रक्षा-नीति की संवेदनशीलता और पेड मीडिया की बाज़ीगरी

एज़ाज़ क़मर, एसोसिएट एडिटर-ICN
नई दिल्ली। कारगिल मे पाकिस्तानी सेना आराम से बंकर बनाते हुये घुसकर बैठ गई थी, लेकिन हमे उसकी भनक तक नही लगी थी, आज सेटेलाइट के युग मे जब हम आसमान से ज़मीन पर चल रही एक छोटी सी चींटी की एक मीटर लंबी पिक्चर बनाकर उसका अध्ययन कर सकते है,फिर भी इतनी तकनीकी प्रगति के बावजूद चीनी सेना तिब्बत मे घुसकर बैठ गयी और हमारी संस्थाएं सिर्फ हाथ मलती रह गई।यद्यपि इस तरह की घटनाओ का आरोप गुप्तचर संस्थाओ के मत्थे मढ़ दिया जाता है,जबकि देश की सुरक्षा पूरे राष्ट्र की सामूहिक ज़िम्मेदारी होती है,क्योकि हर नागरिक राष्ट्र का प्रहरी होता है।
क्या सीमा पर रहने वाले नागरिको की ज़िम्मेदारी नही थी, कि वह सीमा पर हो रही इन असमान्य गतिविधियो के बारे मे देश की सुरक्षा संस्थाओ को सूचित करते?
क्या मीडिया की जिम्मेदारी नही थी कि वह इन संवेदनशील सीमाओ पर पैनी नज़र रखती?किंतु हमारी मीडिया को दाऊद इब्राहिम की कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट तो मिल जाती है, लेकिन कारगिल और लद्दाख मे शत्रुओ के घुसपैठ की सूचना नही मिलती है,इस ग़ैर-ज़िम्मेदार और पेड मीडिया ने भारत की सारी मीडिया को बदनाम करवा दिया है।
सूचना क्रांति के दौर मे पाखंडी मीडिया पूरी दुनिया मे उपहास का पात्र बनी हुई है,कभी यह कबूतर को आई०एस०आई० का कर्नल, ब्रिगेडियर और जनरल बना देती है,तो कभी टिड्डीयो को पाकिस्तानी छापामार सैनिक बताती है,बाज़ीगरी करतेे हुये टीवी एंकर पत्रकार कम कलाकार ज़्यादा लगते है।
क्या हमारे वरिष्ठ मीडिया गुरूओ और बंधुओ की ज़िम्मेदारी नही है,कि भारतीय मीडिया की साख को बचाने के लिये वह सही सूचना जनता के सामने रखकर इस पेड मीडिया का पर्दाफाश करे,क्योकि अगर ज़िम्मेदार मीडिया खामोश रहेगी तो पेड मीडिया उस रिक्त स्थान (Vacuum) को भरकर पूरी मीडिया का मखौल बनवायेगी।
अब समय आ गया है कि ज़िम्मेदार पत्रकारो को आगे बढ़कर देश की जनता को पत्रकारिता के मापदंड बताना चाहिये,कि जिम्मेदार पत्रकारिता (Responsible Journalism) क्या होती है?
एक जिम्मेदार पत्रकार का क्या दायित्व है?मीडिया संस्थान की राष्ट्र और समाज के प्रति जवाबदेही (Accountability) निश्चित क्यो नही होना चाहिये?
कर्मचारियो के शोषण, ब्लैकमेलिंग और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी साख बचाने के लिये मीडिया के द्रोणाचार्यो को स्वयं आगे आकर सामूहिक नीति क्यो नही बनाना चाहिये?
अगर राष्ट्र और सरकार के हित मे से किसी एक चुनना पड़े,तो मीडिया को किस का पक्ष लेना चाहिये?
जब हम बार-बार यह कहते है, कि “राष्ट्र सर्वोपरि है” तो फिर हम सरकार की चाटुकारिता क्यो करते है?
एक तरफ पेड मीडिया युद्ध का माहौल बनाकर अशांति फैला रहा है, तो दूसरी तरफ मीडिया जनता को गुमराह करते हुये देशवासियो को आपस मे बाँटकर राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को खतरे मे डाल रही है,क्या अब ज़िम्मेदार मीडिया की यह ज़िम्मेदारी नही है,कि वह सुरक्षा से जुड़े कूटनीतिक और गोपनीय मुद्दो (जिन्हे पर्दे के पीछे की राजनीति के नाम से चिन्हित किया जाता है) से जनता को अवगत कराये?
