तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हमारे युवा अनेक नये नये व्यापारिक विचारों के साथ नये नये प्रयोग कर रहे हैं। उनमे अनुभव की कमी है किंतु उत्साह की नहीं।
और जहाँ तक औद्योगिक श्रम की बात है, उसके संबंध में भी कुछ सारभूत तत्वों पर विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक है –
असंगठित श्रम का पंजीयन भी ब्लाक स्तर पर आवश्यक किया जाये तथा उन्हें पहचान पत्र निर्गत किये जायें जिनमें उनकी पंजीकरण संख्या, उनकी शिक्षा (यदि कोई हो), श्रम की विशिष्टता, न्यूनतम दैनिक मजदूरी एवं प्रति घंटे की दिहाड़ी का अंकन होना चाहिए । ये परिचय पत्र वार्षिक स्तर पर रिन्यू होने चाहिए ताकि उनके दैनिक नियोक्ता को उनके संबंध में उचित जानकारियां प्राप्त हो सकें।
ब्लाक स्तर पर ऐसे असंगठित श्रम के पंजीयन होने पर अधिक संख्या व अधिक समय के लिये मांग के आधार पर ऐसे श्रमिकों की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा सकती है।
जिस तरह से प्राइवेट सिक्युरिटीज सप्लाइर संस्थाओं द्वारा अपने कस्टमर्स को सिक्युरिटीज पर्सनल्स अपना निर्धारित कमीशन लेकर उपलब्ध कराते हैं, उसी प्रकार असंगठित श्रमिकों के लिये भी प्राइवेट स्तर पर संस्थाओं को कार्य करने के किये मॉड्यूल तैयार करना चाहिए जिसमें ‘अनस्किल्ड’ लेबर को ‘स्किल्ड’ लेबर में बदलने हेतु आवश्यक वर्कशॉप व परीक्षाएँ भी सुनिश्चित कर श्रमिकों की योग्यताओं में परिवर्धन करना चाहिए।
ऐसे पंजीकृत असंगठित श्रमिकों के लिये भी दुर्घटना व स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का लाभ सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
कृषि पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से जनपदीय स्तर पर औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर समुचित औद्योगिक यूनिट्स स्थापित करना चाहिए ।
विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विदेशी उत्पादनकर्ताओं को भारत में अपनी उत्पादक यूनिट्स लगाने हेतु आकर्षित करने हेतु प्रचलित श्रम कानून व अन्य प्रक्रियाओं व कर संबंधी प्राविधानों में बड़े स्तर पर छूट देने की घोषणायें की जा रही हैं। निश्चित रूप से यह एक स्वागत योग्य कदम है। केंद्रीय व राज्य सरकारों को हर संभव प्रयास करना चाहिए कि कोरोना संकट से ऐसे उत्पादनकर्ताओं के मन में चीन के प्रति उपजे अविश्वास से उपजे अवसर व संभावना को अपने पक्ष में भुनाया जा सके। यदि ऐसा हो सका तो हमारे श्रमिकों को बड़े स्तर पर रोज़गार उपलब्ध हो सकेगा।
श्रम कानून में यथोचित संशोधन करके उन प्रतिष्ठानों के लिये जहाँ दिन के चौबीस घंटे उत्पादन होता है, कार्य की पाली मात्र छह घंटे की करनी चाहिए ताकि अधिक श्रमिकों को समायोजित किया जा सके। छह घंटे की पाली के पश्चात श्रमिक के पास पर्याप्त समय बचेगा और वह कोई अन्य वैकल्पिक कार्य करके न केवल अपनी आय ही बढ़ा सकेगा अपितु एक दही आय स्रोत पर अपनी निर्भरता भी कम कर सकेगा।
हम कोरोना संकट से मुक्ति प्राप्ति के पश्चात ‘हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत’ का स्वप्न देख रहे हैं। इसका बीज हमें अपनी शिक्षण पद्धति में भी रोपना चाहिए। प्राइमरी कक्षाओं से लेकर इंटरमीडिएट कक्षाओं तक हमें उत्पादन के मानक स्थापित करते हुये आवश्यक स्तर पर उत्पादन की ‘कम जटिलता’ से ‘अधिक जटिलता’ की ओर चकते हुये या तो स्कूलों की अपनी कार्यशालाओं में अथवा समीपस्थ उत्पादन यूनिट्स के साथ संबद्ध करके विद्यार्थियों से उत्पादन कराना चाहिये और उस उत्पादित माल की खपत के लिये उचित बाज़ार प्रणाली निर्मित की जानी चाहिए। ऐसे उत्पादन मात्र विद्यार्थियों के लिये ही आरक्षित होने चाहिए तथा प्राप्त लाभ को उनकी शिक्षा के शुल्क में समायोजित किया जाना चाहिए।
देश में सामान्य प्रयोग की वस्तुओं को सूचीबद्ध कर ऐसी वस्तुओं के आयात पर रोक लगानी चाहिए ताकि हमारे देश में उत्पादित वस्तुओं का व्यापार फल फूल सके तथा रोज़गार के अवसर बढ़ सकें। ऐसी वस्तुओं के निर्यात की भी संभावनाओं पर शीघ्रता व निपुणता से विचार करना चाहिए ताकि हमारे लोकल ब्रांड्स ग्लोबल ब्रांड्स में परिवर्तित हो सकें।
हमारा देश कई सतहों व स्तरों पर धर्म व जाति में विभाजित दिखाई देता है और समय समय पर हमें इसके भारी नुकसान भी उठाने पड़े हैं। किसी राष्ट्र अथवा समाज जे किये केवल स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ही हितकारी होती है इसलिय औद्योगिकीकरण की शुद्धता व दिव्यता को संरक्षित करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में किसी भी स्तर पर किसी भी के द्वारा किसी भी धर्म, मज़हब अथवा संप्रदाय से संबंधित नामकरण अथवा चिन्ह को पूरी तरह कानूनन निषेधित कर देना चाहिए।
हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हमारे युवा अनेक नये नये व्यापारिक विचारों के साथ नये नये प्रयोग कर रहे हैं। उनमे अनुभव की कमी है किंतु उत्साह की नहीं। केंद्रीय व प्रादेशिक स्तर पर ऐसे व्यक्तियों के साथ सरकारों को इनका आर्थिक साझीदार बनकर ऐसे व्यापारों को स्थापित करने में पूर्ण सहयोग प्रदान करके स्थापित व्यापार में ऐसे इंटरप्रिन्यर्स के लिये भविष्य में लाभ पर कम से कम तीस प्रतिशत की रायल्टी सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि बिना हानि की संभावना से दो चार हुये व बिना किसी बैंक अथवा वित्तीय संस्था ऋणी बने वह अपना स्वप्न साकार कर सके और अपना लाभ सुनिश्चित करते हुये राष्ट्र के नवनिर्माण में अपना सहयोग प्रदान कर सके।
हर संकट अपने साथ अवसर लाता है। कोरोना नामक यह वैश्विक संकट इस स्तर का है कि यह हमें सदा के लिये इतिहास भी बना सकता है और यह अवसर भी प्रदान करता है कि हम सब एक नया इतिहास बना दें। शायद यह समय हमारे समाज में गहराई तक जमी कुछ तथाकथित शाश्वत बुराइयों को जड़ से समाप्त कर नयी ऊर्जा के साथ नये युग की घोषणा का है। यह संभव है, सदैव संभव है।