की नौकरी बहुत ही जिम्मेदारी के साथ-साथ जोखिम भरी भी है। बदलते हुए माहौल में जहां हर व्यक्ति किसी न किसी वजह से अंडर प्रेशर है उस समस्या से पुलिस विभाग भी अछूता नहीं है। संसार में ऐसा कोई व्यक्ति और ऐसा कोई डिपार्टमेंट तथा एजेंसी नहीं है जिसमें गुण और दोष ना हो यदि किसी व्यक्ति में केवल और केवल गुण ही पाए जाएं तो वे व्यक्ति इंसान ना होकर फरिश्ता  (देवता)  हो जाए। आम जनता के दरमियान पुलिस  अधिकारियों तथा पुलिसकर्मियों की छवि मुगल शहंशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की तरह एक सख्त कठोर व गंभीर व्यक्ति के रूप में होती है। एक पुलिस अधिकारी व पुलिसकर्मी जो जनता के रक्षक होते हैं आम जनता के दरमियान उनकी छवि इतनी सकारात्मक नहीं होती जितनी कि होना चाहिए आखिर क्या वजह है जो लोग समाज के लिए दिन रात सिर्फ और सिर्फ हमारी हिफाजत के लिए मेहनत करते हैं ताकि समाज में सुख और शांति बनी रहे और समाज के लोग चैन की नींद सो सके।पुलिस विभाग की सबसे बड़ी कमी  जो महसूस की जाती है  वह यह है कि किसी भी सड़क छाप व्यक्ति की शिकायत पर किसी भी शरीफ व भले आदमी  जिसमें शिक्षक, चिकित्सक,  अधिवक्ता व समाज में इज्जत रखने वाले व्यापारी के घर पर आनन-फानन में उसे थाने ले जाने के लिए आ जाती है। एक शरीफ व भले आदमी के  दरवाजे पर  पुलिस का आवाज लगाना  उसके लिए काबिले शर्म में होता है। सड़क छाप लोगों तथा असामाजिक तत्व की  छोटी-छोटी शिकायतों को  पुलिस इस तरह से संज्ञान लेती है गोया फोन किसी सड़क छाप ने नहीं किसी अधिकारी ने करा हो। पुलिस शरीफ व भले आदमी को  रुसवा करने की बजाय ऐसे  असामाजिक तत्वों और सड़क छाप लोगों को टारगेट  करना शुरू करें  तो  उनकी अकल ठिकाने आ जाए। स्थिति यह है कि यदि पुलिस किसी व्यक्ति को किसी भी छोटे या बड़े अपराध के कारण  या झगड़े के कारण  कोतवाली ले जाती है  तो उसके संबंध में पुलिस अधिकारियों से  बात करने के लिए  उसके सगे संबंधी  या आम नागरिक विशेषकर शरीफ व भला आदमी अनपढ़ की तो बात ही छोड़ो अच्छा खासा पढ़ा लिखा आदमी भी कोतवाली  जाने  से डरता है। उसके दिल में  का एक तरह भय बैठा हुआ है कि यदि मैं भी थाने गया तो पुलिस मुझसे भी बदतमीजी करेगी जो सरासर गलत है । हम यह भूल जाते हैं पुलिस की वर्दी में सामने बैठा हुआ व्यक्ति एक इंसान हैं उसके भी सीने में एक कोमल हृदय है परंतु एक आम आदमी का भय भी अपनी जगह किसी हद तक सही है। एक कहावत है एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा करती है ठीक इसी तरह से चाहे पुलिस विभाग हो या कोई और अन्य विभाग हो या जनता हो कुछ गलत लोगों की वजह से पूरे डिपार्टमेंट और पूरे समाज को कलंकित होना पड़ता है। इस बात से हरगिज़ इंकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस विभाग में कुछ व्यक्ति कैसे होते हैं  जो वर्दी पहनते ही आम जनता पर अपना रुतबा जमाना ही अपना कर्तव्य समझते हैं और कहीं विपरीत परिस्थिति में  जहां संवाद के जरिए भी  मामले को सुलझाया जा सकता है  वहां बिला वजह  डंडे का इस्तेमाल करके माहौल को खराब कर दिया जाता है जिसके कारण  पुलिस डिपार्टमेंट  की कार्यशैली पर  प्रश्नचिन्ह लग जाता है। कभी-कभी  कोतवाली में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है कि एक शरीफ  और पढ़े लिखे आदमी से कुर्सी पर बैठने तक को नहीं कहा जाता और कुछ बदनामे जमाना थाने में पूरे रुतबे के साथ  कुर्सी पर बैठे नजर आते हैं।यह कथन कड़वा तो जरूर है मगर सत्य भी है। परंतु ज्यादातर पुलिस अधिकारी और पुलिसकर्मी ऐसे भी होते हैं जो जनता की सेवा पूरी  कर्तव्य निष्ठा के साथ समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखते हुए करते हैं। हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं अच्छे से अच्छे इंसान मैं भी कई कमियां होती हैं और बुरे से बुरे इंसान में भी कई अच्छाइयां होती हैं। जरूरत होती है हमें उन निगाहों की जो इंसान के अंदर उन अच्छाइयों को तलाश कर सके और बुराइयों को छोड़ दें। लोक डॉउन की अवधि के दौरान मेरा व्यक्तिगत रूप से पुलिस कर्मियों से एक जर्नलिस्ट होने के नाते विचारों का आदान-प्रदान रहा। जिससे मुझे इस बात का पता चला के ऊपर से सख्त और कठोर दिखने वाले व्यक्ति अंदर से बहुत नरम भी होते हैं। मुझे यह लिखते में गर्व का आभास हो रहा है कि बदायूं जिला के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार त्रिपाठी के कुशल नेतृत्व में नगर सहसवान के पुलिस