By:Prof. R K Yadav, Dean,College of Agriculture, Lakhimpur Kheri Campus C.S. Azad Univ. of Agril. & Tech. Kanpur & Executive Editor-ICN Group
एक उम्मीद की किरण पिछले कई वर्षो से देश के ज्यादातर राज्यों में किसान आन्दोलन कर रहे है उनकी मुख्य मागें है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू होनी चाहिए। सबसे पहले यह जानने की आवश्यकता है कि डा0 स्वामीनाथन कौन है?
डा0 स्वामीनाथन को भारतीय हरित क्रान्ति का जनक कहा जाता है। डा0 स्वामीनाथन का पूरा नाम डा0 एम0 एस0 स्वामीनाथन है। इनका जन्म 1925 मेंं कुम्भकोड़म तमिलनाडू में हुआ था। ये पौधों के जेनेटिक वैज्ञानिक है उन्होने 1960 में पंजाब की गेहूं की किस्मों का संकरण मेक्सिको की बौनी किस्मों के साथ करके अधिक उत्पादकता वाली किस्मों का विकास किया। डा0 स्वामीनाथन को वर्ष 1967 में पदम श्री 1972 पदमभूषण तथा 1989 में पदम विभूषण से सम्मानित किया गया था।
हरित क्रान्ति क्या है?
हरित क्रान्ति के जनक नार्मन बोरलाग है। इन्होने 1970 में नोविल शान्ति पुरूस्कार प्राप्त किया था। भारत में हरित क्रान्ति एक ऐसी क्रान्ति थी जब कृषि प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास के कारण इसकी पैदावार में वृद्धि हुई थी, यह 1960 के दशक में हमारे देश में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में शुरू हुआ जिनमे अनाज के उत्पादन में वृद्धि और गन्ने की प्रजातियों का विकास शामिल है।
हरित क्रान्ति ने भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में गेहू का उत्पादन सबसे अच्छा परिणाम पेश किया है। हरित क्रान्ति के विभिन्न तरीकों का उपयोग किया गया ताकि सफल हो सके। इन तरीको में आधुनिक कृषि पद्धतियों के साथ बीज की उच्च उपज वाली किस्मो और सिचाई सरंचना का उपयोग शामिल है। भारत में हरित क्रान्ति की शुरूआत 1966-67 मे सें हुआ था।
स्वामीनाथन आयोग क्यों बना था ?
जब किसानों की हालत बिगड रही थी तब अन्न की आपूर्ति को भरोसेमन्द बनाने और किसानां की आर्थिक हालत को बेहतर करने के उद्देश्य को लेकर भारत सरकार ने 18 नवम्बर 2004 में डा0 स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग (नेशनल कमीसन आन फार्मसस) का गठन किया इसे आम लोग स्वामीनाथन आयोग कहते है। स्वामीनाथन आयोग ने अपनी पॉच रिपोर्ट दो वर्ष की अवधि में भारत सरकार को क्रमशः दिसम्बर 2004 , अगस्त 2005, दिसम्बर 2005, अप्रैल 2006 एंव पॉचवी एवं अन्तिम रिपोर्ट अक्टूबर 2006 में सौंफ दी। लेकिन इस रिपोर्ट की जो सिफारसें है उन्हे अभी तक लागू नही किया जा सका है।
स्वामीनाथन आयोग की मुख्य संस्तुतियॉं क्या है‘?
राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट किसानो की दशा और बढ़ती हुई आत्महत्यायें जैसे गम्भीर मामलो पर आधारित हैः
भूमि सुधार (लैण्ड रिफार्मस) हेतु :-
अतिरिक्त भूमि (सरपिलस लैण्ड) की सीलिंग और बटवारें की सिफारिश की गयी थी।
खेतिहर जमीनो (प्राइम एग्रीकल्चर लैण्ड) एवं जंगली भूमि को गैर कृषि इस्तेमाल हेतु कोरपोरेट सेक्टर को परिवर्तित न करने की सिफारिश की गयी थी।
आदिवासियो एवं चरवाहो को जंगल की जमीन दे दी जायें जिससे वह अपनी जीविका चला सके तथा इन्हे जगल में जानवरो को चराने का हक देने की सिफारिश है।
राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाह सेवा की स्थापना की जायें जिसमें भू उपयोग एवं भूमि जोड़ने का निर्णय लेने की क्षमता हो तथा इसका काम परिस्थितिकी, मौसम और बाजार को देखना होता है।
कृषि भूमि को खरीदने बेचने की एक मैकानिज्म बनायी जाये जो क्वान्टम आफ लैण्ड उपयोग की प्रकृति एवं खरीदने वाले की कैटेगरी के आधार पर रेगुलेट किया जायें।सिचाई सुधार हेतुः- सभी को पानी की सही मात्रा मिले के लिए आयोग ने निम्न सिफारिशें की है।
सिचाई के पानी की उपलब्धता सभी के पास होनी चाहिए। पानी के स्तर को सुधारने पर जोर देने के साथ ही श्कुऑ, शोध, कार्यक्रमश् शुरू करने की बात कही गयी थी।वर्षा जल संचयन द्वारा सिचाई जल की आपूर्ति सुनिश्चित करना तथा जलवाही स्तर के पुनर्भरण अनिवार्य होना चाहिए।
श्वर्षा जल संचयन एक तकनीक है जिसका प्रयोग भविष्य इस्तेमाल करने के उद्देश्य से (जैसे कृषि, शौंच, पशुओ को पीने आदि) के लिए अलग संसाधनो के विभिन्न माध्यमो के इस्तेमाल के द्वारा बारिस के पानी को बचाकर रखने तथा इकठ्ठा करने की एक प्रक्रिया बारिस के पानी को कृत्रिम टैंको, तालाबो में एकत्रित किया जा सकता है।
विशाल सतही जल प्रणाली एवं सूक्ष्म सिचाई हेतु सिचाई के क्षेत्र में ठोस लागत बढ़ाने तथा ग्राउण्ड वाटर रिचार्ज हेतु एक नीति बनाने की सिफारिश की गयी ।
कृषि की उत्पादकता बढ़ाने हेतु :-
भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही खेती के लिए ढॉचागत विकास सम्बन्धी भी रिपोर्ट चर्चा में है। मिट्टी की जांच व सरंक्षण भी रिपोर्ट में है। इसके लिए मिट्टी के पोषण से जुड़ी कमियों को सुधारा जायें व मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओ का बढ़ा नेटवर्क तैयार करना होगा। और सड़क के जरीये जुड़ने के लिए सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने पर जोर दिया जाये। आयोग का कहना है कि कृषि सुधार के लिए एक समग्र प्रयत्न की जरूरत है। इसमें लोगो की भूमिका बढ़ाना होगा।
ऋण और फसली बीमा हेतु :-
रिपोर्ट में बैकिंग व आसान वित्तीय सुविधाओं को आम किसान तक पहुचाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। सस्ती दरों पर फसल बीमा अर्थात ब्याज पर सीधे 4 प्रतिशत कम कर दी जायें। कर्ज उगाही में नरमी अर्थात जब तक किसान कर्ज चुकाने की स्थिति में न आ जायें। तबतक उससे कर्ज न वसूला जाये।
खाद्य सुरक्षा (फूड सिक्योरिटी) हेतु :-
ग्रामीण एवं शहरी दोनो क्षेत्रो में प्रति व्यक्ति खाद्य अनाज की उपलब्धता में कमी एवं उसका आसमान वितरण एक ज्वलन्त समस्या है यानि प्रति व्यक्ति भोजन उपलब्धता बढ़े इस मकसद से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सुधारो पर विशेष बल दिया।
वैश्विक सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनाई जायें इसके लिए जी0डी0पी0 (सकल घेरलू उत्पाद) के 1 प्रतिशत की जरूरत होगी।
पंचायत एवं स्थानीय निकायो के संयोग से पोषक सर्मथन जीवन चक्र के आधार पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यवस्थित करने पर जोर दिया ।
महिला एवं स्वंयसेवी समूह की मदद से सामुदायिक भोजन एवं पानी बैंक स्थापित किये जाये। जिससे ज्यादा लोगो को खाना मिल सके। कुपोषण को दूर करने के लिए इसके अन्तर्गत प्रयास किये गये है। तथा कार्यक्रम एवं सेवायोजन कार्यक्रम के अन्तर्गत खाद्य एवं भोजन के उपयोगी सुविधायें जारी रखी जाये।
लघु एंव सीमान्त किसानो की मदद से खेत उद्यमो की उत्पादकता, गुणवत्ता एवं आमदनी बढाने में ग्रामीण गैर कृषि आजीविका पहल को व्यवस्थित किया जायें।
किसानों की आत्महत्या रोकने हेतु :-