भूमंडलीकरण और सोशल मीडिया के इस युग मे अगर देश की जनता असमंजस को दूर करने के लिये विदेशियो से संवेदनशील सूचनाएं प्राप्त करने का प्रयत्न करे,तो उससे बेहतर है कि देश की मीडिया धीरे-धीरे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयो पर भारत की जनता को शिक्षित करे,हालाकि हो सकता है “सरकार के गले से यह बात ना उतरे”,किंतु मीडिया राष्ट्र के प्रति उत्तरदाई है और जब हमारा ध्येय है कि राष्ट्र सर्वोपरि है,तो हमे सरकार की चिंता क्यो करनी चाहिये?
यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमे अच्छे पड़ोसी देश नही मिले है,दशको से हम नेपालियो को साथ में लेकर चल रहे थे ,परन्तु वह डंक मारने का कोई मौका नही छोड़ते है, बांग्लादेश से संबंध तो सांप को दूध पिलाने के समान है और पाकिस्तान तो हमारा खुला दुश्मन है,लेकिन हमे बाहुबली चीन से सबसे ज्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है।
बांग्लादेश निर्माण के बाद लगा था कि पाकिस्तान सुधर जायेगा,किंतु “रस्सी जल गई पर बल नही जला” वाली वाली कहावत पाकिस्तान पर चरितार्थ होती है, बल्कि वह “ज़ख़्मी सांप” की तरह और खतरनाक बन गया।
भारत सरकार “सुंदर जी डॉक्ट्राइन” {Sundarji Doctrine (1981–2004)} नाम की रक्षात्मक रणनीति को अपनाती रही थी,किंतु 13 दिसंबर 2001 को संसद भवन पर हमले के बाद भारत सरकार नींद से जागी और उसे अपनी रणनीति बदलने को मजबूर होना पड़ा,क्योकि जब तक सेना सीमा रेखा पर पहुंचती थी तब तक अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण युद्ध टल जाया करता था, जिससे पाकिस्तान को अपनी जान बचाने का एक और अवसर मिल जाता था।
यद्यपि हमेशा भारत सरकार ने सिरे से इस बात को खारिज किया है,फिर भी रक्षा विशेषज्ञो विशेषकर विदेशी सुरक्षा विशेषज्ञो का मत है, कि भारत सरकार ने एक आक्रमक सुरक्षा रणनीति अपनाई है,जिसे कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्राइन (Cold Start doctrine) कहा जाता है,जिसके अंतर्गत पाकिस्तान के एक क्षेत्र विशेष मे सैनिको को ताबड़तोड़ तरीके से भेजकर उस क्षेत्र को बाकी पाकिस्तानी क्षेत्र से अलग करना है अर्थात पाकिस्तान को दो भागो मे बांट देना इस कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्राइन का मुख्य बिंदु है।
हमारी सुरक्षा रणनीति धीरे-धीरे खामोशी से सफलता की ओर बढ़ रही थी,किंतु 2014 मे एन०डी०ए० सरकार के आने के बाद से चाटुकार मीडिया ने इसका भट्टा बैठा दिया,क्योकि चाटुकार मीडिया ने संवेदनशील सुरक्षा नीति को “वोट बैंक” की रणनीति से जोड़ दिया,जबकि सुरक्षा रणनीति हमेशा गोपनीय रखी जाती है,ताकि दुश्मन को उसकी भनक तक ना लगे।
भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान मे जाकर आतंकवादियो का खात्मा करना अथवा “सर्जिकल स्ट्राइक” करना एक सामान्य बात थी,किंतु एन०डी०ए० सरकार के समय मे मीडिया ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर इतना शोर मचाया,कि जिससे पाकिस्तानी नेता सेना के दबाव मे आ गये, फिर पाकिस्तानी सेना पर अंतरराष्ट्रीय दबाव घट गया और उसे खुली छूट मिल गई।
