कोरोनाकाल में चीन से अधिक अमेरिका के करीब है भारत

राणा अवधूत कुमार, ब्यूरो चीफ-ICN बिहार

पटना।अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में राष्ट्रीय हितों की अपेक्षित पूर्ति किसी देश की विदेश नीति की सफलता का पैमाना होती है। कोरोना संकट में यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि भारतीय विदेश नीति इससे कैसे व कितना प्रभावित हुई? इसने वैश्विक व क्षेत्रीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया। यह समय नए परिवर्तनों की आहट सुनाने वाला है।बदलते समीकरणों के बीच कोरोना का असर भारत की विदेश नीति पर पड़ेगा। पहला, वंदे भारत जैसे मिशन ने देश की सबसे बड़ी कूटनीतिक संपदा यानी भारतीय डायस्पोरा में उसके प्रति निष्ठा का भाव मजबूत किया है। विभिन्न देशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने में सरकार द्वारा सात मई को शुरू की गई वंदे भारत मिशन के तहत अभी तक कुल 37 उड़ानों से 7037 भारतीयों को वापस लाया गया है। पहले चरण में 14800 भारतीयों को वापस लाने की योजना है। इसी प्रकार ऑपरेशन समुद्र सेतु के जरिए विदेशों में बसे भारतीयों को आइएनएस मगर व जलश्व से मालदीव से भी लाया गया है। चीन के प्रति विश्व में बढ़ते घृणा का भाव भारत के लिए अवसर है। वह आर्थिक संबंधों में चीन का विकल्प बन सकता है। विश्व की अधिकांश कंपनी चीन से बाहर निकल रही हैं तो भारत उनके लिए बेहतर गंतव्य स्थल बनने में जुटा है। रक्षा कंपनियों के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमा बढ़ाई गई है। पीएम नरेंद्र मोदी का आत्मनिर्भर भारत पर फोकस इसी उद्देश्य से प्रेरित है। आपदा में भारत की विदेश नीति में एक अहम बात है कि गुटनिरपेक्ष देशों के संगठन का प्रभावी इस्तेमाल भारत की कूटनीतिक पहुंच व मानवतावादी प्रतिक्रिया को विश्व समुदाय के समक्ष रखने में कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी के वर्ष 2016 व 2019 के नैम समिट में भाग नहीं लेने व उसकी उपेक्षा केआरोप लगे थे, लेकिन अब पीएम के महामारी से निबटने में इसके वर्चुअल सम्मिट को महत्व दिया गया है। भारत ने नैम के 59 देशों को चिकित्सकीय सेवाओं की आपूर्ति की है। दूसरी ओर चीन की नीतियां अधिक आक्रामक हैं। भारत का अमेरिका की तरफ दिखने वाले झुकाव भारत-चीन के बीच आमने-सामने के संघर्ष को बढ़ावा दे सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट से विश्व में भारत संचालित विकास परियोजनाओं को महामारी प्रभावित कर सकती है। भारत की तृतीय विश्व के देशों में एक नेतृत्व के रूप में इन परियोजनाओं का विशेष महत्व है।एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर, श्रीलंका में कंटेनर टर्मिनल के निर्माण, बांग्लादेश व लैटिन अमेरिकी देशों में ऊर्जा परियोजना, मानवीय आधार पर बुनियादी ढांचा कार्यक्रमों के वित्त पोषण पर प्रभाव पड़ेगा। बावजूद भारत ने अपना मानवतावादी दृष्टिकोण नहीं छोड़ा। आने वाले दिनों में सीमा विवाद व एलएसी यानि एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल का उल्लंघन कर विवाद को बढ़ा सकती है। इससे भारत को अभी से सचेत रहने की जरूरत है।

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