अधिकारी सीओ रामकरन, कोतवाल हरेंद्र सिंह कस्बा इंचार्ज व सब इंस्पेक्टर रामकुमार और सब इंस्पेक्टर गंगा सिंह एसएसआई ईशम सिंह पूरी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा के साथ नगर सहसवान की गंगा जमुनी तहजीब को बरकरार रखते हुए और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए तथा लोक डाउन को कामयाब बनाने के लिए अपनी ड्यूटी को अंजाम दे रहे हैं। मौजूदा समय में पुलिसकर्मियों की ड्यूटी जोखिम के साथ साथ बहुत जिम्मेदारी की भी है। सुबह को ड्यूटी जाते वक्त इस बात का उन्हें बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता कि अब उन्हें सोने के लिए बिस्तर कब नसीब होगा। विपरीत परिस्थितियों में कभी-कभी उन्हें वर्दी पहनकर ही सोना पड़ जाता है कि पता नहीं किस वक्त कहां से कॉल आ जाए और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जाना पड़े। समाज और समाज के लोगों के लिए इतने बड़े समर्पण के बावजूद जनता और पुलिस के दरमियान एक बड़ी खाई देखने को मिलती है और वह इसलिए हैं कि वर्दी की आड़ में कुछ पुलिसकर्मी और पुलिस अधिकारी इतने अहंकारी हो जाते हैं कि वह भूल जाते हैं कि यह वर्दी उन्हें जनता की रक्षा के लिए दी गई है ना कि उन पर अत्याचार करने के लिए ठीक इसके विपरीत समाज में भी असमाजिक तत्व होते हैं जो अपने कुकृत्य के द्वारा पुलिस विभाग को डंडा उठाने पर मजबूर कर देते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि हुड़दंग मचाती हुई भीड़ को पुलिस अधिकारी और पुलिसकर्मी सहनशीलता का सबूत देते हुए भीड़ को समझाने का प्रयत्न करते हैं मगर भीड़ बजाए समझने के पुलिस पर ही पथराव शुरु कर देती है जोकि निंदनीय हैं। हर भीड़ में कुछ असामाजिक तत्व होते हैं जो खुराफात करके निकल जाते हैं और उसका खामियाजा मासूम भोली भाली जनता को भुगतना पड़ता है मगर मासूम और भोली भाली जनता को भी ईश्वर ने बुद्धि  दी है उसका भी इस्तेमाल करना चाहिए यदि हम आग में  हाथ डालेंगे तो हाथ का जलना लाजिम है। लोक डाउन की अवधि मैं मैंने देखा कि पुलिस की नौकरी कितनी चुनौतियों भरी है रात को जिस वक्त हम गहरी नींद में सो रहे होते हैं तो अक्सर रात को 1:00 या 2:00 बजे अपने मोहल्ला  रुस्तम टोला मे कस्बा इंचार्ज रामकुमार को गश्त लगाते हुए देखा ठीक इसी तरह से नगर में। उपजिलाधिकारी लाल बहादुर सीओ रामकरन कोतवाल हरेंद्र सिंह वन्य पुलिसकर्मी भी नगर में कानून व्यवस्था चाक-चौबंद रखने के लिए दिन-रात अथक प्रयास करते हैं।लॉक डाउन की अवधि के दौरान एक और जहां गरीब मजदूर अपने वतन जाने के लिए पदयात्रा पर  निकल पड़ा तो उन लोगों को  खाना खिलाते  और आर्थिक मदद करते हुए कई पुलिस अधिकारी  और पुलिसकर्मियों ने मानवता का सबूत देकर पुलिस विभाग का गौरव बढ़ाया  और दूसरी ओर  जिला बदायूं में  इसी तरह के  लाचार और बेबस  मजदूरों को  जो पैदल अपने  वतन जा रहे थे कुछ पुलिसकर्मियों ने उन्हें मुर्गा बनाकर मानवता और पुलिस विभाग को शर्मसार  कर दिया। हालांकि कुछ पुलिसकर्मियों के  इस कुकृत्य के लिए  तेजतर्रार  पुलिस अधीक्षक  अशोक त्रिपाठी  ने  अफसोस भी जाहिर किया  और उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ तुरंत एक्शन भी लिया।  कहने का तात्पर्य यह है कि हर समाज और हर विभाग मैं अच्छे और बुरे  सब तरह के लोग होते हैं लेकिन कुछ बुरे लोगों की वजह से पर्टिकुलर समाज पर या पर्टिकुलर डिपार्टमेंट पर उंगली उठाना  या सवालिया  निशान लगाना सरासर गलत है। लेख के अंत में, मैं एक संदेश देना चाहूंगा की भोली-भाली जनता प्यार मोहब्बत की भूखी है यदि उनसे दो शब्द प्यार के बोल दिए जाएं तो  वह आपके सामने अपना दिल निकाल कर रख देगी और वे तमाम पुलिसकर्मी पुलिस अधिकारी जो अपने अपने घर परिवार और वतन से दूर रहकर  हमारी रक्षा करते हैं वे भी प्रेम और स्नेह के हकदार हैं। जनता यदि शरीर है तो पुलिस विभाग उस शरीर के अंदर धड़कता हुआ दिल है जो बिना आराम किए हुए शरीर को जिंदा रखने के लिए और शरीर की कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर  वक्त धड़कता रहता है। जनता और पुलिस एक दूसरे के बिना अधूरे हैं जनता अपने दिल का ध्यान रखें और उसका सम्मान करें और दिल अपने शरीर का ध्यान रखेगा।
यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं यदि इस लेख में कोई है या किसी शब्द से किसी को कोई कष्ट पहुंचे तो  उसके लिए लेखक क्षमा चाहता है।

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