भारत सरकार ने पाकिस्तानी सेना को गले से पकड़ रखा था और बहुत जल्दी अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाना था,किंतु एन०डी०ए० सरकार की प्रचार-नीति और पेड-मीडिया के प्रोपेगंडा के कारण पाकिस्तानी सेना ने बाज़ी पलटकर उल्टे प्रचार करना शुरू कर दिया,कि भारत की खुफिया संस्था रॉ (RAW) पाकिस्तान मे अशांति फैला रही है।
पाकिस्तान सरकार ने आरोप लगाया कि भारतीय ख़ुफ़िया संस्था रॉ ईरान की सीमाओ के अंदर रहकर बलूची विद्रोहियो की मदद कर रही है,जिसका उद्देश्य चीन-पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर (CPEC) को नुकसान पहुंचाना है,फिर कुलभूषण की गिरफ्तारी के नाम पर इस कहानी को सही साबित करने के लिये पाकिस्तान सरकार ने एक सफल ड्रामा करके भारत को बैकफुट पर धकेल दिया,क्योकि यहां से चीन के मन मे भारत सरकार के विरूद्व संशय पैदा हो गया था।
जिस तरह अमेरिका और रशिया मे विलोमानुपात है,  ठीक उसी तरह ईरान और अरब देशो मे छत्तीस का आंकड़ा है,क्योकि कोई भी देश अगर चाहे भी तो दोनो ख़ेमो को एक साथ लेकर नही चल सकता,भारत सरकार ने बिजनेस लॉबी के दबाव मे आकर अरब देशो से अपने संबंध सुधारना शुरू किये,तो ईरान नाराज़ हो गया।
पहले ईरान ने भारतीय व्यापारियो को दिये गये ठेके रद्द करना शुरू किये,उसके बाद सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह से भी भारत को दूध मे मक्खी की तरह बाहर निकाल कर फेकने की कोशिश करी, अब हालात इतने खराब हो गये है कि पुराना मित्र ईरान लगातार भारत विरोधी बयान देता रहता है,कश्मीर और एन०आर०सी० जैसे हमारे घरेलू मुद्दो पर भी वह बयानबाजी करके भारत के मामलो मे दखलअंदाजी करता रहता है।इस अवसर का लाभ उठाते हुये पाकिस्तान सरकार ने ईरान पर डोरे डालना शुरू किये,पहले उसे अपना मुसलमान भाई कहकर पुचकारा,उसके बाद अमरीका को ईरान विरोधी अड्डे बनाने से मना किया,फिर चीन को राज़ी करवाया कि वह ईरान मे चार-पाँच सौ बिलियन डॉलर का निवेश करके डूबती इरानी अर्थवयवस्था मे सुधार करवाये।
ईरान से लगी अपनी सीमा को सुरक्षित कर लेने के बाद पाकिस्तान ने अपना ध्यान अफगानिस्तान पर केंद्रित किया,क्योकि जनता से किये वादे के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अफगानिस्तान से अपनी सेना निकालना चाहते है और उन्हे इसके लिये पाकिस्तान सरकार की मदद चाहिये,पाकिस्तान ने अमरीका और तालिबान के बीच मे समझौता करवाने के बदले “बलूच लिबरेशन आर्मी” (BLA) को अमेरिका से आतंकवादी संगठन घोषित करवाकर बहुत बड़ी राजनैतिक सफलता प्राप्त करते हुये बलूच अलगाववादी आंदोलन को कुचल दिया।
रशिया के तालिबान के समर्थन मे आने के बाद से उसकी ताकत दिनो-दिन बढ़ती जा रही है,ऊपर से कोरोना की मार ने अफगानिस्तान की ग़नी सरकार को पैदल कर दिया है, पाकिस्तान इस अवसर का फायदा उठा़ते हुये अपने पख़्तून अलगाववादी संगठनो को निशाना बनाकर उनकी कमर तोड़ रहा है,तो दूसरी तरफ भारत काअफग़ानिस्तान मे अरबो-रुपए का निवेश डूबता नज़र आ रहा है,क्योकि 70% क्षेत्र पर तालिबान का कब्ज़ा हो चुका है अर्थात भारत की अफग़ानिस्तान नीति असफल हो चुकी है।
