तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ,
पढ़ रहा हूँ रेत पर,
मिटते मिटाते लेख, जो बाँचे समय ने।
स्वर लहर मोज़ार्ट की, वह नृत्य माइकल जैक्सन का।
तान बिसिमिल्लाह की थी दिव्य, सुर मेंहदी हसन का।।
वो रफ़ी, आशा, लता के गीत का जादू निराला।
हर ह्रदय में भर दिया जगजीत के स्वर ने उजाला।।
आज डाविंची, पिकासो, तूलिका से झांकते है।
और रवि वर्मा, मदन नागर, कला को आँकते हैं।।
शिल्प माइकल एंजलो का आज भी खुद बोलता है।
और सम्मोहन सतत् टैगोर का रस घोलता है।।
ध्यान चंद हाकी कहाँ, वो एक जादू खेलते थे।
बादशाह फुटबाल के पेले, समय से भी बड़े थे।।
सच, सचिन तेंदुलकर, भगवान क्रिकेट के कहाये।
और रॉजर फेडरर टेनिस जगत में जगमगाये।।
देव, मधुबाला, सुरैया, साधना, राजेश खन्ना।
छा गये फिल्मी जगत पर हर किसी की बन तमन्ना।।
सायरा, अमिताभ, हेमा, राज, शम्मी और रेखा।
ट्रेजेडी के किंग का, धर्मेन्द्र का क्या दौर देखा।।
मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ,
पढ़ रहा हूँ रेत पर,
कुछ चमचमाते लेख, जो बाँचे समय ने।