राणा अवधूत कुमार, ब्यूरो चीफ-ICN बिहार
पटना। विश्व व्यवस्था, क्षेत्रीय संतुलन, दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों, एशिया प्रशांत के देशों के सागरीय संप्रभुता से लगातार खिलवाड़ करने वाले चीन के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए भारत ने यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया है। कोरोना महामारी के बीच पिछले माह भारत ने चीन व अन्य पड़ोसी देशों से सीधे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को ले अपना सुरक्षा चक्र मजबूत किया।भारत के इस कदम ने चीन को निराश भी किया था। एक चीनी मंत्री ने कहा कि कुछ खास देशों से प्रत्यक्ष विदेश निवेश के लिए भारत के नए नियम डब्ल्यूटीओ के गैर-भेदभाव वाले सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, जो मुक्त व्यापार की सामान्य प्रवृत्ति के खिलाफ हैं। मजे की बात है कि यह उस चीन की अपेक्षा है जिसने दुनिया को कोरोना महामारी का दंश दिया। कोरोना ने ऐसी बदलती विश्व व्यवस्था दी है, जहां आरोप-प्रत्यारोप के दौर में पॉलिटिक्स ऑफ जेनरोसिटी यानी उदारता की राजनीति के जरिए वैश्विक छवि बनाने का प्रयास हो रहा है। वहीं ताकत की राजनीति के जरिए कोरोना काल में वैश्विक हैसियत को ऊंचा करने का संघर्ष दिख रहा है। कोरोना की राजनीति ने अमेरिका की कमजोरी व चीन के गैरजिम्मेवारान नजरिए को दुनिया के सामने उजागर की है। इससे भारत जैसे देशों की वैश्विक भूमिका बढ़ी है। सॉफ्ट पावर के रूप में छवि बेहतर हुई है। हाल के वर्षों में उन्हें महत्वपूर्ण आर्थिक, सैन्य व तकनीकी ताकत के रूप में देखा जा रहा है। कोरोनाकाल में चीन को पीछे छोड़ अमेरिका भारत का सबसे बडा व्यापारिक साझेदार बन गया तो उसके साथ मिल भारत ने संदेश दिया कि अब चीन की अनैतिक चालों के समक्ष मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते।
वैश्विक राजनीति में भारत की पहलकारी भूमिका बढ़ी है। हाल में अमेरिका के नेतृत्व में भारत सहित दुनिया के सात बड़े देशों की बैठक हुई। इसमें कोरोना के प्रति पारदर्शिता लाने की मांग हुई। मुख्य फोकस कोरोना को ले चीन की नकारात्मक भूमिका की आलोचना थी। भारत जानता है कि कोरोना के चलते अमेरिका कमजोर हुआ है। उसके कमजोर होने से महत्वाकांक्षी चीन की वर्चस्ववादी नीतियों को बढ़ावा मिलेगा। पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार चीन भारत को उसकी सीमा-पड़ोस में घेरने की नीति अपना रहा है, ऐसे में चीन को मिली बढ़त भारत के सामरिक हितों को नुकसान कर सकती है।इसलिए भारत ने वैश्विक गठजोड़ की नई राहें पकड़ी हैं। इसके लिए भारत अपनी छवि को सॉफ्ट पावर के रूप में मजबूत आधार देने की कोशिश में है।जहां मेडिकल डिप्लोमेसी के जरिए भारत सार्क देशों को एक मंच पर साथ लाने में कामयाब हो रहा है। वहीं पाकिस्तान के इस मंच पर गैरजिम्मेदाराना व्यवहार को निशाना बनाने के जरिए दक्षिण एशियाई देशों को संदेश दिया कि भारत के लिए उसका पड़ोस अहम है। पड़ोसी देशों में भारत की बढ़ती स्वीकार्यता का उदाहरण नेपाल द्वारा 17 मई को भारत द्वारा दिया गया स्वास्थ्य सहायता के लिए धन्यवाद के रूप में देख सकते हैं। यह भारत की परंपरागत बड़े भाई की छवि को बदलने व पड़ोस प्रथम नीति को प्रभावी बनाने का अवसर है। भारत के खाड़ी देशों सहित अन्य मुस्लिम देशों से रिश्ते मजबूत हुए हैं। हालांकि हाल में देश के विभिन्न इलाकों में जमात प्रकरण व खाड़ी देशों में सोशल मीडिया पर भारतीयों द्वारा मुस्लिम विरोधी बयानों ने इन रिश्तों में कुछ खटास लाई है। बावजूद इसके कोरोना संकट में अमीरात, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, सूडान आदि देशों को मदद करने से भारत के छवि में निखार आया है।
वैश्विक संकट की घड़ी में भारत ने निभायी अपनी चिकित्सा धर्म
अफगानिस्तान को दी गई चिकित्सकीय सहायता भारत की सहकारी विदेश नीति का परिणाम है। महामारी में तालिबान ने कुछ दिन पूर्व कहा था कि भारत चार दशक से अफगानिस्तान में नकारात्मक भूमिका निभाती रही है। वहीं अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान को इसका जवाब देकर कहा कि भारत वह देश है जिसने सबसे ज्यादा दान दिया है, सबसे ज्यादा मदद की है। वास्तव में भारत ने अपने बुद्धिमत्तापूर्ण कदमों से उन राष्ट्रों का विश्वास जीता, जो कई समय में अवसरवादी मानसिकता के कारण विरोध करते रहे हैं। भारत ने विश्व समुदाय को चिकित्सकीय सहायता दे सिद्ध करने की कोशिश की है कि वैश्विक स्वास्थ्य को वैश्विक मानवाधिकार के रूप में देखती है। भारत ने पड़ोसी देश श्रीलंका को कोरोना से लड़ने के लिए 10 टन चिकित्सकीय सामग्री, नेपाल को 23 टन आवश्यक औषधि, (हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन व पैरासिटामॉल) शामिल हैं। भूटान को व्यापक चिकित्सकीय आपूर्ति की खेप भेजी है। भारत ने बांग्लादेश को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन की एक लाख गोलियां व 50 हजार सर्जिकल दस्ताने व संयुक्त अरब अमीरात को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन के 50 लाख टैबलेट प्रदान किए हैं। इसी तरह अमेरिका को 50 लाख के करीब हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन, हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन व पैरासिटामॉल के टैबलेट दिए हैं। अभी भारत कोरोना से प्रभावित करीब 55 देशों को वाणिज्यिक आधार पर हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन की आपूर्ति कर रहा है। भारत ने अमेरिका, सेशेल्स, मॉरीशस समेत म्यांमार, ब्राजील व इंडोनेशिया जैसे देशों में यह दवा भेजी है। इन सभी देशों ने भारत को आभार व्यक्त किया है। बदलते दौर में दुनिया में आर्थिक संरक्षणवाद जिस तरह बढ़ रहा है, उस स्थिति में कोरोनाकाल में विश्व में भारत को घरेलू अर्थव्यवस्था में बड़े संरचनात्मक सुधार करने होंगे।