अपनी पश्चिमी सीमा पर बाड़ लगाने और रणनीतिक जुगलबंदी करने के बाद पाकिस्तान ने अब सारा ध्यान भारत विशेषकर कश्मीर की तरफ लगा दिया है, पाकिस्तान की रणनीति रही है कि अगर विदेशी ताकतो का पाकिस्तान मे निवेश होगा,तो वह अपने निवेश को बचाने के लिये भारत के विरुद्ध लड़ाई करेगे और यह रणनीति आज बहुत सफल साबित हो रही है,क्योकि चीन अपने महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट “वन बेल्ट रोड” को बचाने के लिये भारत से युद्ध करने तक को आतुर दिखाई देता है।
बदले राजनैतिक परिदृश्य मे मौजूदा सरकार राजनीतिक समीकरण और महत्वाकांक्षाओ को भांपने मे असफल रही है,क्योकि उसे लगता था कि अपना व्यवसाय बढ़ाने के चक्कर मे चीन भारत से मित्रता बढ़ायेगा और पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता कम करेगा,इसलिये सरकार चीन से व्यापारिक संबंध बढ़ाने मे लगी रही,यहां तक कि चीन को सरदार पटेल की मूर्ति मे भी पैसा कमाने देने का अवसर देकर उसे आलोचना झेलनी पड़ी।
दूसरे एन०डी०ए० सरकार समझती थी कि थोड़े बहुत हथियार खरीदकर रशिया को खुश किया जा सकता है और उसे अपने साथ पाकिस्तान विरोधी गठबंधन मे रखा जा सकता है, इसलिये एन०डी०ए० सरकार ने अमेरिका के विरोध के बावजूद “एंटी मिसाइल सिस्टम एस-400” रशिया से खरीदा, किंतु सरकार यह तथ्य नज़रअंदाज़ करती रही कि चीन भारत की तुलना मे कई गुना ज़्यादा बड़ा रशिया के हथियारो का खरीदार तथा व्यापारिक साझेदार है।
एन०डी०ए० सरकार ने रशिया की मुस्लिम देशो की तरफ झुकती हुई विदेश नीति का भी अध्ययन नही किया, क्योकि पिछले कुछ समय से रशिया फिलिस्तीन, सीरिया, ईरान, तुर्की, सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशो से अपने संबंध सुधारने मे लगा हुआ है, जिसका कारण पुतिन की मित्र और जिमनास्टिक की ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अलीना (Alina Kabaeva) है,जिनके तीन बेटो का पिता पुतिन को ही समझा जाता है,दूसरे पुतिन ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन है जो दूसरे ईसाई समुदायो की तुलना मे मुसलमानो के अधिक नज़दीक और यहूदियो से ज़्यादा दूर होते है।
वर्तमान सरकार की सबसे बड़ी असफलता अमरीका पर ज़रूरत से ज्यादा विश्वास करना है, क्योकि एन०डी०ए० सरकार को लगता था, कि पाकिस्तान और चीन से सयुक्त-युद्ध की दशा मे अमरीका भारत के पक्ष मे युद्ध करेगा।
जबकि आजतक अमेरिका ने कभी भी रशिया के खिलाफ सीधे युद्ध नही किया है और ना ही वह कभी चीन के खिलाफ भी सीधे युद्ध करेगा,बल्कि वह दूसरे देशो को मोहरा बनाकर लड़ाई करता रहा है और भविष्य मे भी दूसरे देशो के कंधे पर बंदूक रखकर रशिया और चीन के खिलाफ जंग लड़ेगा,इसलिये अब अमेरिका अपने व्यापारिक हितो की सुरक्षा के लिये चाहेगा,कि भारत और चीन आपस मे लड़कर बर्बाद हो जाये,ताकि वह विश्व की इकलौती आर्थिक महाशक्ति बना रहे।
पश्चिमी देशो की राजनीति पर क्रिश्चियन मिशनरी की थोड़ी-बहुत पकड़ अभी भी बाकी है और यह क्रिश्चियन मशीनरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भारत मे अपना सबसे बड़ा शत्रु मानती है,अगर भारत का किसी पड़ोसी देश के साथ युद्ध हो जाये तो क्रिश्चियन मिशनरी को समाज सेवा के नाम पर अपने पैर पसारने का पुन: मौका मिल जायेगा,स्मरणीय यह है चीन मे दूसरे धर्म घट रहे है किंतु क्रिश्चियन मिशनरी की मेहनत की वजह से चीन मे इसाईयत लगातार बढ़ती जा रही है।
