सुहैल काकोरवी, लिटरेरी एडिटर-ICN ग्रुप
हुस्न बिखरा है हमारे क़ल्ब के माहौल में
जो घिरा है रुए ज़ेबा की बहारे ज़ौल में
Grace has been scattered around the atmosphere of my heart
The heart, which is encircled by the elegance smart
उसने इक रंगीं इशारा मेरी नज़रों को दिया
मैंने सब चौपट किया दरअसल मैं था हौल में
She gave a sweet hint to my eyes lovingly
I made a mess of the matter as I was in a frenzy
तुम बहोत मासूम हो जो ग़ैर पर तुम हो फ़िदा
कुछ नज़र आता नहीं हमको तो उस बगलौल में
Thou art infatuated by rival,thou art sans sagacity
I do not see any good in that fool totality
यार भी तो है हमारे बांकपन का मोतरीफ
है अदा ऐसी हमारी आशकी के औल में
The beloved also admits my briskness ever prevailing
Such is the way of my witty love handling
वो बहोत कम हैं जिन्हें रहता है औरों का ख़याल
देखिये जिसको वो बस रहता है अपने डौल में
They are very rare who bother to think for others
All are busy in plotting for themselves, it is clear
बेयक़ीनी ही रही नुक़्सान का उसके सबब
जिसने रिश्तों को फंसाया नाप में और तौल में
Lack of trust remained cause one’s deprivations
He who remained busy in weighing and measuring relations
इख़्तियारे कुल ने उसके कर दिया अशरफ मुझे
मेरी हस्ती कुछ नहीं ,है शान उसके शौल में
His Omnipotence made me the best of creature
I am nothing it is his elevating,his grandeur
सर्द जज़्बे हैं क़लम खामोश फिक्रें मुन्तशिर
बेक़रारी इसक़दर है हम हैं जैसे जौल में
Cold are emotions and silent is imagination and pen
Thoughts waver to and fro heart is stricken
जानता है आशिक़ों पर बेअसर है उसका दर्स
फिर भी ये करता है ज़ाहिद इन्तेहाए गौल में
The Priest knows that his sermons are futile on lovers
Yet he goes on with that despite failures
अये सुहैल उसका भरोसा क्या भला कोई करे
है तज़ादे मुस्तक़िल उसके अमल में क़ौल में
I just cannot place reliance upon her pretended sincerity
As there is between her practice and sayings inconsistency
क़ल्ब =मन ,रुए ज़ेबा =सूंदर चेहरा ,ज़ौल =रम्यता , हौल=घबराहट ,मोतरीफ=स्वीकारिता ,औल =प्रबंधन ,इख़्तियारे कुल =सम्पूर्ण अधिकार ,अशरफ =श्रेष्ठ,शौल =ऊपर उठाना ,सर्द जज़्बे हैं क़लम खामोश फिक्रें मुन्तशिर=क़लम खामोश उदासीनता कल्पना बिखरी हुई ,जौल =इधर से उधर व्याकुलता में अस्थिर होना , दर्स =प्रवचन =प्रोहित =गौल=मूर्खता ,तज़ादे मुस्तक़िल=स्थाई विरोधाभास ,अमल में क़ौल=व्यवहार और कथन
विशेष:- ‘सुहैल काकोरवी’ उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी व फारसी के साहित्य का एक ऐसा नाम हैं जो स्वयं भी “साहित्य” ही है. उन्होंने जितना भी लिखा वो साहित्य की सर्वशेष्ठ वर्ग में आता है और यही कारण है की समय समय पर ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड’ एवं ‘इंडियन बुक्स ऑफ़ रिकॉर्ड’ जैसी संस्थाओं ने उनकी अनेक पुस्तकों को कीर्तिमानो की मान्यता दी है. श्री सुहैल काकोरवी आई.सी.एन. नेशनल (साहित्य) के सम्मानीय एडिटर हैं. उनकी इस रचना को प्रकाशित करते हुए आई.सी.एन. को अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है.