आयोग की सिफारिसों में आत्महत्या के समस्या के समाधान, राज्य किसान आयोग बनाने, सेहत सुविधायें बढ़ाने व वित्त बीमा की स्थिति सुदृढ़ बनाने पर विशेष जोर दिया गया है। एम0एस0पी0 औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिस की गयी है। ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आयें यही ध्येय मुख्य है। किसानों की फसल के न्युनतम समर्थन मूल्य कुछेक नगदी फसलो तक न रहे, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केन्द्र व मार्केट दखल स्कीम भी लॉच करने की सिफारिस की गयी है।
प्रति स्पर्धा का महौल बनाने हेतु :-
आयोग ने किसानो में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की बात कही है इसके साथ अलग अलग फसलो को लेकर उनकी गुणवत्ता और वितरण पर विशेष नीति बनाने को कहा था। न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने की बात की गयी थी।
रोजगार हेतुः-
खेती से जुड़े रोजगारो को बढ़ाने के लिए बाते कही गयी थी। इसके साथ ही किसानो के लिए श्नेट टेक होम इनकमश् को तय करने की बात रिपोर्ट में कही गयी थी।
वितरण प्रणाली में सुधार हेतु : इसे लेकर आयोग ने कई सिफारिसे की थी इसमें गॉव के स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पूरी व्यवस्था का खाका खींचा गया था। इसमें किसानो को पैदावार को लेकर सुविधाओ को पहुचाने के साथ ही विदेशों में फसलो को भेजने की व्यवस्था थी। साथ ही फसलो के आयात और उनके भाव पर नजर रखने की व्यवस्था बनाने की सिफारस भी थी।
जैव संसाधनों हेतुः-
भारत में ग्रामीण लोग अपने पोषण एवं जीवनयापन के लिए जैव संसाधनो पर निर्भर है।
पूर्व प्रधानमंत्री लाला बहादुर शास्त्री ने नारा किया था जय जवान जय किसान उनके बाद की सरकार इस नारे को लगता भूल ही गयी है। किसानों की आत्म हत्या और आज की खेती समस्या किसी राष्ट्रीय आपदा से कम नही है। केन्द्र सरकार 2022 तक किसानो की आय दो गुना करने की बात करती है। लेकिन इसका गणित आज तक समझाया नही गया किस तरह किसानों के साथ यह कैया अन्याय है। किसानों को इसलिए दबाया जाता है कि किसान आन्दोलन ट्रेड यूनियन की तरह संगठित नही हैं।
जब वर्ष 2006 में जब स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट सौपी गयी तब केन्द्र में काग्रेस सरकार थी तथा यह सरकार 2014 तक रही उसके पास र्प्याप्त समय था कि वे इन सिफारिसो को लागू कर देते तदोपरान्त भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वायदा किया हुआ है कि वह राष्ट्रीय किसान आयोग (डा0 स्वामीनाथन आयोग) की सिफारिसों के अनुरूप किसानो को कृषि उपज की लागत पचास प्रतिशत लाभ दिलाना सुनिश्चित करेगी। आयोग की जिस रिपोर्ट लागू करने का बाधा कर वर्तमान सरकार सत्ता में आयी है, का मानना है कि लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी से मंडी में दिक्कते आ सकती है, के कयास से लागू नही की जा रही है। एक विचारणीय विषय है।
वर्ष 2006 में राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिसें भारत सरकार को सौपी दी गयी तथा वर्ष 2006 में ही षष्टम वेतन आयोग की सिफारिसे सौपी गयी थी जिन्हें लागू कर दी गयी इसके बाद सप्तम वेतन आयोग की सिफारिसे लागू कर दी गयी जिससे कर्मचारियों, अधिकारियों व हमारे जन प्रतिनिधियों आदि के वेतन, भत्ते और पेंशन कई गुना बढ़े लेकिन लगभग 11 वर्ष बाद भी राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिसे लागू नही कि गयी है जिससे स्पष्ट होता है कि केन्द्र सरकार किसानों की समस्याओ के प्रति संवेदनशील नही हैं।
किसानो पर सिर्फ कर्ज की मार ही नही बल्कि आधुनिक विकास से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन की भी मार है। असमय अतिवृष्टि बाढ़, सूखा व ओलावृष्टि ने किसान की कमर तोड़ दी। मौसम की मार से यदि बच भी गया है तो जानवरो की मार कम घातक नही है। वर्तमान परिस्थितियो किसान की हालात यह है कि आमदनी छोडियें लागत निकालना मुश्किल है। देश में किसानों की न्यूनतम आमदनी बहुत कम है।
स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक किसान को लागत पर 50 फीसदी मुनाफा, सस्तीदरों पर फसल बीमा यानि ब्याजदर कम कर दिये जायें, अतिरिक्त एवं बंजर भूमि आदिवासियों/चरवाहो को दे दी जाये तो किसानो की आत्महत्यायें तथा किसान आन्दोलनो को रोका जा सकता है, नही तो किसान आक्रोश की गूंज सन 2024 के लोक सभा चुनाव में अवश्य ही सुनायी देगी। राष्ट्रीष किसान आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट है कि समर्थन मूल्य खेती की लागत से कम होता है। इस कारण खेती घाटे का सौदा बन गयी है। और देश के 40 प्रतिशत किसान खेती छोड़ने पर बाध्य है। अता देश के किसानों के लिए डा0 स्वामीनाथन आयोग की सिफारसें, एक उम्मीद की किरण हैं।