श्रीलंका, मालदीव और भूटान जैसे छोटे पड़ोसी देशो का रुझान चीन की तरफ बढ़ता जा रहा है,क्योकि वह चीनी निवेश की चाहत मे भारतीय संबंधो के महत्व को नजरअंदाज करते जा रहे है,भारत ने बांग्लादेश मे अपना समर्थन करने वाली (Pro-Indian Lobby) दूसरी पीढ़ी तैयार नही की है, यदि शेख हसीना की जिंदिगी के बाद बांग्लादेश भारत का शत्रु देश और सिरदर्द बन सकता है,क्योकि घुसपैठ का मुद्दा बांग्लादेशियो से ही जुड़ा है।
इज़राइल भारत का एकमात्र विश्वसनीय मित्र है,किंतु वह भी खुलकर भारत के पक्ष मे नही लड़ेगा,ऐतिहासिक रूप से हिंदू देश नेपाल भारत का परम मित्र रहा है,लेकिन भारत सरकार की अदूरदर्शिता के कारण अब नेपाल भविष्य मे भारत के लिये बड़ी मुसीबत बन सकता है,लिपुलेख और काला पानी का विवाद इसी की झलक है।
नेपाल द्वारा नया नक्शा जारी करना पाकिस्तानी षडयंत्र का हिस्सा है, जिसकी शुरुआत भारत सरकार द्वारा कश्मीर मे धारा 370 हटाए जाने के बाद से हुई है,क्योकि जम्मू और कश्मीर के निर्णय को पाकिस्तान ने एक-तरफा कार्रवाई मानते हुये चीन और भारत के दूसरे पड़ोसी देशो को भड़काना शुरू कर दिया है,कि हमे भी भारतीय क्षेत्रो पर अपना दावा ठोकना चाहिये।
यह बहुत ही हास्यपद लगता है,परंतु पाकिस्तान अपनी नापाक और शैतानी हरकतो से बाज़ नही आने वाला देश है,वास्तव मे पाकिस्तान जहांगीर खानजी की मदद से “जूनागढ़” पर अपना दावा ठोक कर एक नया विवाद खड़ा करना चाहता है और नेपाल का नया नक्शा इसी षड्यंत्र का एक ट्रायल है, ताकि राजनीतिक स्थिति और संभावनाओ का आंकलन और विश्लेषण किया जा सके।
23 सितम्बर 2019 (सोमवार) को पाकिस्तान के सिंध हाई कोर्ट मे जस्टिस सलाहुद्दीन पंवार और जस्टिस शमसुद्दीन अब्बासी की खंडपीठ के सामने एक याचिका पर सुनवाई हुई,जिसमे जूनागढ़ के पूर्व-निवासी और याचिकाकर्ता छोटू मियाँ ने पाकिस्तान की नागरिकता नही मिलने की अदालत से शिकायत की है,छोटू मियाँ के अनुसार उनके परिवार के चार सदस्य 2007 मे भारत से पाकिस्तान आये है,लेकिन अभी तक उन्हे पाकिस्तान की नागरिकता नही मिली है,याचिकाकर्ता का कहना है कि जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान से मिलने (विलय) का फ़ैसला किया था, लिहाज़ा जूनागढ़ के बाशिंदे पाकिस्तान के नागरिक है।
पाकिस्तान का जन्म ही भारत विरोध के कारण हुआ है,इसलिये वह हमेशा भारत विरोधी षड्यंत्र करता रहा है,आपरेशन गुलमर्ग (Operation Gulmarg 1947-48) तथा आपरेशन जिब्राल्टर  (Operation Gibraltar 1965) की असफलता और 1971 मे शर्मनाक हार से हुये देश के विभाजन का बदला लेने के लिये पाक सेना ने काशमीर मे एक छद्म युद्ध (Proxy War) छेड़ रखा है,जिसे आपरेशन टोपाज़ (Tupac Amaru) का नाम दिया गया है,भारत के सीमावर्ती क्षेत्रो मे आग लगाकर पाकिस्तानी सेना ने अब अपनी “ब्लीड इंडिया विद ए थाउज़ेंड कट डॉक्ट्राइन” (Bleed India with a Thousand Cuts Doctrine) को देश के दूसरे हिस्सो मे तेज़ी से फैलाने का प्रयास शुरू कर दिया है।
