कोरोना संकटकाल में प्रवासी मजदूरों की हालत हुई बद से बदतर

राणा अवधूत कुमार, ब्यूरो चीफ-ICN बिहार 

पटना: कोरोना संकटकाल ने प्रवासी मजदूरों के सामने विकट स्थिति ला दी है। घर-बार छोड़ दो पैसे कमाने के लिए गए मजदूरों पर जब आफत आई तो न कंपनी-फैक्ट्री के मालिक सहारा, बने ना वहां कोई सरकारी व्यवस्था मिली। नतीजा रहा कि मजदूर दिल्ली, सूरत, बंग्लौर, चंडीगढ़, बड़ौदा अहमदाबाद, मुंबई, चेन्नई जैसे स्थानों से पैदल हजारों किलोमीटर दूरी तय करने का मन बना लिए। मजदूरों की मनोदशा को समझने वाला कोई नहीं। एक तो उनके पास पैसे के नाम पर कुछ नहीं, दूसरी ओर लगातार बढ़ते लॉकडाउन से दूर-दूर तक काम शुरू होने व जीविका को ले कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। थक-हार कर अपने व बीवी-बाल बच्चों को भूखे रहते नहीं देख पैदल निकले तो तमाम झंझावतों को झेलते हुए अपने घर पहुंचे। इस दौरान कई मजदूरों ने बताया कि अपने घर में रूखी-सूखी खाकर भी गुजारा कर लेंगे लेकिन अब परदेस जाने की सपना में भी नहीं सोचेंगे। कोरोना संकट से उबरकर घर लौटे प्रवासी मजदूरों ने संकल्प लिया है कि अपने राज्य में कम पैसे में भी काम मिला तो ठीक है, अन्य प्रदेश अब नहीं जाएंगे। कोरोना महामारी में इस कदर प्रवासी मजदूरों को परेशानी हुई है कि अब वे कत्तई दूसरे प्रदेश में नहीं जाने का मन बना लिए हैं। कोई ट्रकों में छिपकर घर पहुंचा है, तो कोई पैदल मार्च करते हुए। उनके पैर में छाले पड़ गए हैं। इस कड़ाके की धूप में भूख-प्यास से बिलबिलाते हुए प्रवासी मजदूर अपनी पीड़ा को भूल नहीं पा रहे हैं। प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। वे भेड़-बकरियों की तरह ट्रकों पर सवार होकर किसी तरह घर पहुंच रहे हैं। कोई गुजरात के सूरत से पैदल आया है तो कोई मुंबई-अहमदाबाद से पैदल आया है। मजदूरों ने बताया कि लगातार लॉकडाउन के खुलने का इंतजार किया। लेकिन इसकी अवधि बढ़ती गई। कंपनी के मालिक से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की तो उसने कॉल रिसीव नहीं किया। इस कारण अब वह किसी दूसरे प्रदेश में काम करने नहीं जाएंगे। बिहार व उत्तर प्रदेश के श्रमिकों से कंपनी चलती हैं। जब लोग जाना बंद कर देंगे तो, उनकी लुटिया डूब जाएगी। कुछ अन्य मजदूरों ने कहा कि जब अपने सूबे में रोजगार मिल जाए तो क्यों हम दूसरे प्रदेश में जाएंगे। हमें प्रवासी बनना मंजूर नहीं है। इस तरह की समस्या कई मजदूरों ने बताया। मजदूरों का कहना है कि वे अपने घर में रूखी-सूखी खाकर भी जीवन व्यतीत कर लेंगे। लेकिन परदेस जाने की कभी सोचना भी पसंद नहीं करेंगे। कोरोना से मचे हाहाकार में कई प्रदेशों में फंसे प्रवासी मजदूर गृहजिला पहुंच क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे हैं। कुछ दिनों बाद मजदूर घर जाएंगे। लेकिन उन्हें चिंता सता रही कि घर जाने के बाद परिवार का पेट कैसे पालेंगे। दो माह के लॉकडाउन में पहले से रखे पैसे व सामान खत्म हो गए हैं। ऐसे में क्या व कैसे खाएंगे। इसे ले प्रवासी मजदूर चिंतित है।

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