सुहैल काकोरवी, लिटरेरी एडिटर-ICN ग्रुप
(इस कविता का आधार मरीज़ों की निगेटिव रिपोर्ट आना है और निगेटिव बस यहीं सफल है)
मोहब्बत करने वालों के लिए ये आम है लोगों
किसी की इक “नहीं” तो रोज़ उसका काम लोगों
अज़ीयत देना और बर्बाद करना हुस्न की आदत
कि इसको क्या किया जाए यही तो उनकी है फितरत
सदा इंकार से ही हिज्र का हंगाम होता है
इसी से कल्बे आशिक़ का बुरा अंजाम होता है
कि है इंकार आतिश जो सुकूने दिल जलाती है
ये है तूफ़ान जिसमें हर मसर्रत डूब जाती है
लगाता है ये कारी ज़ख़्म दिल पर रूह पर पैहम
नज़र आती है मंज़िल दूर छा जाता ऐसा ग़म
अगरचे उस नहीं” का एक मतलब और होता है
की है पैवस्त उसमें हाँ कहाँ बेदिल इसे समझे
बदलना हमने यूँ तस्वीर का माज़ी में देखा था
अँधेरे से नफ़ी के सामने इसबात आया था
रहो मुस्बत नसीहत एक की ये दुसरे को है
कि मक़सद इसका ये है ग़म का मारा हौसला रखे
मगर मुझमे रिजाइयत लहू के साथ जारी है
कि साया इसका मुझपर है ये मुझपर फ़ज़्ले बारी है
बाबा इक ख़तराये जां है खुदा सुन ले दुआ मेरी
हिफाज़त हो हमारे मुल्क की और मुल्क वालों की
खुदाया मेरी दुनिया को नजात इस ग़म से मिल जाए
तमन्ना है तेरी रेहमत करम का अब्र बरसाए
अचम्भा है नफ़ी से हमको इत्मीनान होता है
उधर इसबात से इक खौफ है जो दिल पे छाया है
दरख्शां इस नफ़ी का सिलसिला दिल देखना चाहे
हमारी जीत मुज़मर है इसी में जंग के चलते
यक़ीं है हमको बेशक बाज़याबीये मसर्रत का
सहर लाएगी पैग़ामे फ़ना इस सारी ज़ुल्मत का
अज़ीयत=पीड़ा ,हिज्र का हंगाम=वियोग,आतिश=आग ,मसर्रत=हर्ष
विशेष:- ‘सुहैल काकोरवी’ उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी व फारसी के साहित्य का एक ऐसा नाम हैं जो स्वयं भी “साहित्य” ही है. उन्होंने जितना भी लिखा वो साहित्य की सर्वशेष्ठ वर्ग में आता है और यही कारण है की समय समय पर ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड’ एवं ‘इंडियन बुक्स ऑफ़ रिकॉर्ड’ जैसी संस्थाओं ने उनकी अनेक पुस्तकों को कीर्तिमानो की मान्यता दी है. श्री सुहैल काकोरवी आई.सी.एन. नेशनल (साहित्य) के सम्मानीय एडिटर हैं. उनकी इस रचना को प्रकाशित करते हुए आई.सी.एन. को अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है.