21 वी शताब्दी की शुरुआत से ही मिलिटरी इंटेलीजेंस के रिटायर्ड अधिकारी आर०एस०एन०सिंह जैसे राष्ट्रवादी ‘आई०एस०आई० के फैलते जाल’ के बारे मे लिखते और बोलते रहे है,इनका मत है कि पाकिस्तान अपनी सीमा से लगे क्षेत्रो मे चरमपंथ और अलगाववाद के पौधे लगाने के बाद, अब पूर्वी भारत विशेषकर नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश और बिहार के घनी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रो मे अलगाववाद के बीज बोने का प्रयास करेगा,क्योकि सोशल मीडिया पर “मुग़लिस्तान” के नाम से एक इस्लामिक राष्ट्र बनाने का दुष्प्रचार चल रहा है।
उस समय यह बात अव्यवहारिक लगती थी क्योकि बंगाली मुसलमान पाकिस्तान विरोधी होते है,जबकि उर्दू भाषी मुसलमान याकूब मेमन और करीम टुंडा जैसे अपराधियो की नेपाल से गिरफ्तारी होने के बाद से पाकिस्तानी सरकार को विश्वासघाती मानते हुये नापसंद करने लगे थे,इसलिये उनके आई०एस०आई० के जाल मे फंसने का कोई प्रश्न ही नही होता था,ऊपर से विकास और भूमंडलीकरण ने युवाओ के मन मे आतंकवाद के लिये घृणा पैदा कर दी थी।
पाकिस्तानी षड्यंत्र मे सबसे बड़ी बाधा भारत और नेपाल के परस्पर सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते थे,नेपालियो के मन मे भारतवासियो के लिये घृणा पैदा करने मे एक शताब्दी निकल जाती थी,किंतु पाकिस्तान ने अपने मित्र चीन के साथ मिलकर नेपाल मे सफलता से माओवादी क्रांति लाकर वैचारिक रूप से नेपाल को भारत से काफी दूर कर दिया है,अब भविष्य मे माओवादी नेपाल राष्ट्रवादी भारत के लिये सबसे खतरनाक पड़ोसी देश बन सकता है।
अगर चीन का उद्देश्य भारत पर हमला करके जमीन हड़पना होता,तो वह लद्दाख मे घुसपैठ करने के बजाय सीधे सिलीगुड़ी कॉरिडोर (Siliguri Corridor) की 22 किलोमीटर लंबी संकरीली पट्टी पर कब्ज़ा करके पूर्वोत्तर को भारत से अलग कर देता,क्योकि सामरिक दृष्टि से “चिकन नेक” (मुर्गी की गर्दन) कहलाये जाने वाला क्षेत्र भारत की सबसे बड़ी कमज़ोरी और चीन की सबसे बड़ी ताकत प्रतीत होता है।
अगर चीन भारत के दूसरे क्षेत्रो (गैर-कशमीरी) पर कब्ज़ा करता तो उसे अंतरराष्ट्रीय दबाव झेलना पड़ता, इसलिये उसने बड़ी कुटिलता से लद्दाख के क्षेत्र का चुनाव किया,क्योकि जम्मू कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र मे लंबित है और पिछले वर्ष मोदी सरकार ने धारा 370 हटाकर यथास्थिति (Status-Quo) बदल दी थी,फिर उसके बाद चीन-पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मे मुद्दा उठाया तो पश्चिमी देशो ने उसे भारत का आंतरिक मामला बताते हुये पाकिस्तानी प्रस्ताव को नकार दिया था।
लद्दाख मे घुसपैठ करने का दूसरा उद्देश्य पाकिस्तान पर भारतीय सेना के बढ़ते हुये दबाव को कम करना है, क्योकि पाकिस्तानी सेना चिल्ला-चिल्लाकर कह रही है कि भारत पाक-अधिकृत कश्मीर मे हमला करके उसे स्वतंत्र कराने का प्रयास करेगा और इस क्षेत्र मे चीन का भारी निवेश है, इसलिये ग्वादर बंदरगाह और कश्मीर मे अपना निवेश बचाने के लिये चीन को लद्दाख मे सेना उतारनी पड़ी।
इस खेल का सबसे खतरनाक मोहरा नेपाल है,क्योकि पश्चिमी देशो ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर जबरदस्त दबाव बनाया हुआ है और एफ०ए०टी०एफ० ने पाकिस्तान की धड़कने रोक दी है,ऐसे मे नेपाल की धरती का उपयोग भारत मे आतंकवाद फैलाने के लिये किया जा सकता है,अगर तराई के मुसलमान पाकिस्तान के जाल मे नही फंसते है,तो फिर दलित नेतृत्व के गिरते क़द से परेशान शिक्षित दलितो के साथ मिलकर माओवादी आंदोलन अर्थात नक्सलवाद को पैदा किया जा सकता है।
छह जून को चूसूल-मोल्डो मे भारत-चीन की सेनाओ के शीर्ष अधिकारियो की हुई सफल और सौहार्दपूर्ण बैठक से भविष्य मे सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद की जा सकती है,किंतु रातो-रात चीन का सीमा विवाद को लेकर अड़ियल रवैय्या बदल जाने की संभावना कम ही है,क्योकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र “ग्लोबल टाइम्स” जिस तरह धमकियां दे रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि चीन भारत को दबाव मे लाकर दूसरे छोटे पड़ोसी देशो को डराना चाहता है,इसलिये भारत को फूंक-फूंककर कदम आगे बढ़ाना होगा।
भगोड़े व्यापारियो के एन०पी०ए० (NPA) के कारण भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पहले से ही जर्जर हालत मे थी,उसके बावजूद भी सरकार द्वारा आर०बी०आई० से पौने दो लाख करोड़ रुपए निकाल लेने के कारण भारत की आर्थिक स्थिति बेहद खतरनाक स्थिति मे पहुंच चुकी है,ऊपर कोरोना की मार ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है, ऐसे मे कारगिल जैसा सीमित युद्ध भी महा-विनाशकारी होगा।
पश्चिमी देश अपने स्वार्थो के कारण भारत को युद्ध की आग मे झोक कर बली का बकरा बनाना चाहते है,इसलिये भारत को अपने पड़ोसियो के साथ संबंध सुधारना चाहिये और इस मामले मे रशिया से मध्यस्थता करवाई जा सकती है,किंतु इसमे सबसे बड़ी रुकावट मोदी सरकार की वोट-बैंक की राजनीति है,जिसने रक्षा-नीति को चुनाव से जोड़कर और बाज़ीगर मीडिया की मदद से देश मे “वार हिस्टीरिया” (War Hysteria) पैदा किया है।
चीन भारत की पेड मीडिया की बोलती बंद कर देगा,क्योकि चीन की पहली शर्त होगी कि कश्मीर की यथास्थिति बहाल की जाये अर्थात “धारा 370 की पुनः वापसी हो”,किंतु मोदी सरकार के लिये यह निर्णय लेना संभव नही है,क्योकि इससे उसकी छवि जनता मे खराब हो जायेगी और वह अगला चुनाव बुरी तरीके से हार जायेगी।
चूंकि भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनीतिक पटल है और संघ का मत है कि “राष्ट्र सर्वोपरि है”,ऐसी विषम परिस्थितियो मे देश को महायुद्ध के महाविनाश से बचाने के लिये संघ को सरकार के ऊपर दबाव डालना पड़ेगा, कि वह चुनाव की परवाह किये बग़ैर शांति स्थापना का प्रयास करे,भले ही उसे राजनैतिक रूप से बैकफुट पर आना पड़े।
भारत आध्यात्मिक रूप से विश्व गुरु है और अब धीरे-धीरे आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है,ऐसे मे अगर संयम से काम लिया जाये और कड़वा घूंट भी पीना पड़े,तो भी यह बलिदान देश के नायक को इतिहास मे अमर बना देगा,क्योकि निजी हित के बजाय राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि मानते हुये त्याग करने वाले व्यक्ति को ही महापुरुष माना जाता है।
एज़ाज़ क़मर (रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)

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